गेस्ट राइटर कॉलम मे पढ़िए बशीर शाह साईं की जबरदस्त कहानी जाति का कम्बल
राजेश सिंह का गांव पचपदरा शहर से पच्चीस किलोमीटर की दूरी पर था गांव का नाम पाटोदी था गांव का अतीत में बड़ा महत्व रहा था और इस क्षेत्र के जितने भी आस-पास के गांव थे सभी यहीं पर अपने जरूरत के सामान बेचने और खरीदने भी आते थे। और इस क्षेत्र में जागीरदार के तौर पर राजेश सिंह के पिताजी गंगा सिंह रुतबा था लोग उनको बहुत इज्जत देते थे हालांकि देश आजाद होने के बाद जागीरदारी तो नहीं रही, लेकिन गांव में इनके परिवार को वहीं पहचान और इज्जत अब भी थी राजेश सिंह को अपने कुल पर बड़ा गर्व था। होभी क्यों ना इनके गांव में इनके पिताजी के साथ ही इनका भी आदर और रुतबा कायम था। स्कूल से लेकर घर जाने तक सारी सुविधाएं जो इनको मिलती शायद ही किसी गांव वाले को मिल रही हो ।लेकिन जातिवाद यहां पर भी एक धब्बे की तरह कायम था जहां पर उच्च वर्ग और निम्न वर्ग की परंपराएं अब भी फल-फूल रही थी और लोग धर्म के डर से बड़े लोगों के रौब से अभी अपने जाति के अनुसार ही व्यवहार करते थे जो गरीब परिवार थे उनका अपने धर्म के अनुसार जातियों के धर्म को निभाना अघोषित रूप से अनिवार्य था आज राजेश सिंह अपने कुल को अन्य कुलों से सर्वश्रेष्ठ मानता था और निम्न वर्गों के लड़कों से दूर रहता था और उनके किसी भी चीज को छूता तक ना था। और कोई भी उनको छूने की जुर्रत भी नहीं करता था। समय के साथ परिस्थितियां बदल रही थी राजेश सिंह को अपनी पढ़ाई को लेकर जयपुर जाना पड़ा। वहां का माहौल कुछ अलग था ।वहां आजादी भीथी, अपने तरह से जीने की ।राजेश सिंह भी इस माहौल को पाकर यहां पर इसी माहौल के अनुसार ढल चुका था। लेकिन गांव में उसकी जो धाक थी उसको छुड़ाना उसके लिए मुश्किल था सर्दी का मौसम था घर से फोन आया घर में कोई शादी का कार्यक्रम है तो गांव आना है राजेश को पता था कि गांव की शादी मैं मौज ही मौज है और चूंकि घर वालों ने बुलाया है तो जाना तो है ही खैर जयपुर से टिकट बुकिंग करवाया और शाम के वक्त ही जयपुर से निकलने का प्लान बना लिया और उसने टिकट एसी बस का बनवाया था तो उसे इस बात का ख्याल ही नहीं रहा कि सर्दी ज्यादा है और कपड़े भी इस हिसाब से लेने पड़ेंगे। जल्दबाजी में उसने अपना बेग उठाया और स्टेशन की ओर चल पड़ा वहां से सीधा पचपदरा तक यह बस आती थी और आगे कोई नियमित साधन नहीं था दिन में बसे चलती थी और रात में कोई अपना पर्सनल वाहन लेकर ही आता जाता तो जान पहचान के हिसाब से गाड़ी को रोककर पाटोदी तक पहुंचा जा सकता था।खैर राजेश गाड़ी में चढ़ गया और अपनी सीट पर बैठकर मोबाइल देखने लगा और गाड़ी अपनी मंजिल की तरफ रफ्तार से बढ़ने लगी।समय का ख्याल ही नहीं रहा ।और देखते ही देखते मोबाइल स्विच ऑफ हो गया। और उसे नींद आ गई चूँकि बस ऐ.सी वाली थी तो ज्यादा परेशानी नहीं हुई। लेकिन बस ने पचपदरा सुबह चार बजे लाकर छोड़ दिया। बस आगे बालोतरा जाती थी इसलिए पचपदरा बाईपास पर ही सवारिया उतर जाया करती थी और राजेश को भी पुल के पास उतरना पड़ा सर्दी की रात और सुबह चार बजे जैसे ही गाड़ी से नीचे उतरा। उसे सर्दी का एहसास हुआ उसने अपने बैग को टटोला। तो सिवाय रुमाल के, कपड़े के नाम पर उसके पास और कोई ऐसी वस्तु ना थी जिससे इस सर्दी का मुकाबला किया जा सके। अब राजेश को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने सोचा कि अगर कम्बल ले आता तो अच्छा रहता। लेकिन अब क्या करें? अब कोई सहारा नहीं और बस आएगी सुबह आठ बजे यानी कि चार घंटे तक इस सर्दी में उसे ऐसे ही रहना पड़ेगा। मोबाइल को टटोला तो मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज होने के कारण मोबाइल स्विच ऑफ हो चुका था रात के अंधेरे में इस सड़क पर वह किस से मदद मांगे और क्या करें? बड़े ही उलझन में फंस गया था धीरे-धीरे सर्दी ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो राजेश की सिटी-पिट्टी गुम हो गई वह इधर उधर सड़क पर चहलकदमी करने लगा। और किसी गाड़ी के आने का इंतजार करने लगा। लेकिन सर्दी के मारे उसके पूरे शरीर में कंपन तारी हो गया। अब वह सिर्फ और सिर्फ अपने गांव तक पहुंचने के लिए किसी निजी वाहन के आने और उसमें जगह मिलने की आशा से इंतजार कर रहा था एक घंटा के इंतजार के बाद उसे बालोतरा से एक जीप गाड़ी आती दिखाई दी। उसने अपनी जेब से हाथ बाहर निकाला और रोकने के लिए इशारा किया ।जीप के ड्राइवर ने राजेश को देखा वह उस को पहचानता था उसने गाड़ी को रोक दिया राजेश दौड़ कर ड्राइवर के पास जा पहुंचा और बोला मुझे पाटोदी चलना है जगह मिलेगी ड्राइवर ने देखा और सीट पर बैठने का इशारा किया। राजेश ने अपने आप को संभाला और फटाक से सीट पर बैठने के लिए गाड़ी के ऊपर लगे लोहे के हैंडल को पकड़ा तो उसे एहसास हुआ उसके हाथ तो बर्फ हो चुके थे हाथो में ठंड से अकङनआ चुकी थी वह जैसे-तैसे सीट पर बैठा सीट की ठंडक ने उसे कराहने पर मजबूर कर दिया। क्योंकि हवा और सर्दी की वजह से सीट भी ठंडी हो चुकी थी और गाड़ी में साइड से हवा भी बड़ी तेज आ रही थी अब वह सोच रहा था कि आज किसी तरह घर पहुंच जाऊं तो शायद अच्छी बात है थोड़ी ही देर में ड्राइवर ने बात करने की इच्छा से राजेश को देखा और कहा “बन्ना श्री आज इतनी सर्दी में और बिना कंबल के कहां गए थे” रजेश को होश आया कि वह बात उससे ही कर रहा था लेकिन उसने राहुल को पहचाना नहीं। आवाज को पहचाना”अरे”! यह तो उसी गांव का रामू भील का लड़का था जो यहा दूध की गाड़ी चलाता था और वह बालोतरा से दूध लेकर वापस गांव जा रहा था और उसके लिए सहारा बना है लेकिन इस सर्दी में बोलना भी उसके लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था। लेकिन अब उसके पास सिवाय इसी तरह पाटोदी पहुंचने के अलावा कोई चारा न था। थोड़ी देर में पचपदरा में पहुंच चुके थे राहुल ने कहा” बन्नाश्री यहां पर मुझे कुछ दूध के कैम्पर उतारने है तब तक आप यहां गाड़ी में बैठे रहे फिर गांव चलते हैं राजेश की तो सर्दी के कारण बोलती बंद हो रही थी और उसका दिमाग सुन पड़ गया था उसने अपना सर हिला दिया राहुल नीचे उतरा तो देखा राजेश ठण्ड से बहुत ज्यादा कांप रहा है तो राहुल ने कुछ सोचा और कहा” बन्ना श्री आप पीछे वाली सीट पर बैठ जाओ तब तक मैं वापस आता हूं” राहुल को पता था कि इस समय राजेश को सर्दी से बचने की बहुत आवश्यकता है लेकिन वह भी मजबूर था ।क्योंकि उसकी जाति को गांव में दूसरे दृष्टि से देखा जाता था और खास करके राजेश सिंह के जाति वाले तो उनको दूर से ही झटक दिया करते थे। राहुल नीचे उतराऔर दूध देने के लिए एक छोटे से ढाबे मैं चला गया। चुंकि उसका रूटीन का काम था ढाबे वाले ने उसके लिए चाय बना कर रखी थी उसे पकड़ा दी लेकिन राहुल ने उससे कहा आज चाय नहीं पिएगा इसको पैक कर दो ढ़ाबेवाले ने चाय को पैक कर दिया।राहुल चाय को लेकर वापस गाड़ी की ओर मुड़ गया। इधर राजेश ने पीछे की सीट पर देखा और वह गाड़ी के अंदर से ही पीछे वाली सीट पर चला गया वहां पर उसे एक मोटा कंबल पड़ा हुआ मिला जो इस राहुल का ही था और वह इसको काम में लेता था ।लेकिन आज राजेश ने आव देखा न ताव उस कंबल को फौरन अपने शरीर पर लपेट लिया। और सिर को भी अंदर कर लिया और सीट पर दुबक कर बैठ गया मोटे कम्बल ने अपना असर किया। थोड़ी ही देर में राजेश सिंह को कुछ आराम महसूस हुआ कंबल से उसे काफी राहत मिली थी और उसका अवचेतन दिमाग अब काम करना शुरू कर चुका था और अब वह सोचने लगा अरे यह कंबल तो ड्राइवर का है और यह रामू भील का लड़का है और निम्न जाति से है ।लेकिन उसे इस कम्बल से ही इस सर्दी का बचाव हो रहा था तो उसे यथार्थ का ज्ञान हुआ। कि आज तक उसने जो भी अपने गांव में सोचा है और किया है वह तो गलत था ।तभी राहुल ने आवाज दी” बन्ना श्री लो यह चाय पी लो मैं आपके लिए चाय लाया हूं आपको इसकी जरूरत होगी? राजेश का ध्यान भंग हुआ और अब उसे वाकई में अपने होने का एहसास हुआ और उसे अब इस चाय की भी तलब थी और उसकी सर्दी भी इसी से जा सकती थी और उसके दिमाग की सर्दी तो राहुल की कंबल ने उतार ही दी थी उसने उससे चाय ली और पीना शुरू कर दिया। आज वह एक नया अध्याय पढ़ चुका था ।और उसको इस बात पर प्रायश्चित हो रहा था कि वह किस चीज पर गर्व कर रहा था और जिन से दूर रह रहा था वह भी इंसान ही है और यह तो एक तरह का पागलपन ही है, जो इस तरह का भेदभाव किया जा रहा था।राजेश के लिए एक नई सुबह होने वाली थी और जिस की तैयारी वह आज कर चुका था।
– बशीर शाह साईं, पाटौदी, बाड़मेर, राजस्थान
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