नाजमीन की मौत का जिम्मेदार कौन?
राजस्थान में हर सरकार का चुनावी वादा संविदाकर्मियों के नियमितीकरण का होता है लेकिन हर बार चुनाव जीतने के साथ ही वह वादा जुमला साबित हो जाता है। मदरसा पैराटीचर्स, राजीव गांधी पैराटीचर्स सहित कई संविदाकर्मियों ने सरकारों को अपना चुनावी वादा याद दिलाने के लिए क्या कुछ नहीं किया? लेकिन सरकार तो सरकार है, वो कब वादों को गंभीरता से लेने लगी। चाहे कोई मरे या जिए उन्हें कुछ फर्क़ नहीं पड़ता है।
हाल ही में कोटा निवासी संविदा पीड़ित नाजमीन की मौत कोई नयी बात नहीं है। इससे पूर्व भी कई संविदा कर्मी अकाल मौत का शिकार हो चुके हैं जिनका ना कोई सरकारी रिकार्ड है और ना ही कोई सरकारी मदद। यहां तक किसी को उनसे हमदर्दी भी नहीं है सिवाय उनके घरवालो के।
नाजमीन कोटा शहर के किशोरपुरा की निवासी है जो किशोरपुरा के ही अलमास मदरसे में पिछले 9 सालो से संविदा की नोकरी पर थी। हर साल के धरने प्रदर्शनों के परिणामों से नाखुश होकर नाजमीन भी शमशेर खान गाँधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन में, आरपार की लड़ाई का मन बनाकर आंदोलन में कूद गई। लेकिन किसे पता था कि इस हक की लड़ाई में उसके हिस्से में शहादत आएगी। नाजमीन अपने पीछे दो छोटी छोटी ल़डकियों को रोता बिलखता छोड़कर दुनिया को अलविदा कह गयी। नाजमीन की मौत का उसके मां, बाप, पति और बच्चों पर जो गहरा सदमा लगा होगा उसे बयान करने में कलम भी थरथराने लगती है लेकिन बड़ा सवाल अब भी ज्यों का त्यों है, आखिर नाजमीन की मौत का जिम्मेदार कौन है? सरकार जो लगातार इनका शोषण किए जा रही है या
समाज, जो सब जानते हुए भी अनजान है?
सरकारें, जो जितने के बाद अपना वादा भूल जाती है या जनता जो उनसे सवाल पूछने का साहस नहीं कर पाती?
सरकार जो अल्पसंख्यकों, दलितों, पिछड़ों के विकास का खोखला दावा करती है या मीडिया जो सरकार के दावों की पोल खोलने की बजाय दूसरे गैर जरूरी मुद्दे पर हमे उलझाए रखती है?
नाजमीन और इनके जैसे अनगिनत शोषित लोगों की अकाल मृत्यु का जिम्मेदार कौन है इसका फैसला भी अगर जनता नहीं कर पाती है तो यक़ीन मानिये विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की जनता में जागरुकता का काफी अभाव है।
नासिर शाह (सूफ़ी)
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