विद्यार्थी हनुमान की तरह विद्यावान बनें – संत प्रभूजी नागर
श्रीमद् भागवत कथा व गौरक्षा सम्मेलन में छठे दिन भजनों की रसधार से गूंज उठा बड़ां बालाजी तीर्थ धाम
फ़िरोज़ खान
बारां। मालवा माटी के वरद्पुत्र दिव्य गौसेवक संत पं.प्रभूजी नागर ने बुधवार को श्रीमद भागवत कथा व गौरक्षा सम्मेलन के छठे सोपान में नौजवान बच्चों से कहा कि वे सिर्फ ज्यादा नंबर लाने के लिये पढाई नहीं करें, अपने विवेक, अनुभव, आचरण व संस्कारों से विद्यावान बनने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि रावण विद्वान थे लेकिन हनुमान हमेशा विद्यावान बनकर रहे। वे रामकाज करते हुये हर संकट का समाधान ढूंढ लेते थे।
पूज्य नागरजी ने नंबरों के अंतर को समझाते हुये कहा कि दशानन विद्वान रावण के 10 सिर थे जबकि पंचानन हनुमान के पास 5 मुख ही थे। लेकिन वे विद्यावान होकर रावण की हर योजना को विफल कर देते थे। आज के विद्यार्थियों में नंबर भले ही कम हो लेकिन आचरण उनका अच्छा होना चाहिये। गुरूकुल में कुल 105 विद्यार्थियों में 100 कौरव और पांडव सिर्फ 5 ही थे। आज परिवारों में 8वीं पास माता-पिता की सेवा कर रहे हैं, जबकि बीकाॅम वाले बेकाम हो रहे हैं।
गिरिराज ‘भक्तों की माला’ धारण करते हैं
संत प्रभूजी ने कहा कि सारे ब्रह्मांड में गिरिराज धरण ही ऐसे देव हैं जो कभी माला नहीं पहनते हैं। परिक्रमा के दौरान तलहटी में फूल की माला नहीं, 24 घंटे भक्तों की माला ही दिखती हंै। जब तक तलहटी में सेवा, अभिषेक, अनुष्ठान, मनोरथ के लिये भक्तों की कतारें लगी रहेंगी, तब तक घोर कलिकाल देश की भूमि पर प्रवेश नहीं करेगा।
उन्होंने भजन ‘टूट जाये न माला कहीं प्रेम की, वरना अनमोल मोती बिखर जायेंगे..’ सुनाते हुये कहा कि गोवर्धन पर्वत में आज भी 1 लाख मंत्रों से निरंतर जप करने वाले साधक मिल जायेंगे। उनकी उर्जा से हमारा कल्याण हो रहा है। जिस घर की पूजा में पवित्रता होगी, उसमें रहने वालों की बुद्धि में भी तेज आ जाता है। ठाकुरजी को छप्पनभोग लगाने के लिये कृत्रिम वस्तुयें न रखें। गाय के दूध में तुलसी पत्र डालकर भी आप छप्पनभोग लगा सकते हैं।
धर्म प्रचार का साधन भक्ति है, चमत्कार नहीं
गौसवक संत नागरजी ने कहा कि धर्मप्रचार का साधन सिर्फ भक्ति ही है । कोई चमत्कार या पाखंड नहीं। लेकिन कलिकाल में चमत्कार से भी धर्मप्रचार होने लगे । हमने निष्काम भक्ति छोड ढोंग व चमत्कार अपना रहे हैं। शबरी माता के पास सिर्फ राम भक्ति थी, जिससे राम उनको मिले जबकि रावण के पास चमत्कार थे। उन्होंने कहा कि हम नरकगामी बनें या नर से नारायण बनें इसे अंगूर से समझ लें। अंगूर में दाग लगे तो उससे शराब बनती है। लेकिन वह बेदाग रहे तो दाख बन जाते हैं।
हम भक्ति को उम्र से तौल रहे हैं
उन्होंने कहा कि गंभीर रोग आपकी उम्र से पहले आ रहे है। फिर हम भजन के लिये उम्र ढलने का इंतजार क्यों कर रहे हैं। 20 साल की उम्र में भी बुद्धि न आये तो माता-पिता व्यथित होत हैं। 30 साल की उम्र में भी बुद्धि से धन न आये तो वह समाज की नजर से उतर जाता है। इसी तरह, 60 की उम्र तक भी मन में भक्ति जागृत न हो तो वह भगवान की नजर से उतर जाता है। मनु ने स्वयं विरह गीत में गाया कि हे प्रभू, हमारे हृदय में वैराग्य कब जागेगा। श्रीकृष्ण स्वयं 11 वर्ष बाद माता-पिता से मिलकर गुरूदेव के चरणों में चल गये थे। उन्होंने जीवनकाल का सदुपयोग किया, इसीलिये पूर्ण अवतार माना जाता है। हम भी भोजन व भवन के स्थान पर भजन को महत्व दें।
बुधवार को खचाखच भरे पांडाल में खान व गोपालन मंत्री प्रमोद जैन भाया, जिला प्रमुख उर्मिला जैन भाया, श्री पाश्र्वनाथ मानवसेवा चेरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष यश जैन भाया एवं पारख-कोठारी परिवार के सदस्यों ने विराट पांडाल में उपस्थित हजारों भक्तों के साथ श्रीमद् भागवत आरती की। गुरूवार को 7 दिवसीय श्रीमद भागवत कथा में 12 से 3 बजे तक प्रवचनों के बाद पूर्णाहूति से समापन होगा।
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