इमरान हाशमी की एक और फ्लॉप फिल्म है ‘ड़िब्बुक‘
सीरिअल किसर के नाम से मशहूर इमरान हाशमी ने जब से अपनी इमेज बदल कर परिवारिक फ़िल्में करने की ठानी है तब से उनकी, उन्हीं की फ़िल्मों से भी ठीक से नहीं बन पा रही है। या तो दर्शक इमरान हाशमी के अभिनय से ऊब चुके हैं या फिर उनके भोले बनने की ऐक्टिंग से। यही कारण है कि इमरान चाहकर भी अपने फैन्स को कुछ नया नहीं दे पा रहे हैं और उनकी फ्लॉप फ़िल्मों में एक और फिल्म शामिल हो गई है। हाल ही में अमेजॉन प्राइम वीडियों पर रिलीज फिल्म ड़िबूक इसी का नतीज़ा है। इमरान हाशमी स्टारर हॉरर फ़िल्म ड़िबूक एक पुरानी मलयालम फ़िल्म का रीमेक है जिसे ‘जय के’ ने ही लिखा है और निर्देशित किया है।
फिल्म कहने को तो हॉरर है लेकिन फिल्म में हॉरर के नाम पर कुछ भी नया नहीं है जैसे पुरानी हॉरर फ़िल्मों में होता आया है वही इसमे कॉपी पेस्ट कर दिया गया है। फिल्म में यहूदी संस्कृति से जुड़ी जानकारियां दर्शकों के लिए नयी और रूचिकर हो सकती है लेकिन यह फिल्म की कामयाबी के लिए प्रयाप्त नहीं है।
फिल्म की कहानी :-
एक ईसाई युवक सैम (इमरान हाशमी) और उसकी हिन्दू पत्नि माही (निकिता दत्ता) बिजनेस के सिलसिले में मोरिशॅस आ जाते हैं जहां एक डिब्बे (ड़िब्बुक) से यहूदी युवक इजरा (इमाद शाह) की आत्मा निकल कर कहानी को आगे बढ़ाती है फिर उस आत्मा को मारकस (मानव कौल) नामक यहूदी गुरु का लड़का यहूदी परंपराओं के माध्यम से काबू में कर फिल्म को खत्म करते हैं।
फिल्म में आत्मा, जिन पुराने तरीकों से दर्शकों को डराने की कोशिश करती हैं उससे दर्शक डरने की जगह ऊबासिया लेते देखे जा सकते हैं। आत्मा कभी दीवार पर चलती है तो कभी छत से उल्टी लटक जाती है। जिस तरह ड़िब्बुक की आत्मा वॉश बेसिन के शीशे से निकल कर टॉयलेट में फ्लश हो जाती है वैसे ही यह फिल्म भी बड़े पर्दे से निकल कर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फ्लश हो गई है।
फिल्म काफी छोटी है अगर इसमे इमरान हाशमी को पहले से विवाहित ना दिखाकर 10 से 15 मिनट तक लव स्टोरी का तड़का लगा देते तो दर्शकों को इमरान हाशमी से कुछ ना कुछ तो मिल ही जाता। इस फिल्म में एक और बड़ी खामी इसमे संगीत का अभाव है। इमरान हाशमी के गानें हमेशा, उनकी फ़िल्मों से भी ज्यादा चलते हैं लेकिन इसमे एक भी गाना नहीं होना इसे और नीरस कर देता है। बहरहाल इमरान हाशमी के प्रशंसकों और हॉरर फ़िल्मों के शौकिन लोगों के लिए फिल्म देखने लायक भी है, ऐसा भी नहीं है कि यह फिल्म देखना बिल्कुल ही व्यर्थ कहा जाएगा , हाँ इतना जरूर है कि इस फिल्म से, ज्यादा उम्मीदें रखने वालों को निराशा हाथ लग सकती है।
नासिर शाह (सूफ़ी)
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