13 अगस्त सन् 1980 को मुरादाबाद (यू.पी.) मे ईद के दिन ईदगाह मस्जिद में हुऐ गोलीकांड जिसमें 83 नमाजी शहीद हुए उस पर मांगरोल के शायर जनाब मोहम्मद रफीक ‘राही’ साहब की एक दर्दभरी गज़ल
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खुशी का दिन कोई भी ईद से बेहतर नहीं आये।
मगर अफसोस कि यह ईद क्यों घर घर नहीं आये।।
खुशी महलों से छप्पर मे निकलकर क्यों नहीं आये
मुरादाबाद का आँखों में क्यों मंजर नहीं आये।।
वहाँ पर मासूम बच्चे अब भी माँ से पूछ लेते है।
कि अब्बा ईद पढ़कर आज तक क्यों घर नहीं आये।।
गये थे दुल्हा बनकर वो मगर लौटे तो किस तरह।
कोई बाजू गवां आये किसी के सर नहीं आये।।
वो कैसी ईद थी सारे शहर में कहर बरपा था।
कहीं बेटे, कहीं भाई, कहीं शौहर नहीं आये।।
ये उन लोगों की साजिश हे जिन्हें खुशियाँ नहीं भाती।
वगरना क्यों कहीं दुसरी जगह सुअर नहीं आये।।
मुरादाबाद जैसी ईद या रब फिर नहीं देना।
जहाँ से ईद पढ़कर लोग अब तक घर नहीं आये।। रफीक 'राही' माँगरोल
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दंगे की संक्षिप्त जानकारी जो आपको पता होनी चाहिए…
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