मेहरबाँ पूछिये तो सवाल क्या है
मसिहा इधर देखिए हाल क्या है।
कभी जो मैं मोम था नादाना हुआ
बात तो यूँ नहीं बागी रवाना हुआ।
साबिर हूँअकड़ मुझमें ज्यादा नहीं
वजीर साहब, शाह हूँ प्यादा नहीं।
हमने कई दौर गुजारे गुजर जाएंगे
हम बादम एक वक्त नज़र आएंगे।
अफ़साल काटिये उगाइयेगा जो
नोश फरमाइयेगा पकाइयेगा जो।
यह मुख्तसर बात जेहन में लीजिये
मुझ लिया कुछ तो बदले में दीजिये।
आपको तआरुफ़ हुआ मेरे जलाल से
रौंदना मेरी सदा निकाल दें ख्याल से।
ये हक़ की आवाज है गूंजेगी जोर से
इस क़ब्ल आप सुन लीजिये गौर से।
हूँ शौकत में पला मुस्ताक ए ज़र नहीं
कल क्या हो कल की कोई खबर नहीं।
इस साल मुराद बहुत मांगी हैं हमने
क़ल्ब में खूं ए रगे जाँ लगी है जमने।
कुछ हुआ कुछ बाक़ी कुछ निशां हुये
मुकीम मेरे अरमान आतिश्फिशां हुये।
वादा किया निभाइये गम काफ़ूर हों
कहीं हम मुखालफत पर मजबूर हों।
जिगर आजमाता आजमाइश देंगे
काम ना हो तो कफ़न पैमाइश देंगे।
– गेस्ट पॉएट ‘जिगर चुरुवी’ (शमशेर गांधी)
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