छोटा इंसान रोज़ी कमाने में लगा है।
बड़ा अपना सिक्का जमाने मे लगा है।।
अभी भी वक़्त है बेदार हो जाओ लोगो।
जमाना इंसानियत को मिटाने में लगा है।।
मोहब्बत ही है जहाँ में अमन का इलाज।
तू क्यों शौक से नफ़रतें बढ़ाने में लगा है ।।
और तारीख़ उठाकर देख इंसा अपनी।
तू ख़ुदा के कहर को भुलाने में लगा है।।
ज़रा सी हुक़ूमत क्या हुई आदम तेरी।
गफ़लत में है कि दुनिया चलाने में लगा है।।
ये शान,माल यहीं रह जाएंगे “क़ाज़ी”।
आख़िर क्यूँ तू इसमें समाने में लगा है।।
गेस्ट पॉएट आरिफ क़ाज़ी
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