वो जब भी हमसे कहीं मिला करते हैं,
पता नहीं क्यों बहुत गिला करते हैं।
यही मेरी शख्सियत यही पहचान है,
पांव जमीं पर रखके चला करते हैं।
उल्फतें, नफरतें, माथे पर सिलवटे हैं,
फटे कपड़े खुद ही सिला करते हैं।
ख्वाहिशें दबाकर रखेंगे कब तलक,
गरीबों के दिल भी तो मचला करते हैं।
बारिश में धुल गया है बदन उनका,
सर पर जो मिट्टी लेकर चला करते हैं।
मिल जायेंगे ख़ाक में सारे घरौंदे,
झोंपड़ों में क्यों चराग जला करते हैं।
क्यों रखता है खबर शहर की ‘आर्यन’
अब तो यहां काम से मिला करते हैं। आर्यन
Guest Poet – आर्यन (R.N. NAGAR) kota , SR. TEACHER

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