“भैया.. मेरा चेहरा ठीक से नहीं आ रहा है, दोबारा लेना ।” “एक और लेते हैं, लगना चाहिए ना कि हमने भी कुछ किया है ।”

आजकल ऐसे वाक्य हर दिन कहीं न कहीं सुनने को मिल जाते हैं । बड़ा ही आम मसला हो गया है ये जिस पर किसी की नज़र नहीं जाती और अगर जाती भी है तो सब पीठ पीछे ही बोलते हैं कि ऐसा रवैया ठीक नहीं ।
मैं बात कर रहा हूँ हर छोटे-मोटे कामों के फ़ोटो में अपना चेहरा बाकी लोगों से ज्यादा चमकदार बनाकर ज्यादा से ज्यादा प्रसिद्धि या आजकल की भाषा में कहे तो लाइक्स पाने की लोगों की चाह की ।।
आप लोगों ने भी काबिल-ए-ग़ौर फरमाया होगा कि आजकल ऐसे कई सारे फोटोनशीं मिल जाएंगे जिनसे कि रोज़ाना अख़बार भरे पड़े रहते हैं ।
“आज हमने ये किया.. आज हमने वो किया..”
अच्छा काम करना बहुत अच्छी बात है, मग़र उस अच्छे काम को पूरी दुनिया के सामने बढ़ा-चढ़ाकर बताने से क्या हासिल होता है? सिर्फ कुछ लोगों की शाबाशी.. जिनको उन फोटोनशीं जनाबों के बारे में पूरी जानकारी रहती है कि फलां व्यक्ति किस प्रकार का है और कैसे उसकी फ़ोटो यहां तक पहुँची हैं ।
आप सभी को पता है कि पुराने दौर की कहावत थी – “नेकी कर और दरिया में डाल..” और आज देखा जाए तो रोज़मर्रा के दौर में ये कहावत भी बदल सी गयी लगती है – “कुछ भी कर और सोशल मीडिया में डाल..!!”

समाचार में हैडलाइन आती है कि फलां के जन्मदिन पर फ़ल वितरित किये.. और उधर फ़ोटो सब पोल खोल देता है कि 10 जनों ने मिलकर एक मरीज को 1 केला वितरित किया । ऐसे स्वयम्भू नेता जिनको उनकी गली के 20 लोग भी नहीं पहचानते हैं उनके जन्मदिन पर या किसी पद पर नियुक्ति मिलने पर पूरे जिले या पूरे राज्य से बधाइयाँ मिल जाती हैं…(और उन्हें पद कौनसा मिलता है ये आप सभी को भी अच्छे से पता है इसलिए जिक्र नहीं कर रहा हूँ)
अभी कोरोना महामारी के समय भी लोग अपनी शेखी दिखाने की आदतों से बाज़ नहीं आ रहे हैं ।
एक तरफ फेसबुक पर, व्हाटसअप स्टेटस पर फोटोनशीं व्यक्तियों द्वारा वैक्सीन की 1 डोज़ लगवाने के बाद ही पूरे देशभर के आमजनों को वैक्सीन लगवाने की सलाह दी जा रही है । (उम्मीद करता हूँ उनकी सलाह आप तक भी जरूर पहुंच ही गयी होगी)
वहीं दूसरी तरफ खबर छपती हैं कि किसी एक राजनीतिक पार्टी के समर्थकों के द्वारा उचित स्तर पर ज्ञापन दिया गया.. अच्छी बात है भाई आपने ज्ञापन दिया.. मग़र उधर इनकी फ़ोटो फिर से पोल खोल रही है कि सोशल डिस्टेंस कैसे मेंटेन की जाए..? एक ही फ़ोटो में छोटी सी जगह में बेतरतीब खड़े लोग.. (जिनके बीच में यदि कोरोना वायरस आ भी जाए तो बेचारा ख़ुद ही दम घुटने से मर जाए) आखिरकार उन्हें भी उनके बड़े नेताजी की तरह ही सोशल डिस्टेनसिंग मेन्टेन करवानी रहती है वरना वो उनके चेले किस बात के..??
और मास्क का तो कहना ही क्या…
आधे लोगों का मास्क फ़ोटो खिंचवाने के चक्कर में गायब है.. तो आधे जनों का मास्क दाढ़ी तक लटका हुआ है (जान बचाना मजबूरी है, मग़र फ़ोटो में चेहरा दिखना उससे भी ज्यादा बड़ी मजबूरी है)
इससे भी ज्यादा मज़ेदार वाकया तब होता है जब 19-20 साल के सींकिया पहलवान टाइप के लड़के खुद को युवानेता, छात्रनेता बताते हुए बड़ी शान से अपनी आधी पकी मूंछों पर शहीद भगतसिंह की तरह ताव देते नज़र आते हैं । महज़ एक फ़ोटो की चाह में….

मेरे प्यारे भाइयों, आपके द्वारा किये गए अच्छे कार्यों से और लोग भी प्रेरणा लेकर अच्छे कार्य करें, जरूरतमंदों की मदद करें.. ये हम भी चाहते हैं ।
मग़र इस बात का आपको इल्म भी है कि उन बेचारे जरूरतमंद लोगों के दिलों पर क्या बीतती होगी जिनके चेहरों को आप अपने चेहेरे चमकाने के चक्कर में पूरी दुनिया के सामने फीका कर देते हो । उनकी मजबूरी है ये इसलिए वो आपके फ़ोटो में एक बनावटी मुस्कान लाकर आपके फ़ोटो को चार चाँद लगा देते हैं वरना अपनी गरीबी किसी को भी दिखाना अच्छा नहीं लगता साहब ।
तो अंत में आप सभी से ये ही कहना चाहूंगा कि अच्छा काम जरूर करो.. दिल खोलकर करो.. बस ये झूठा दिखावा मत करो क्योंकि ये पब्लिक है ये सब जानती है कि कौन दिलदार है और कौन फोटोनशीं..
जो महज़ एक फ़ोटो की चाह में….
– गेस्ट ब्लॉगर दीपाश जोशी (अध्यापक)
झालरापाटन, झालावाड़, राजस्थान
