अपने दौर का निडर दस्तावेज़ीकरण है ट्रिपल एस! (भँवर मेघवंशी)
युवा लेखक नासिर शाह सूफ़ी की रचनाओं का मैं पाठक रहा हूँ,वर्ष 2019 में प्रकाशित कहानी संग्रह “तड़पती आवाज़ें” की कहानी गोजान ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया, मुझे उनके लेखन में उत्पीडित अस्मिताओं के प्रति एक समानाभूति का अहसास हुआ। उनकी पहली कथाकृति के पश्चात चार साल बाद उनका पहला उपन्यास “ट्रिपल एस” प्रकाशित होरहा है, जिसकी कहानी तीन युवाओं सागर,सफ़वान और सुखपाल की कहानी है,जिन्हें उनकी यूनिवर्सिटी में ट्रिपल एस के नाम से जाना जाता है ।
जैसा कि नाम से ही हम समझ सकते हैं कि हिंदू ,मुस्लिम और सिख पहचान वाले दोस्तो की यह तिकड़ी है,जो छात्र राजनीति में खूब धूम मचाती है। उनकी विचारधारा देश की मुख्य धारा राजनीतिक पार्टियो से बिलकुल अलहदा है, जो वैकल्पिक और जनपक्षीय विचारसरणी के साथ है। तीनों दोस्त जमकर वर्चस्ववादी तानाशाही प्रवृतियों के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई लड़ते है लेकिन सत्तापक्ष वाली पार्टी उन्हें पुलिस कारवाई में उलझा देती है। इसी उतार चढ़ाव से जूझते हुए ट्रिपल एस अपने छात्र जीवन के बाद वो तीनों अपने अपने क्षेत्र में जाकर राजनीति करते है।
तीनों का राजनीतिक जीवन एक जैसा था और तीनों ही एक विचारधारा के साथ आगे बढ़ रहे थे। छात्र जीवन के बाद तीनों के रास्ते अलग ज़रूर हुए लेकिन काम वही था अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना और सरकार की ग़लत नीतियों की आलोचना करना,लेकिन तीनों का परिणाम अलग रहा। दो ‘एस’ इसी राजनीति के कारण राष्ट्रीय हीरो बन गये और तीसरा ‘एस’ धार्मिक भेदभाव के आधार पर ना सिर्फ़ राजनीति में पिछड़ा बल्कि उसका सब कुछ उजड़ जाता है ।
नासिर शाह सूफ़ी का यह उपन्यास सिर्फ़ कहानी नहीं है, बल्कि यह आज के इस भयानक अंधकारपूर्ण दौर के ख़िलाफ़ मज़बूत बयान है। इस उपन्यास से गुजरते हुये साफ़ महसूस होता है कि यह आज की तमाम परिस्थितियों का द्रकसाक्षी वर्णन है।
उपन्यास के पात्र भले ही काल्पनिक है लेकिन यह समकालीन भारत की बेहद सच्ची घटनाओं से प्रेरित है। कहानी को यह उपन्यास विश्वविध्यालय के छात्र आंदोलन, नागरिकता आंदोलन,कारपोरेट कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ लगे गये किसान संघर्ष का माकूल दस्तावेज़ीकरण है।
ट्रिपल एस में और भी बहुत कुछ है,घटनाएँ सच्ची है,किरदार और उनके कार्य भी सच्चे है, बस आपको लगेगा कि पात्रों के नाम बदल गए हैं। उपन्यास में सफ़वान और मेहविश की मोहब्बत को पाकीज़ा तरह से दिखाया गया है,
साथ ही वर्तमान समय में समुदाय विशेष के साथ हो रही नाइंसाफ़ी पर रोशनी डाली गई है जिसमें नफ़रती मीडिया का काफ़ी अहम रोल होता है। सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियाँ और सांप्रदायिक मीडिया की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाया गया है।
उपन्यास की भाषा सटीक,धारदार और प्रवाहमान है,अपने दौर पर एक कलमकार की इससे ईमानदार और निर्भीक टिप्पणी और कुछ नहीं हो सकती है। उपन्यास के लेखक नासिर शाह सूफ़ी को उनकी निडरता और सामाजिक सरोकारपूर्ण लेखन हेतु बधाई। उम्मीद है कि सूफ़ी की कलम से ..राज, समाज और आज की और भी बेबाक़ सच्चाइयाँ समय समय पर सामने आती रहेगी। मंगलकामनाएँ ।
- भंवर मेघवंशी
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