राजस्थान कांग्रेस मे हालात विस्फोटक स्थिति मे पहुंचते नजर आ रहे है।।
गहलोत-पायलट खेमे के मध्य जारी टकराव व एक दुसरे पर दवाब बनाने के चक्कर मे सरकार गिर भी सकती है
गेस्ट ब्लॉगर अशफाक कायमखानी
जयपुर।
एक साल पहले गहलोत-पायलट समर्थक विधायकों के मध्य छीड़े टकराव के समय मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा था कि राजनीति मे जो दिखता है वो होता नही। ओर जो होता है वो नजर आता नही। वर्तमान समय मे राजस्थान कांग्रेस व सरकार मे जो कुछ होता नजर आ रहा है। वो वास्तव मे हो नही रहा है। वास्तव मे दोनो नेताओं व उनके समर्थकों के मध्य जो कुछ दिल्ली लेवल मे टकराव चल रहा है वो भयानक स्थिति धारण करता जा रहा है।
पीछले साल के टकराव के समय पायलट को लेकर मुख्यमंत्री की जबान काफी फिसल गई थी।जिससे मुख्यमंत्री गहलोत की कथित बनाई गई गांधीवादी छवि पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ा था। वर्तमान समय मे पायलट ने पहले की तरह चुप्पी साद रखी है। तो गहलोत ने पहले की घटना से सबक लेकर अब स्वयं ने चुप्पी धारण करके अपने समर्थक कांग्रेस विधायकों के साथ समर्थक निर्दलीय व बसपा से कांग्रेस मे आये छ विधायकों मे से पांच विधायकों को आगे कर रखा है। जो विधायक लगातार पायलट पर हमलावर हो रहे है। बसपा से कांग्रेस मे आये छ विधायकों मे से एक नगर विधायक वाजिब अली टकराव के समय भारत की बजाय आस्ट्रेलिया अपना कारोबार देखने चले जाते है। बाकी पांच विधायक बैठक करके एवं प्रैस ब्यानो के मार्फत लगातार पायलट पर हमलावर है। बसपा से आये हुये व निर्दलीय विधायक 23-जून को जयपुर मे एक होटल मे इकट्ठा होकर दिल्ली मे G_23 की तरह G_19 बनाकर रणनीति बनाकर यह ऐहलान कर सकते है कि गहलोत की जगह पायलट मुख्यमंत्री बनते है तो वो कांग्रेस सरकार का समर्थन नही करेगे।
राजनीति के जानकार बताते है कि मंत्रीमंडल विस्तार व राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर जो टकराव अखबारों व आम चर्चा मे नजर आ रहा है वो असल मे टकराव ना होकर हाईकमान के सामने ढाई ढाई साल के मुख्यमंत्री रहने का तय होने वाला वादा असल टकराव बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री गहलोत दो महीने किसी से नही मिलने के सियासी बूखार की चपेट आने के बावजूद घर से पूरी तरह सक्रिय होकर पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिये राजनीतिक गोटियां फिट करने मे लगे है। हाईकमान के दवाब के चलते गहलोत मंत्रीमंडल विस्तार व राजनीतिक नियुक्तियों के लिये तो तैयार है। पर किसी भी हालत मे मुख्यमंत्री पद से हटने को तैयार नही है। चाहे प्रदेश मे कांग्रेस सरकार रहे या नही रहे।
पीछले कुछ दिनो से गहलोत व पायलट समर्थक विधायकों के एक दुसरे पर हमलावर होने से दोनो नेताओं के अलावा कांग्रेस पार्टी को काफी नुकसान हो रहा है। गहलोत-पायलट की चुप्पी के बावजूद दोनो के समर्थकों द्वारा गहलोत व पायलट को टारगेट करके शब्दबाण व पोस्टर वार करके गढ्ढे मुर्दे उखाड़ने जा रहे है। 21-जून को दिग्गज किसान नेता व कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष चौधरी नारायण सिंह ने बीना नाम लिये सचिन पायलट की बात का समर्थन व मुख्यमंत्री पर हमला करते नजर आये। तो आज गहलोत समर्थक निर्दलीय विधायक रामकैश मीणा सीधे तोर पर पायलट पर हमला करते हुये पायलट को प्रदेश से बाहरी होना बताते हुये कहा कि उनका राजस्थान मे कोई लेना देना नही है।
बसपा से कांग्रेस मे आये छ विधायक अब कांग्रेस विधायक होने के बावजूद वो अपने आपको अलग किसके इशारे पर दिखाकर ब्यानबाजी व बैठकें कर रहे है। उनपर कांग्रेस संगठन कुछ करने को तैयार नही। यही विधायक कल 23-जून को निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर होटल अशोका जयपुर मे बैठक करके रणनीति बनाने की कह चुके है। बताते है कि यह सभी विधायक पायलट को रोकने के लिये हाईकमान को समर्थन देने के मुद्दे पर धमकी दे सकते है। इन विधायकों का बैठक करके अपने आपको कैद करके यह दवाब का एक तरीका रहेगा।
कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री खेमा लगातार पायलट खेमे को टारगेट करके अलग अलग स्टोरी प्लांट करने मे लगा है। कभी सचिन पायलट खेमे के विधायको द्वारा निष्ठा गहलोत की तरफ बदलने व कभी प्रियंका गांधी द्वारा पायलट को मिलने का समय नही देने व कभी कांग्रेस हाईकमान द्वारा उन्हें फटकार लगाने की खबरें उछाली जाती है। जबकि वर्तमान मे चल रहे घटनाक्रम की असलियत उक्त प्लांट खबरो से एकदम अलग बताते है। मुख्यमंत्री गहलोत किसी भी सूरत मे पद छोड़ने को तैयार नही बताते है। देखना होगा कि पायलट मुख्यमंत्री पद की बजाय मंत्रीमंडल विस्तार व राजनीतिक नियुक्तियों के वादे को मंजूर करते है। कुछ भी कहे लेकिन अगर टकराव के यही हालात बने रहे तो राजस्थान की सरकार आगे चलकर गिर भी सकती है।
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