पहली फांसी पाने वाली शबनम केस की इनसाईड स्टोरी पढ़िए गेस्ट कॉलम में मुदस्सिर मुबीन की कलम से

Sufi Ki Kalam Se

शबनम केस की इनसाईड स्टोरी पढ़िए गेस्ट कॉलम में मुदस्सिर मुबीन की कलम से

गेस्ट ब्लॉगर मुदस्सिर मुबीन (लेक्चरर राजस्थान)

मंटो क्या मैं कहता हूं- टट्टी में सड़ा हुआ और बदबूदार समाज , सड़ा हुआ और बदबूदार ही इंसाफ कर सकता है । अगर यह फांसी इस्लाम के हिसाब से होती तो समाज के हर शख्स को फांसी मिलनी चाहिए। दूसरे की बेटी को माल और रजाई के अंदर पोर्न वीडियो देखने वाले लोग यही कहेंगे कि शबनम को फांसी जरूर मिले। इस्लाम की तालीमाता की सरेआम धज्जियां उड़ाने वाले लोग इस्लाम के हिसाब से फांसी देने की बात करेंगे। भाभी और साली को आधी घरवाली समझने वाले समाज से कोई अच्छी उम्मीद कैसे कर सकते हैं ?कि वह शबनम के बारे में सही राय कायम कर सकता है। जब मेरी बेटी या मेरी बहन मेरे सामने इस तरह का रिश्ता लेकर आएगी तो मेरी मर्दाना हस फड़कने लगेगी । लेकिन वही बेटी और बहन मुझसे और घर से छुप छुप कर गैर लड़के से मिलने जाएगी , फोन पर बात करेगी तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता । फर्क तभी पड़ेगा जब वह किसी के साथ भाग जाएगी ।एक मजदूर का बेटा मेरी बहन और मेरे बेटी से इश्क करें ये किसने हक दे दिया की वह रिश्ता लेकर मेरे घर आए। मेरे घर पर तो पढ़ा लिखा ,आला खानदान का लड़का ,जिसके पास धन दौलत हो ,जिसकी राजनीतिक पहुंच हो वही आ सकता है ।मेरी मर्दाना हस अंदर से जाग उठेगी दूर-दूर के सब रिश्तेदार चाचा और ताया के लड़के जिन से बोलचाल बंद है, मूछों पर ताव देकर वह भी खड़े हो जाएंगे और कहेंगे ऐसा कैसे हो सकता है ?हमारे खानदान की लड़की मजदूर के घर में कैसे जा सकती है ? दूसरी जात के घर में कैसे जा सकती है ।दिनभर इत्तिहाद का रोना रोने वाला ढोंगी मौलाना कैसे गवारा कर सकता है उसकी बेटी किसी दूसरे जात के लड़के से शादी करें। आलीशान शादी के स्टेज पर तकरीर करने वाले कौम के लीडर सीरत की बुनियाद पर रिश्ता करने पर जोर देते हैं। लेकिन जब उनके घर में किसी गरीब का रिश्ता आता है तो वो उनके मेयार पर फिट नहीं बैठता।

समाज के अंदर एक बीवी के होते हुए अगर कोई दूसरी लड़की से सुन्नत के मुताबिक निकाह करता है सबको ऐतराज है, और सब चौराहो पर बैठकर उस निकाह को इतना बुरा बना देते हैं कि समाज में कोई दूसरे निकाह की सोचता भी नहीं है । लेकिन वह शख्स खुलेआम उसी लड़की से जिना करता रहे, किसी को कोई एतराज नहीं है। यही है हमारा समाज ।लिखने को बहुत कुछ है लेकिन आखिर में यही कहना है शबनम ने अपने घरवालों से कहा था और सीरत की बुनियाद पर वह लड़का बहुत अच्छा था। जिसकी गवाही इसके पड़ोसी भी दे रहे थे। लेकिन एक जागीरदार और पढ़े-लिखे खानदान को यह बात पसंद नहीं थी कि कोई मजदूर का बेटा m.a. की हुई बेटी से निकाह करें अल्लाह के रसूल की सीरत की बुनियाद पर रिश्ते को तरजीह देने की बात बे फायदा लगी |क्योंकि हम इस्लाम को अपने हिसाब से अपनाते हैं। नीचे जो पिक अपलोड की है उनमें लिखे हुए को भी एक बार पढ़ ले। शबनम भी इस लकवा ग्रस्त समाज के सामने गिडगिडाई थी , लेकिन औरत को पैर की जूती समझने वाला यह समाज जिसकी मर्दाना नस टूटी हुई है ।कब गवारा कर लेता कि एक औरत किसी चीज को पसंद करे और वह उसे मिल जाए।
@ गेस्ट ब्लॉगर मुदस्सिर मुबीन (लेक्चरर राजस्थान


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