
मांगरोल में 80 और 90 के दशक और उससे भी कई दशकों पहले मांगरोल के शत प्रतिशत मुस्लिम घरों और अन्य समाज के घरों की प्यास बुझाने का बहुत ही लोकप्रिय जलस्रोत ।।
इसके पानी में एक अलग ही मिठास और स्वाद होने के कारण ही शायद इसको मीठे कुएँ का नाम दिया गया था।
जब मांगरोल में घर घर में नलों के कनेक्शन नाम मात्र के हुवा करते थे और पानी का वितरण भी बिजली की अनियमित सप्लाई पर निर्भर था ,उस दौर में महिलायें अपने घरों के पीने का पानी इसी मीठे कुएँ से रस्सी और मटकी की मदद से निकालकर घरों में लाया करती थी ।
और जब कोई प्यासा इस कुएँ के पास से गुज़रता तो अक्सर वहाँ पर पानी भर रहीं महिलाएँ ही रस्सी से पानी निकालकर इस कुएँ का पानी पिला दिया करती थी ,मैं भी जब बच्चा था तो इस कुएँ के पानी को पिया करता था।
और मैं ही नहीं मेरे समाज के सभी घरों में लोगों ने इस कुएँ के पानी को अपनी ज़िंदगी में खूब पिया है ।
आज इस कुएँ के पास लगे बाग को समय की ज़रूरत के अनुसार शादी ब्याह के आयोजन के लिए शानदार लुक दे दिया गया है ,जिसको सभी अपनी शादी की दावत में मीठे कुएँ के बाग के नाम से लिखवाते हैं।
ऐसे ही मैं भी एक दिन एक दावत में दोपहर में गया तो अचानक इस मीठे कुएँ पर नज़र पड़ी तो पुरानी यादें ताज़ा हो गई और इस कुएँ की कुछ तस्वीरें मैंने अपने केमरे में क़ैद कर ली।इससे पुरानी यादे ताजा हो गई ,उन्हीं यादों को आज यहाँ लिख रहा हूँ ।
और मेरी यादे ही क्यों ,इस मीठे कुएँ से मेरी हमउम्र और मुझसे बड़ों की भी यादें ताजा ज़रूर हो गई होंगी ।
लेकिन आने वाली पीढ़ी क्या इस मीठे कुएँ के बारे में जान पाएगी ,,,शायद नहीं ।
आधुनिकता की इस चकाचौंध में फ़िल्टर और कैम्पर के पानी पीने वाले युग में खंडहर पढ़े इस मीठे कुएँ को आख़िर कोई जानना भी क्यों चाहेगा??
लेकिन कहीं ना कहीं हम सब की ये ज़िम्मेदारी बनती है कि इतने बड़े शादी के आयोजन होने वाले स्थान का नाम जिस कुएँ के नाम पर हो उसकी यादों को अपनी आने वाली पीढ़ियों तक निरंतर पहुँचाते रहें ताकि अपनी ख़ुद की धरोहर अपनी भविष्य की युवा पीढ़ियों तक पहुँचती रहे ।
और हाँ मेरा एक सुझाव ये भी है कि क्यों ना अगर इस मीठे कुएँ की जगह की नियमित साफ़ सफ़ाई भी होती रहे और इसको एक अलग सजावट के साथ एक आकर्षक लुक दे दिया जाये तो बाहर से आने वाले मरहमानों के लिए भी ये एक देखने वाली जगह साबित हो जाएगी ।
वहीं पर इस कुँए का एक संक्षिप्त इतिहास भी अगर अंकित हो जाये तो शायद आने वाली पीढ़ियाँ भी इस मीठे कुएँ को भूलकर भी नहीं भूल पाएगी ।
मैंने तो अपने बच्चों को इस कुएँ से संक्षिप्त रूप से मिलवा दिया ……
क्या आपने भी अपने बच्चों को इस मीठे कुएँ को दिखाकर इसके बारे में बता दिया है ????
अगर हाँ तो बहुत अच्छा और नही तो ज़रूर बतायें अपने समाज और शहर की इस अनमोल धरोहर के बारे में। – डॉ शकील अहमद, मांगरोल ।

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