दोस्ती, किताबों से

जब से मैं स्कूल जाने लगा,
जाने अनजाने में भेंट हुई
मन ही मन,
आपको चाहने लगा।
जानता न था कुछ भी ,
आपके बारे में,
करता था बातें आपसे,
बैठकर चौबारे में।
जान पहचान कराती थी आप,
दुनिया के बारे में,
कुछ समझा ना समझा,
हिला देता था सिर,
हां के इशारे में ।
धीरे-धीरे जाने लगा खूबियां,
मैं बन गया मिट्ठू मियां।
जो भी सिखाया आपने,
गुनगुनाता रहा,
दिन में ,रात में ।
आप भी खुश होती ,
मेरी इस बात में ।
जब चाय पीता,
खाना खाता,
आप हर वक्त होती,
मेरे साथ में।
पता ही नहीं चला ,
कैसे बन गए दोस्त,
रहते-रहते,
एक दूजे के साथ में।
घर में, खेत में
बस में, ट्रेन में
आप रहने लगी
पल -पल
मेरी ब्रेन में।
जब मैं गया ,
अपनों से दूर;
कभी हंसाया,
कभी रुलाया।
सारी सारी रातें गुजारी,
मैंने आपके साथ में ।
कितनी परोपकारी हैं आप!
हर वक्त कुछ नया देती हो,
बदले में,
कुछ भी तो नहीं लेती हो़़़
चरित्र निर्माण कर देती हो,
और जो करता है दोस्ती आपसे़़़
उसका करा देती हो,
मिलन मंजिल से।
अगर,
कोई तुम्हें
करें मोहब्बत ….
सच्चे दिल से ………..
देवेंद्र गौतम


18 thoughts on “विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर पढ़िए, गेस्ट पॉएट देवेन्द्र कुमार गौतम की कविता “दोस्ती, किताबों से’”
Comments are closed.