गेस्ट ब्लॉगर कॉलम में पढ़िए सूरत (गुजरात) के पत्रकार महेश शर्मा का राजस्थान के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के नाम खुला पत्र..
राजस्थान के शिक्षा मंत्री जी के नाम खुला पत्र
आदरनीय मंत्री जी,
सादर नमस्कार
आपने बिल्कुल सही कहा कि आपका घर नाथी का बाड़ा नहीं है। मै आपकी इस बात का पुरजोर समर्थन करता हु। आपका विरोध कर रहे लोगों को शायद नाथी का बाड़ा के इतिहास की जानकारी नही है। वो आपको तो जानते है लेकिन नाथी को नही। आज यदि नाथी जिंदा होती या फिर जनप्रतिनिधियों का घर भी नाथी के बाड़ा का अहसास भर करा रहा होता तो प्रदेश की जनता को रामराज्य के नागरिक होंने की अनुभूति हो रही होती।
खैर, आपका विरोध कर रहे लोगो को पहले नाथीबाई का बाङा की कहावत की सत्य कहानी बताता हूं।
राजस्थान के पाली जिले के पालीवाल समाज में, 60 खेङा के एक छोटे से गांव भागेसर मे एक बाल विधवा नाथीबाई पालीवाल ( तेजङ) गौत्र मुदगल से थी।
कहते है यह कहानी करीब डेढ़ सौ – दो सौ साल पहले की है। नाथीबाई के विवाह के सालभर बाद ही उसके पति देवलोक सिधार गये थे। समाज की प्रथा के अनुसार पुनर्विवाह नही होने के कारण, नाथीबाई का घर परिवार गाँव व खैङो मे नाथीबाई का बहुत ही आदर भाव व मान होता था। मान आदर भाव के कारण परिवार व गाँव के लोग कोई भी काम करते तो नाथीबाई को पूछ कर करते थे। इस तरह धीरे धीरे उम्र दराज होते हुए नाथीबाई, घर, परिवार,गाँव की मुखिया बन कर हर तरह लेन देनदारी करती रहती थी।
कहते है कि नाथीबाई के परिवार के पास अपार धन सम्पति होती थी। नाथीबाई अपने पोल मे लकडी के पाट पर बैठी रहती थी।
कहते है कि किसी भी गाँव या खैङा व किसी जाति के व्यक्ति के परिवार मे शादी-विवाह, मायरा, भात व कोई काम के लिए रूपयो पैसो की जरूरत होती तो हर आदमी नाथीबाई के पास आता था और रूपयो पैसो की जरूरत बताता तो, नाथीबाई हाथ से एक बारी (अलमारी) की ओर इशारा करती कि जितने चाहिए, उतने ले जा और कोई अन्य व्यक्ति आता और रूपयो पैसो की जरूरत बताता तो, एक अन्य बारी अलमारी की ओर इशारा करती, जितना चाहिए उतना ले जा। इस प्रकार जिस किसी व्यक्ति को रूपयो पैसो की जरूरत होती तो हर व्यक्ति नाथीबाई के पास आता और नाथीबाई अलग अलग अलग बारियो की ओर इशारे करती थी और जिस व्यक्ति को जितने रूपयो पैसो की जरूरत होती, अपने इच्छा अनुसार या जितनी जरूरत होती उतने ले जाता था और साल दो साल बाद हर व्यक्ति जिन्होने उधार पैसै लेकर गये थे, अपनी ईमानदारी से नाथीबाई के पोल मे आकर कहते नाथीबाई आपके ब्याज ( सुद) समेत रूपयो लो, तो नाथीबाई कहती जहाँ से लिये उसी बारी (अलमारी) मे रख जा…।
इस प्रकार नाथीबाई के पास कोई हिसाब किताब व लेखा जोखा नही लिखा जाता था, ना ही जो व्यक्ति रूपयो लेकर गया, उससे हिसाब पुछा जाता था। इस प्रकार किसी भी प्रकार की लिखा पढी नही होती थी..। नाथी के घर को बाड़ा कहा जाता था। हर किसी जरूरतमंद का सम्बल था नाथी का बाड़ा।
और कहते है कि…नाथीबाई जिस किसी गाँव या खैङो मे जाती थी, तो वह जिस गाँव मे रात्री विश्राम या ठहरती तो, सनातन संस्कृति के आधार पर जात पात से दूर नाथीबाई पुरे गाँव को खाना खिलाती थी…।
इसके अलावा भी कई किस्से प्रचलन में है, नाथी बाई के, चूंकि ये सनातन परंपरा से जुड़ी ईमानदारी की सीख देने वाली कहावत थी…..।
इसलिए आदरनीय मंत्री जी, आपने सच कहा कि आपका घर कोई नाथी का बाड़ा नही है। कहां नाथी कहा आप। घर को नाथी का बाड़ा बनाने के लिए समता की आंख, क्षमता के हाथ और विन्रमता का भाव चाहिए। तब जाकर कोई घर नाथी का बाडा बन पाता है। यह तो शिक्षकों की ही भूल थी कि वो आपके और नाथी के व्यक्तित्व और कृतित्व को समझ नही पाए।
एक बार फिर कहता हूं कि आपने सच कहा श्रीमान, आपका घर नाथी का बाड़ा कतई नही हो सकता।
महेश शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
सूरत, गुजरात
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