विवादित कृषि कानून, क्या सिर्फ किसानो की समस्या है?

Sufi Ki Kalam Se

पूरी दुनिया के लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसानो के कर्जदार है। क्योंकि यही वो वर्ग है जो अपना खून पसीना एक करके, रात दिन की मेहनत के बाद धरती का सीना चीरकर उसमे से फ़सले उगाते है जिन्हें खाकर ही दुनिया भर के इंसान जिंदा रहते हैं।अब आपके दिमाग में यह प्रश्न भी आ रहा होगा कि हम तो दाम देकर जीवन यापन का सामान खरीदते हैं तो फिर कर्ज कैसा?
तो इसका जवाब यह है कि जिस तरह इंसान, माँ बाप का कर्जदार होता है, उसी तरह देश की सीमाओं पर रक्षा कर रहे सैनिकों का भी कर्जदार होता है। ठीक इसी तरह किसानो का भी कर्जदार होता है।
फिर भी अगर कोई इंसान यह कहे कि सैनिक तो उनकी नौकरिया करते हैं जिसके बदले उन्हें वेतन भी मिलता है और मां बाप भी संतानोत्पत्ति करके, उनका पालन पोषण करके अपना फर्ज निभाते हैं तो फिर ऐसे इंसानो की सोच का कुछ नहीं किया जा सकता है। दुनिया में सब तरह की सोच वाले इंसान बसते रहे हैं। हर बात को देखने का नजरिया सबका अलग अलग होता है।


वर्तमान समय में भारत में चल रहे किसान आंदोलन को ही देख लीजिए। देश के 29 राज्यों में किसानो की भरमार होने के बाद भी पंजाब और हरियाणा के किसान ही आंदोलन को सो प्रतिशत दे रहे हैं। शेष राज्यों के किसानो को या तो कृषि कानून समझ नहीं आया है या उसके होने वाले नुकसानो का अंदाजा नहीं है या फिर ये सोच रहे हैं कि जब होगा तब देखा जाएगा। खैर जो भी हो लेकिन जागरूक किसानों ने अपना काम धंधा छोडकर कंपकंपाती सर्दी में खुले आसमान को अपनी छत बनाया हुआ है और महिला किसानो ने अपने अपने गांवों में घर और खेत खलिहानों की बागडोर सम्भाली हुई है। किसान आंदोलन को एक महीना होने को है, सर्दियाँ घरों में कैद इंसान की रूह तक को कंपकंपा रही है, ऐसे में किसानों ने सड़क को बिस्तर और आसमान को बिछौना बनाया हुआ है।
कृषि बिल पारित करने वाली केंद्र सरकार और उनके मंत्रियों का, किसान आंदोलन के बारे में पूर्व की भाँति रटा रटाया जवाब है ।उनका कहना है कि देश का किसान भ्रम में है और उन्हें विपक्षी पार्टी द्वारा उकसाया जा रहा है। सत्ताधारी पार्टी के अनुसार पूर्व में जीएसटी को लेकर व्यापारी भ्रम में थे, फिर नोटबंदी को लेकर जनता भ्रम में पड़ी और उसके बाद नागरिकता कानून को लेकर देश का मुलसमान भ्रम में आया और अब कृषि कानून को लेकर किसान भ्रम में है।
हर आंदोलन के बारे में, हर दल की सरकार का यही उत्तर होता है लेकिन सोचने वाली बात यह है कि विवादित कृषि कानून, क्या सिर्फ देश के किसानो की समस्या है? क्या इस कानून से देश का किसान ही प्रभावित होगा?
सब इस बात से अच्छे से वाकिफ़ है कि भारत देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है तो फिर यह समस्या केवल किसानो की समस्या कैसे हो सकती है। देश की हर छोटी बड़ी समस्या मे देशवासी मिल जुल कर विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं लेकिन किसानों के मामले में ज्यादातर विरोध केवल किसान पृष्टभूमि वाले लोग ही क्यों कर रहे हैं?
ये बात समझ से परे है कि किसानों का माल एमएसपी पर खरीदने में सरकार को क्या आपत्ति है? अगर किसानो की समस्या पर गौर किया जाए तो मालूम होता है कि वह तो पहले से ही अंधकार में है। आए दिन पूरे देश में किसानो की आत्महत्याएं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। सरकार अपने बचाव में अक्सर यह सफाई भी देती हुई नजर आ रही है कि यह बिल किसानों के हित में है तो जब किसान इस तरह का भला चाहते ही नहीं है तो सरकार क्यों ज़बर्दस्ती करके उन पर ये कानून थोपना चाहती है।
क्या इस कानून के तहत देश में जमाखोरी नहीं बढ़ेगी? जमाखोरी बढ़ेगी तो क्या महंगाई नहीं बढ़ेगी? और महंगाई से गरीब और गरीब नहीं होता जाएगा? सरकार को हमेशा एक ही तरह के रटे रटाए जवाब की जगह इन सवालों पर भी कुछ कहना चाहिए। देश के प्रधानमंत्री जी, जो जनता और गरीब किसानो के सच्चे सेवक होने का दावा करते हैं, तो फिर उन्हें, उनके नजदीक बैठे किसानो से मिलने की फुर्सत क्यों नहीं मिल पा रही है जबकि इसके उलट कच्छ (गुजरात) के किसानों से मिलने के लिए प्रधानमंत्री जी के पास पर्याप्त समय उपलब्ध हैं। प्रधानमंत्री जी सबसे मन की बात करते हैं तो फिर किसानों के मन की बात क्यों सुनना नहीं चाहते हैं?


ऐसे ना जाने कितने अनगिनत सवाल है जो, किसानों की नींद उड़ाए हुए हैं, इसलिए वो अपना सब कुछ छोड़कर सड़क पर आंदोलन करने पर मजबूर है।
गौरतलब है कि देश का मैन स्ट्रीम मीडिया, हमेशा की तरह इस बार भी सरकार की तरफ से बैटिंग करते हुए, देश के अन्नदाताओं को पाकिस्तानी, खालिस्तानी, देशद्रोही आदि साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। किसान आंदोलन अंतराष्ट्रीय स्तर का रूप ले चुका है लेकिन गोदी मीडिया किसानो की वास्तविक समस्याओं को दिखाने के बजाय फिजूल ख़बरें दिखाने में व्यस्त हैं। मीडिया के इस सौतेले रवैये पर हैरानी की कोई बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि लोगों ने मीडिया द्वारा बेहूदा कार्यक्रम देखने की आदत डाल ली है तो फिर उनसे निष्पक्ष ख़बरें दिखाने की उम्मीद करना अपने आपको धोखे में रखना है। मीडिया अपनी दुनिया में व्यस्त हैं और सरकार अपनी जिद में, बाकी बची जनता जो सर्दी के दिनों में अच्छा खा पीकर और ओढ़कर तमाशा देख रही है। किसानों का विरोध करने और कृषि कानून के समर्थन करने वालों को गोदी मीडिया द्वारा तुरंत सच्चा देशभक्त होने का प्रमाण पत्र दे दिया जाता है और इसके विपरित किसानों का साथ देने वालों को टुकड़े टुकड़े गैंग बताने में जरा भी देर नहीं की जाती है।
नासिर शाह (सूफ़ी)


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