अंतर्धार्मिक संवाद कोई अपराध नहीं, मौलाना क़लीम सिद्दीक़ी को तुरंत रिहा किया जाए: एसआईओ
प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान मौलाना क़लीम सिद्दीक़ी और उन के साथियों की गिरफ़्तारी सत्तारूढ़ हिंदुत्ववादी ताक़तों द्वारा अंतरधार्मिक संवादों पर अंकुश लगाने और यूपी चुनाव से पहले सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने और का एक कुकृत्य और ग़लत प्रयास है।
मौलाना क़लीम सिद्दीक़ी को भारत देश में विभिन्न धर्मों के लोगों द्वारा व्यापक रूप से सम्मानित किया जाता है, क्योंकि उनके प्रयासों के कारण दोस्ताना अंतर्धार्मिक संवादों के माध्यम से सांप्रदायिक सद्भाव एवं सौहार्द को बढ़ावा मिला है। उन्होंने अपना जीवन विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास एवं ग़लतफ़हमियों को दूर करने के लिए समर्पित किया है। उनका यह भी भरपूर प्रयास रहा है कि अलग अलग समुदाय एक दूसरे के बारे में जानें, समझें और व्यापक स्तर पर सामाजिक संवाद का माहौल पैदा हो। मौलाना क़लीम सिद्दीक़ी साहब पर लगे आरोपों में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है। उन पर आरोप है कि उन्होंने लोगों को ज़बरदस्ती या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने पर विवश किया, जैसा कि यूपी ए टी एस ने अपनी पूरी तरह से फ़र्ज़ी और काल्पनिक शिकायत में कहा है।
स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इंडिया (एसआईओ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुहम्मद सलमान अहमद ने कहा की, मौलाना सिद्दीक़ी साहब को चुनावी लाभ के लिए यूपी सरकार द्वारा बलि का बकरा बनाया गया है। हम इस तरह की गिरफ़्तारीयों की कड़ी निंदा करते हैं और उनकी तत्काल रिहाई की अपील करते हैं। निर्दोष मुसलमानों का लगातार उत्पीड़न निंदनीय है और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए। इस तरह की हरकतें केवल संदेह और अविश्वास का माहौल पैदा करेंगी और देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए पूरी तरह से घातक सिद्ध होंगी।
अपने पसंद के धर्म को मानने और प्रचार करने का अधिकार हमारे संविधान में निहित है। यूपी सरकार का धर्मांतरण विरोधी क़ानून इन स्वतंत्रताओं को कमज़ोर करता है और आम लोगों को परेशान करने का एक साधन बन गया है। हम आशा करते हैं कि सरकारें होश के नाख़ून लेंगी और माननीय न्यायालय संवैधानिक मूल्यों को स्थापित करते हुए इस संवेदनहीनता पर विराम लगाएंगे।
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