सदर हाजी इमामुद्दीन देशवाली, ऐसी शख्सियत जिसे किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है अपने संपूर्ण जीवन में उनके संपर्क में जो भी आया उसके दिलों में अमिट छाप छोड़ गये हैं
उनके लिये लिखने को बहुत हैं मगर मुख्तसर सा लिखने से मे खुद को रोक नहीं पा रहा हू आपने अपने जीवन में राज्य सरकार के सर्वोच्च कार्यालय (मुख्यमंत्री कार्यालय ) मैं अधिकारी के पद पर रहते हुए भी सदैव मिलनसार एवं साधारण व्यक्तित्व रखते थे प्रत्येक मिलने वाले से हंसकर मिलते थे और उनकी उपस्थिति से माहौल सकारात्मकता से भर देते थे यदि कोई भी उनके पास में मदद के लिए जाता तो वे उनकी यथासंभव मदद अवश्य किया करते थे और हमेशा आधी रात को भी मदद के लिए तैयार रहते थे
अपने पारिवारिक रिश्तो पर इतनी गहरी पकड़ एवं सहयोगात्मक रवैया था कि वह कोई भी रिश्तेदार चाहे वह ससुराल पक्ष का हो या अन्य कोई भी सब की परेशानी मुसीबत मैं मदद के लिए सबसे आगे खड़ा पाता था
पारिवारिक सदस्यों में छोटे से छोटे सदस्य को भी भरपूर इज्जत देते थे एवं उत्साह वर्धन करते रहते थे हमेशा नमाज पढ़ने की ताकीद करते रहते थे किसकी मदद कैसे करते थे अन्य सदस्यों को इसकी भनक तक नहीं होती थी महत्वपूर्ण बात यह के संपूर्ण परिवार को एकता के धागे में पिरोने वाली मजबूत कड़ी थी किस सदस्य को किस तरह से समझाना है कि उन्हें भरपूर आता था
हाजियों की खिदमत करने का उनमें एक जज्बा था इसके लिए चाहे फ्लाइट कितने भी बजे आए वह अपनी टीम के साथ सदैव तैयार रहते थे हाजियों को किसी किस्म की कोई परेशानी ना हो इसके लिए सदैव कोशिश में रहते थे
अपनी सेवानिवृत्ति के पश्चात घर पर बैठे रहने वाली वह शख्सियत नहीं थी इसलिए समाज के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा देने का मन बना लिया था इसलिए सदर देशवालियान चौरासी का चुनाव लड़ा और समाज ने उन्हें भारी मतों से विजय बनाया
अल्लाह के हुकुम से समाज ने उन्हें सदारत दी देशवालियान समाज चौरासी सदर चुने गए मगर अफसोस नेक बंदों को अल्लाह अपने आप पहले बुलाता है (सब मखलूक को मौत का मजा चखना है )अपने जीवन काल में कभी इतने गंभीर बीमार नहीं हुए सदैव चाय वगैरह से परहेज किया ऐसे थे हमारे फूफाजी सदर हाजी इमामुद्दीन देशवाली देशवालियान समाज चौरासी राजस्थान
अल्लाह ताला उन्हें जन्नत में आला से आला मुकाम अता फरमाए और तमाम घर वालों को सब्र अता फरमाएं।
– शोएबउल्लाह ख़ान
मदरसा पैराटीचर (दौसा)
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