” मुक्ति ‘ आक्सीजन की कमी से लेकर श्मशान घाट के अंतिम संस्कार तक, वर्तमान दौर में एक आम आदमी की लूट की बेहद मार्मिक कहानी (गेस्ट राइटर अकमल नईम सिद्दीकी जोधपुर)
मैं शहर के एक निजी अस्पताल में बेड पर पड़ा हुआ था । मेरी नाक पर आक्सीजन मास्क लगा हुआ था । बेड की बग़ल में रखा हुआ टी वी नुमा मानीटर जो कुछ देर पहले अपनी चिरपरिचित गति के साथ टू टू की आवाज़ कर रहा था अचानक बेक़ाबू सा होने लगा। ऐसा लगता था कि उसकी सामान्य चलने वाली धड़कन अचानक बहुत बढ़ सी गई थी । टू टू टू टू ………
नर्स और डाक्टर भागते हुए मेरे बेड के पास आ चुके थे। डाक्टर ने अचानक ज़ोर ज़ोर से मेरे सीने को दबाना शुरू कर दिया था मगर मानीटर से आने वाली आव़ाज की गति कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी। ऐसा लगता था कि जैसे जैसे मेरी धड़कनें कम होती जा रही थीं मशीन की धड़कने बढ़ती जा रही थीं। फिर अचानक मॉनिटर पर ऊपर नीचे नाचने वाली लाइनों का ग्राफ शांत हो कर एक लाइन में तब्दील हो गया । मशीन की धड़कन भी शांत होकर एक समवेत बीप की आवाज़ में बदल गई थी।
डॉक्टर ने निराशा से भरी आवाज़ में नर्स की तरफ़ देखते हुए कहा ……………. “ओह नो ! ही इज़ नो मोर”
फिर अचानक नर्स से मुख़ातिब हुआ और कहने लगा “एक काम करो ये आक्सीजन फ़ौरन बेड नम्बर 4 पर पहुँचाओ …….. उसको आक्सीजन की ज़रूरत पड़ेगी ………….क्विक…….जल्दी “
“ओ के सर !” कहते हुए नर्स तेज़ी से आगे बढ़ी और उसने मेरी नाक से ऑक्सीजन मास्क उतार लिया । फिर उसने वार्ड बॉय को आवाज़ लगाईं “विकास ….विकास ….इधर आओ जल्दी ये ऑक्सीजन सिलेंडर 4 नंबर बेड पर शिफ्ट करो जल्दी”
वार्ड बॉय ने सिलेंडर सम्भाला और डॉक्टर के बताये बेड पर ले जाने लगा ।
मैं ज़ोर से चिल्लाया “अरे ! तुम लोग ये क्या कर रहे हो ? अभी मुझे इसकी ज़रूरत है ! “
मगर न नर्स को कुछ फ़र्क पड़ा न वार्ड बॉय विकास को ।
“में अभी मरा नहीं हूँ ! “ मैं फिर चिल्लाया । मगर मेरे चीखने का उन पर कोई असर नहीं हो रहा था ………………….
ये क्या हो रहा है ? …………………… अब मेरा सर घूमने लगा था ।
“सुनो ! ………..” नर्स ने वार्ड बॉय को आवाज़ देते हुए कहा “ ये बेड नंबर 2 के मरीज़ की डेथ हो गई है तुरंत इनके साथ वालों को ख़बर करो …………………….. बेड ख़ाली करना पडेगा ।“
बेड नंबर 2 पर तो मैं हूँ !…………….. अरे तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है क्या ? अरे सिस्टर इधर सुनो मैं मरा नहीं हूँ ! सिस्टर ………………. सिस्टर ……………… “ मैं चिल्लाया । मगर सब बेकार । कोई मेरी आवाज़ नहीं सुन रहा था ।
इतने में मैं ने, बदहवासी के आलम में आई सी यू में अपनी पत्नी, लक्ष्मी, को प्रवेश करते हुए देखा । उसके चहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं । वो दौड़ती हुई मेरे बेड के करीब आई …………………… उसने मेरी तरफ़ देखा ……………….. उसकी आँखों में बरबस ही आंसुओं का सैलाब उतर आया था …………….उसकी हिचकियाँ बंध गईं थीं ………………………. गर्म लावे की तरह दहकते हुए आंसू उसके गालों से लुढ़क कर मेरे गालों पर गिर रहे थे………………………………..
रोई तो वो चार दिन पहले भी थी लेकिन इस तरह खामोश नहीं थी जिस तरह आज है । उस दिन मेरी हालत बिगड़ते ही वो मुझे एक टैक्सी में लेकर राजकीय चिकित्सालय ले गई थी लेकिन चपरासी ने गेट से ही मना कर दिया था कि यहाँ कोई बेड ख़ाली नहीं है किसी और अस्पताल चले जाओ ………………. वो उस दिन अस्पताल के गेट के बाहर खड़ी रो रही थी ज़ारो क़तार ……………. प्लीज़ डॉक्टर को तो बुला दो …… एक बार देख तो ले .प्लीज़ …….”उसने चपरासी के सामने मिन्नत की ……………… मगर सब बेसूद …………… किसी का दिल नहीं पसीजा………..मिन्नते काम न आई……………. आंसू प्रभावित नहीं कर पाए……………… हर बार एक ही जवाब मिला बेड नहीं है ………….
तभी उसे अस्पताल का कम्पाउण्डर आता नज़र आया । वो तेज़ी से उसकी तरफ़ भागी और उसके सामने खडी हो गई “ भय्या प्लीज़ मेरे पति को एक बार देख लो प्लीज़ ……………….. उसने अपने दोनों हाथों को उसके सामने जोड़ लिया …………….. भय्या प्लीज़ इनकी हालत बहुत नाज़ुक है प्लीज़ …………………….. ।“
मुझे याद है शादी की पहली सालगिरह पर मैं ने सालगिरह भूलने का नाटक किया था । रात को उसने जब मुझे इसका उलाहना दिया तो मैं ने कहा था ……..”अच्छा तो मैडम को शादी की सालगिरह का तोहफ़ा चाहिए ! ठीक है , चलो लेकिन पहले अपने पति के सामने अपने हाथों को जोड़ो और कहो ! प्रिय पतिदेव मैं आपकी अर्धांगिनी आपसे शादी की सालगिरह का तोहफ़ा चाहती हूँ । तब मिलेगा “
“नहीं चाहिए तोहफ़ा ! “ लक्ष्मी ने तुनक कर जवाब दिया था ।
“और हाँ ये हाथ हैं न सिर्फ़ श्री राम जी के आगे जुड़ते हैं और किसी के आगे कभी नहीं जुड़ते, तुम्हारे आगे भी नहीं, और तुमसे कुछ लेना होगा ना तो तुम्हारा कान पकड़ कर ले लूंगी समझे ! छीन कर ले लूंगी ……………… इतना अधिकार है मेरा तुम पर ।“ उसने अपनी बात मुकम्मल की ।
मैं निरुत्तर था । मैं ने आगे बढ़ कर उसे सीने से लगा लिया था ।
मगर आज वही हाथ एक मामूली से चपरासी और कम्पाउण्डर के आगे जुड़े हुए थे ………………………….
कम्पाउण्डर ने बहुत विनम्रता से लक्ष्मी से कहा “देखिये भाभीजी ! सच यही है कि यहाँ बेड ख़ाली नहीं हैं और यहाँ आपके पति का इलाज नहीं हो पायेगा आप तुरंत इन्हें सिटी अस्पताल ले जाएँ । वहां डॉक्टर भी हैं और बेड भी । आप वहां जाकर काउंटर पर संपर्क करना । काउंटर पर राजेश मिलेगा उसे कहना हमें सुरेन्द शर्मा ने भेजा है । वो समझ जाएगा और आपका काम हो जायेगा । मैं भी अभी फोन कर देता हूँ आप जल्दी कीजिए । आप अपना नाम बताइये । लक्ष्मी ने बड़ी कृतज्ञता से सुरेन्द्र शर्मा की तरफ़ देखा और अपना नाम बताया ।………”लक्ष्मी”
मुझे सुरेन्द्र किसी फ़रिश्ते से कम नहीं लगा ।
नाम बता कर वो तेज़ी से टैक्सी की तरफ़ पलटी और टैक्सी वाले को सिटी अस्पताल चलने को कहा ।
“सिटी अस्पताल” …………………. “ये लक्ष्मी पागल हो गई है क्या ?………….. वो तो प्राइवेट अस्पताल है ………… सब लूट लेगा लक्ष्मी ……………….. मैं लक्ष्मी को रोकना चाहता था …………… लेकिन अलफ़ाज़ ज़बान के अन्दर जैसे क़ैद हो गए थे ………..”
जब साँसें उखड़ रही हों, दिमाग़ ऑक्सीजन की कमी से सुन्न हो रहा हो और कमजोरी से आँखे खुल ना पा रहीं हों तो ज़बान का क्या कसूर ……………….. उसके पास बोलने की ताक़त कहाँ से आयेगी ……………..ऐसे वक़्त में आप सिर्फ़ सोच ही सकते हो कुछ कर नहीं सकते …………..कुछ कह नहीं सकते …………. मेरा भी यही हाल था । मैं चाहता था लक्ष्मी को रोक लूँ ………….ज़ोर से चिल्ला कर कहूँ ये क्या कर रही हो ……………कहाँ ले जा रही हो तुम्हें पता भी है ……………… मगर सब बेसूद…….बेकार …………………..
और आज इसी सिटी अस्पताल के बेड पर मैं पड़ा हूँ ……………….निर्जीव …………………… मगर मैं मरा नहीं हूँ !
तभी नर्स ने लक्ष्मी के कंधे पर हाथ रखते हुए बड़ी आत्मीयता से उसे दिलासा दिया । इस वक़्त वो नर्स भी मुझे फ़रिश्ता सी लगा रही थी बिलकुल उस कम्पाउण्डर की तरह जिसके कहने पर लक्ष्मी मुझे यहाँ लाई थी ।
नर्स ने एक बार और लक्ष्मी को दिलासा दिया और उसे अपने साथ बाहर आने का इशारा किया । वो उसे काउंटर पर लेकर आ गई । काउंटर पर बैठे व्यक्ति को संबोधित करते हुए उसने कहा “बेड नंबर 2 के मरीज़ की डेथ हो गई है बेड क्लियर करना है जल्दी मैडम का बिल निकाल दो और पेपर फर्मिलिटीज़ पूरी करवा लो ताकि बॉडी मैडम को दी जा सके ।“
काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने सहमति में सर हिला दिया । नर्स वहां से चली गई ।
लक्ष्मी गुमसुम उदास काउंटर के पास खड़ी थी । थोड़ी देर में उस व्यक्ति ने एक लंबा सा बिल निकाला और लक्ष्मी की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला ……………………. “ये लीजिये मैडम !”
लक्ष्मी सबसे बेख़बर गुमसुम सी खड़ी थी ।
“मैडम !“ काउंटर वाले व्यक्ति ने ज़ोर से कहा ………………..”आपका बिल !”
लक्ष्मी एकदम घबरा गई । उसकी आँखों से अब भी आंसू बह रहे थे । उसने काउंटर वाले की तरफ़ देखा जिसके हाथ में एक लंबा सा बिल था जो उसने लक्ष्मी की तरफ़ बढ़ा रखा था । लक्ष्मी ने वो बिल व्यक्ति के हाथों से ले लिया और सूनी नज़रों से बिल को देखने लगी । काउंटर वाले व्यक्ति ने कहा “ एक लाख दस हज़ार रुपये का बिल है मैडम इसे क्लियर कर दें तो मैं डिस्चार्ज के कागजात बना दूँगा “
काउंटर वाले व्यक्ति को बिल की बहुत फ़िक्र थी । और होनी भी चाहिए यही तो उसका कर्तव्य था । इसी बात की तो उसको पगार मिलती थी ।
“एक लाख दस हज़ार” ……………….. लक्ष्मी के कानों में जैसे किसी ने जोरदार धमाका कर दिया था ।
“एक लाख दस हज़ार……………… भय्या ये किसका बिल दे रहे हो ? जरा ध्यान से चेक करो ?” लक्ष्मी ने बिल लौटाते हुए कहा ।
“बेड नम्बर 2 का बिल है मैडम ……………….. श्री सूरज प्रकाश का……………… माफ़ कीजिए स्वर्गीय सूरज प्रकाश जी का” काउंटर वाले व्यक्ति ने बिल लौटाते हुए कहा ।
“लेकिन एक लाख दस हजार का बिल कैसे हो गया ?” अल्फाज़ लक्ष्मी के गले में अटक रहे थे ।
“वो आप डिटेल बिल में देख लीजिये मैडम……………. आप जल्दी से पेमेंट कर दें ताकि मैं आपकी फर्मिलिटीज़ कम्प्लीट कर सकूँ । “ काउंटर वाले व्यक्ति ने उचटते से लहजे में जवाब दिया ।
तभी लक्ष्मी को कुछ याद आया उसने काउंटर वाले व्यक्ति से मुख़ातिब होते हुए कहा “भय्या …भय्या …सुनो …जब में ने इन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया था सत्तर हज़ार रुपये तो उसी दिन जमा करवाए थे एडवांस…………….. ज़रा चेक करो “
“जी मैडम …मुझे मालूम है …….. वो अमाउंट कम करके ही ये बिल बनाया है । आप एक बार पूरा बिल देख लें इत्मीनान से वहां बैठ कर “ काउंटर वाले ने सामने पड़ी हुई कुर्सियों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा ।
“यानि एक लाख दस हज़ार जमा करने होंगें ?” लक्ष्मी ने बहुत धीमी आवाज़ में पूछा ।
“जी मैडम “ …………………
अचानक लक्ष्मी का सर बहुत तेज़ चकराया । एक पल के लिए वो लड़खड़ा गई मगर पास ही खड़ी एक महिला ने उसे गिरने से बचा लिया और सहारा देते हुए काउंटर के आगे पड़ी कुर्सियों में से एक कुर्सी पर बिठा दिया । महिला ने अपने पर्स से पानी की बोतल निकाली और लक्ष्मी की तरफ़ बढ़ाई । लक्ष्मी ने बमुश्किल एक घूँट पानी पीया । महिला ने लक्ष्मी के कंधे पर हाथ रखा और कहने लगी “क्या हुआ बहन ?” फिर लक्ष्मी के हाथ में अस्पताल का बिल देखकर समझ गई और कहने लगी “बहन यहाँ से रहम की कोई उम्मीद माता करना । तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था तुम्हें सरकारी अस्पताल जाना चाहिए था ।“
लक्ष्मी ने उस महिला की तरफ़ देखते हुए कहा “पहले वहीं गए थे मगर वहां बेड ख़ाली नहीं था ।“
“सब झूठ बोलते हैं बहन तुम जानती नहीं ये सब इन प्राइवेट अस्पतालों की सैटिंग है । इन्होंने वहां भी अपने कमीशन एजेंट बिठा रखे हैं । ये एजेंट बेवकूफ बनाते हैं, झूठ बोलतेहैं और मरीजों को इन अस्पतालों में भेजते हैं ।“
“तो क्या सुरेन्द्र शर्मा …. एजेंट था ?” लक्ष्मी की आँखों के सामने सुरेन्द्र का चेहरा घूम गया ।
“अच्छा बहन मैं चलती हूँ तुम अपना ध्यान रखना “ ये कहती हुई महिला वार्ड की तरफ़ बढ़ गई ।
लक्ष्मी सूनी निगाहों से उसे जाते हुए देखती रही ।
लक्ष्मी……….. लक्ष्मी, मैने तुम्हें मना किया था लक्ष्मी ………….. ये प्राइवेट अस्पताल है………. यहाँ इंसान की जान की कोई क़ीमत नहीं है…………… यहां से आदमी जिन्दा बच भी जाये तो नंगा होकर निकलता और मर जाये तो ये उसके घर वालों को नंगा कर देते हैं……………….. यहां रहम नहीं है सिर्फ पैसा है ..पैसा….. ये लोग तो लाशों की भी सौदेबाज़ी करते हैं लक्ष्मी………….. सुनो तुम यहां से चली जाओ ………………. क्या करोगी इस मृत देह का……………. ये अब तुम्हारे किस काम की …………… सिर्फ इसे अपने हाथों से जलाने के लिये एक लाख रुपये बर्बाद मत करो ………………..
ल्क्ष्मी घर जाओ अब ये जिस्म किसी काम का नहीं है …………………. सुनो लक्ष्मी ………………. तुम सुन रही हो ना ………………….. देखो लक्ष्मी मै ज़िन्दा हूं………………….. मै अभी मरा नहीं हूं …………………………. मै तुम्हे देख सकता हूं ……….. मै तुम्हे देख रहा हूं ……………………… मेरी बात सुनो लक्ष्मी ………………
म्गर सब बेसूद……………….
ल्क्ष्मी ने ठंडी सांस ली और अपनी चैक बुक निकाली ………………….. उसमें अमाउंट भरा……….. और काउंटर पर बैठे व्यक्ति की तरफ चैक बढ़ा दिया ।
काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने चैक लिया । चैक को देखा फिर लौटाते हुये कहने लगा “मैडम एक लाख दस हज़ार रुपये भरने थे और आपने इसमें एक लाख ही लिखे हैं ।“
“भय्या ! मेरे खाते में सिर्फ एक लाख ही बचे हैं प्लीज़ एडजस्ट कीजिये” लक्ष्मी ने रिक्वैस्ट करते हुये कहा ।
“देखिये मैडम……………… ये सब मेरे हाथ में नहीं है आप प्लीज़ पूरा अमाउंट जमा करवायें” काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने जवाब दिया ।
ल्क्ष्मी ने अपनी भीगी पलकों को ज़ोर से दबाया आंखों का सारा पानी निकल कर गालों पर बहने लगा । उसने फिर हिम्मत इकठठी की और दोनो हाथ जोड़कर काउंटर वाले से विनती करते हुये कहने लगी ………
“भय्या मेरे अकाउंट में इतने ही पैसे हैं ……………. ये भी पूरे पांच साल की बचत थी………… जो मैने अपने हसबैंड के लिये की थी……………. मै उन्हे गिफ्ट में एक मोटरसाईकिल देना चाहती थी । प्लीज़……….. कुछ तो करो प्लीज …………… मै तुम्हारे आगे हाथ जोडती हूं……….. प्लीज”
मै अवाक था !
लक्ष्मी……………… आह ! आह लक्ष्मी ! तुम मुझे कितना प्यार करती हो लक्ष्मी …………………… हां मै चाहता था कि मेरे पास भी एक मोटरसाईकिल हो जिसपर बैठाकर मै तुम्हें पूरा शहर घुमाऊं……….. तुम्हें वीकैण्ड पर रैस्टोरेंट में खाना खिलाऊँ । औरों की तरह तुम भी बाईक पर जब मेरे पीछे बैठो तो अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखो । उस नर्म ओ नाजुक हाथ की नर्मी और गरमी को मै महसूस करूं……………….. लक्ष्मी…………….. लक्ष्मी ……………… ।
लक्ष्मी के जुडे हुये हाथ ना सरकारी अस्पताल में काम आये ना प्राईवेट अस्पताल मे।
काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने बड़ी बेरूखी से लक्ष्मी से कहा “मैडम एक लाख का चैक आपने दे दिया है अब आप एक काम करें खाते को छोडें मुझे आप दस हजार रुपये कैश दे दें ।“
लक्ष्मी ने अपना पर्स खोला, पूरा का पूरा खंगाला, दस,बीस, पचास, सौ, पांच सौ के जितने नोट और सिक्के मिले सब इकटठे किये ……………… मगर फिर भी रक़म 9975 रुपये ही निकली । लक्ष्मी ने सारे नोट और सिक्के काउंटर वाले व्यक्ति की तरफ मुटठी में भरकर बढ़ा दिये ।
काउंटर वाले व्यक्ति ने थोड़ी हैरत और थोड़ी हिक़ारत भरी नज़रों से लक्ष्मी की तरफ देखा और फिर नोट और सिक्के लेकर गिनने लगा । रक़म गिनने के बाद उसने ज़ोर के कहा “9975 रुपये, पच्चीस रुपये कम हैं ? चलिए कोई बात नहीं………………..उसने लक्ष्मी की तरफ देखते हुये कहा और बिल की कॉपी अहसान भारी नज़रों के साथ लक्ष्मी की तरफ सरका दी । फिर डिस्चार्ज के पेपर नीचे की दराज से निकाले जो (पहले से ही तैयार थे) और उनपर लक्ष्मी के साईन लिये और एक पेपर उसकी तरफ बढ़ाते हुये कहा “आप अब बॉडी ले जा सकती हैं।“
लक्ष्मी तेज़ी से आईसीयू की जानिब बढ़ी लेकिन तब तक बॉडी को पैक कर के मोर्चेरी के पास गैलेरी में रख दिया गया था । एक नर्स उसे लेकर मोर्चेरी वाली गैलेरी में पहुंची और एक बॉडी की तरफ इशारा करते हुये कहा “आप इसे ले जा सकती हैं ।“
“मगर मैं कैसे ले जाउंगी ? ………………..
कोई एम्बुलेंस ?………….. कोई गाड़ी ?……………………..” लक्ष्मी ने ताज्जुब से नर्स से पूछा ।
“वो तो आपको बुलानी पडेगी” नर्स ने उचटता हुआ सा जवाब दिया ।
म्गर मै कहां से बुलाउंगी ? …………. क्या अस्पताल में एंबुलैंस नहीं है ?” लक्ष्मी ने घबराकर फिर सवाल किया ।
“है । मगर वो सिर्फ मरीज़ों को लाने के लिये हैं, लाशों को ले जाने के लिये नहीं हैं” नर्स ने कहा ।
फिर अचानक दया दिखाते दुये उसने कहा …………………….. “अगर आप कहो तो मैं आपके लिये गाड़ी का इंतज़ाम कर सकती हूं ………………”
लक्ष्मी कृतज्ञता भरी दृष्टि से नर्स को देखा और कहा “हाँ ……. हाँ ……..बहन प्लीज़ …………”
नर्स ने अपना मोबाईल निकाला और फोन लगाया “हाँ, राजेश……….. कहां हो ………….. अच्छा ………… सुनो………… जल्दी अस्पताल आ जाओ…………. एक बॉडी ले जानी है……………… ठीक है……….. ठीक है…………………”
आ रही है गाड़ी……….. नर्स ने फोन रखते हुये कहा…………… फिर वो तेज़ी से अस्पताल में कहीं ओझल हो गयी ।
मुझे ये नर्स किसी फरिश्ते से कम नहीं लगी ।
थोड़ी देर में मोर्चरी में गाड़ी वाला आ गया और उसने बॉडी को गाड़ी मे रखा । लक्ष्मी भी गाड़ी में ही बैठ गयी ।
“और कोई भी है बहन जी ?” गाड़ी वाले ने लक्ष्मी से पूछा ।
लक्ष्मी ने इन्कार में गर्दन हिला दी ।
गाडी शमशान के रास्ते चल पड़ी।
शमशान में भी वही हाहाकार था जो अस्पताल में था ।
चारों तरफ़ लोगों की भीड़ भाड़, भागम भाग, आपा धापी, धूल, धुआं, आग।
गाड़ी शमशान में दाखिल हो गई ………ड्राईवर ने बॉडी को उतारकर नीचे रख दिया ।
“सात हज़ार रूपये मैडम !” ड्राईवर ने अपने गमछे से अपना पसीना पोंछते हुए कहा ।
“सात हज़ार रूपये …………किस बात के ……………..” लक्ष्मी ने आश्चर्य और दुःख के मिश्रित भाव से ड्राईवर की तरफ़ देख कर पूछा ।
“किस बात के ?…..अरे मैडम ! देखिये अभी वक़्त नहीं है हमारे पास फिजूल की बातों का ………देखिये पैसे दीजिये जल्दी” ड्राईवर के लहजे में तल्खी उभर आई थी ।
लक्ष्मी अभी तक अवाक खडी थी ।
ड्राईवर ने लक्ष्मी को देखा फिर झल्लाकर बोला “मैडम जल्दी कीजिए । आपको बताया नहीं था क्या राधा ने सात हज़ार लेंगें ?”
“कौन राधा ? “ लक्ष्मी ने आश्चर्य से पूछा ।
“अरे बाबा वही नर्स जिसने मुझे फोन करके बुलाया था अस्पताल में “ ड्राईवर ने बड़े उलझते हुए लहजे में स्पष्ट किया ।
“उसने तो ऐसा कुछ नहीं कहा था” राधा ने रुआंसा होते हुए कहा ।
“और शमशान से अस्पताल है ही कितनी दूर भय्या ? सात हज़ार तो किसी भी तरह नहीं होते ।“ राधा की आँखें फिर बरबस भर आईं थीं । उसका लहजा फिर नर्म हो गया था ।
“देखो मैडम ……………….. इसमें से दो हज़ार रुपये तो राधा का कमीशन है क्योंकि उसे अस्पताल में भी सेटिंग करनी पड़ती है और फिर दो पैसा कमाने के मौक़े बार बार तो नहीं आते । मेरा भी परिवार है बच्चे हैं ।………………….. सब देखना पड़ता है मैडम ………………………..लाइए जल्दी कीजिए “ ड्राईवर ने अपनी बात मुकम्मल करते हुए अपना सीधा हाथ पैसे माँगने की मुद्रा में लक्ष्मी के आगे कर दिया था ।
लक्ष्मी ने एक बार फिर अपने दोनों हाथ जोड़ लिए थे । ड्राईवर के सामने ।
“भय्या ! रहम करो……मेरे पास तो जो पैसे थे सब अस्पताल में खर्च हो गए अब मेरे पास एक रुपया भी नहीं है ………………तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं ? कहाँ से दूँ तुम्हें सात हज़ार रुपये” लक्ष्मी गिड़गिड़ा रही थी ।
“अरे यार ! क्या मगज़मारी है ? कहाँ फंस गया मैं ?…………देखो मैडम टाइम खराब ना करो यार ………………..मुझे मेरे पैसे चाहिए बस । मैं पैसे लिए बगैर नहीं जाउंगा । मुझे कुछ नहीं मालूम …………..” ड्राईवर बड़बड़ाने लगा उसका स्वर तेज़ होने लगा था ।
एक बार फिर लक्ष्मी के जुड़े हुए हाथ किसी काम नहीं आये ।
अचानक लक्ष्मी ने अपनी उंगली में पहनी हुई सोने की अंगूठी निकाली और ड्राईवर की तरफ़ बढाते हुए बोली “भय्या ! एक काम करो ……. ये रख लो ये सोने की है । “
“अरे यार ! ये क्या मज़ाक़ है “ ड्राईवर ने ये कहते हुए सोने की वो अंगूठी एक झटके से लक्ष्मी के हाथ से ले ली और उसको उलट पलट कर देखते हुए लक्ष्मी से पूछा “असली तो है ना ?“
“ऐसे समय पर कौन धोखा करेगा भय्या ?” लक्ष्मी ने सिसकते हुए जवाब दिया ।
“ठीक है ठीक है तुम कहती हो तो मान लेता” कहते हुए ड्राईवर मुड़ा और गाड़ी स्टार्ट करके नज़रों से ओझल हो गया ।
मैं अब भी मरा नहीं था ……………..सब देख रहा था ।
ये वही अंगूठी थी जो मैं ने लक्ष्मी को शादी की रात तोहफे में दी थी । पूरे चार साल थोड़े थोड़े पैसे बचाकर मैं ने ये अंगूठी बनवाई थी ।
मगर चार साल की जमा पूंजी मेरी इस मृत देह की बलि चढ़ गई ।
मैं अब भी ज़िंदा था मगर खामोश था । क्या कहता ? किस्से कहता ? जब कोई मुझे सुनता ही नही ! मेरी अपनी लक्ष्मी भी नहीं !
लक्ष्मी बॉडी के पास ही ज़मीन पर निढाल हो कर बैठ गई । सामने से तीन चार नौजवान आये । उनहोंने निढाल लक्ष्मी को देखा तो रुक गए । उनमें से एक बोला “ बहन जी चिता तैयार करनी है क्या ?”
लक्ष्मी ने अपनी सफ़ेद पड़ चुकी पथराई आँखों से उसकी तरफ़ देखा और स्वीकृति में अपना सर हिला दिया ।
“आइये आप हमारे साथ आइये “ एक लडके ने लक्ष्मी को सहारा देकर खड़ा किया और फिर अपने साथ एक तरफ़ को ले गया । सामने टेबल कुर्सी लगाए एक व्यक्ति बैठा था । उसके पास पहुँच कर लड़के ने लक्ष्मी से कहा “मैडम आप अन्तिम संस्कार का सामान लाई हैं ?”
लक्ष्मी ने इन्कार में सर को हिला दिया ।
“कोई बात नहीं ……………….कोई बात नहीं” लडके ने दिलासा देते हुए बड़ी नरमी से कहा “आप फ़िक्र ना करें हम अभी सब इंतज़ाम कर देते हैं ।“ फिर उसने टेबल पर बैठे शख्स को कुछ इशारा किया और वहां से चला गया ।
मुझे वो लड़का किसी फ़रिश्ते से कम नहीं लगा ।
उस लड़के ने जाने से पहले लक्ष्मी को इशारा किया कि टेबल लगाए शख्स के पास जाए और अपनी डिटेल वहां लिखवा दे । ये कहकर वो लड़का वहां से चला गया ।
लक्ष्मी टेबल वाले शख्स के पास पहुंची और अपना नाम, पति का नाम, पता और मोबाइल नंबर लिखवाया । इसके बाद टेबल वाले आदमी ने लक्ष्मी से कहा “मैडम फ़िक्र मत कीजिए दस हज़ार रुपये जमा करवा दीजिये हम अभी सब तैयार करवा देते हैं ।“
लक्ष्मी ने टेबल पर बैठे व्यक्ति के चहरे पर नजर डाली, बड़ा ही सख्त चेहरा था उस व्यक्ति का । इस बार लक्ष्मी को कोई हैरत नहीं हुई ना ही उसकी आँख से कोई आंसुओं टपका । लक्ष्मी ने अपने दोनों हाथों को उठाया मगर जोड़ने के लिए नहीं बल्कि अपने दोनों कानों में पहनी हुई छोटी छोटी बालियों को उतारने के लिए । ये बालियाँ उसकी मां की आख़िरी निशानी थीं । उसने दोनों बालियों को उतारा और ख़ामोशी से टेबल पर रख दिया । उस व्यक्ति ने एक बार लक्ष्मी के चहरे की तरफ़ देखा फिर उन बालियों को उठाकर उनके वज़न का अंदाजा करने लगा । संतुष्ट होने के बाद उसने उन बालियों को टेबल की दराज़ में रखा और एक रसीद बनाकर लक्ष्मी की तरफ़ बढ़ा दी ।
मैं अब मर जाना चाहता था ………लेकिन मैं अब भी ज़िंदा था ।
इस बार लक्ष्मी ने आँखें तर नहीं कीं …………………वो गिड़गिडाई नहीं ………………. उसने हाथ भी नहीं जोड़े । शायद वो समझ गई थी कि ज़माने की रीत क्या है !
चिता तैयार हो गई ………….मेरा शरीर धू धू करके जल रहा था । लक्ष्मी वहीं मौजूद थी ……………………….खामोश जैसे काली अंधेरी रात में ……………….तूफ़ान से पहले समुन्दर खामोश होता है ……………………. सुनसान, भयानक, डरावना, खौफनाक …………… मगर एकदम शांत खामोश !
मैं अब भी ज़िंदा था ……………….मरा नहीं था मैं ।
पूरे चार पांच घंटे चिता जलती रही ………………… और लक्ष्मी भी ।
रात का अन्धेरा छाने लगा था । लक्ष्मी अब भी वहीं बैठी थी चिता के पास सुध बुध खोई………………
सब कुछ जलकर राख हो चुका था ।
अचानक वहां एक पंडित जी पधारे । उनहोंने लक्ष्मी को देखा । पंडित जी लक्ष्मी के करीब आये और बड़े प्रेम से उसके कंधे पर हाथ रखकर सहानुभूति के साथ बोले ……………..”क्या हुआ बेटा ? “”कौन था ये व्यक्ति ?”
“मेरे पति” लक्ष्मी ने पंडित जी की तरफ़ देखे बगैर कहा ।
“ओह ! अफ़सोस बेटा अफ़सोस, लेकिन ये तो विधि का विधान है बेटा । जो आया है उसे जाना है । ख़ाली हाथ एकदम ख़ाली हाथ “ पंडित जी की आवाज़ में बहुत दर्द था ।
मुझे इस समय ये पंडित जी किसी फ़रिश्ते सेकम नज़र नहीं आये ।
पंडित जी वहीं बैठ गए लक्ष्मी के पास और बड़े प्यार से कहने लगे “देखो बेटा ! जो होना था वो तो हो गया लेकिन अब तुम अपना फ़र्ज़ अदा करो । “
लक्ष्मी चौंक उठी और कहने लगी “कौन सा फ़र्ज़ पंडित जी ?”
“देखो बेटा अब तुम्हारा फ़र्ज़ है कि तुम अपने पति का तर्पण करो ताकि तुम्हारे पति की आत्मा को शान्ति मिले बेटा “ पंडित जी ने शंका का समाधान किया ।
लक्ष्मी ने पंडित जी की तरफ़ अजीब सी नज़रों से देखा …………………
“हाँ बेटा ! मैं सही कह रहा हूँ “ पंडित जी ने लक्ष्मी के सर पर मुहब्बत से हाथ रखते हुए बहुत नरम लहजे में कहा ।
लक्ष्मी ने अपने दाहिने हाथ को आगे बढाया और अपनी नाक में पहनी हुई लौंग को उतारा । उसने लौंग को एक पल के लिए देखा । उसे अच्छी तरह याद था कि जब उसने बहुत जिद की थी तब पिता जी सुनार से ये लौंग लाये थे किस्तों में । पूरे एक साल तक किस्तें चुकाई थीं उन्होंने इसकी । अब उसके पास जिस्म पर पहने हुए कपड़ों के अलावा कुछ नहीं बचा था ।
उसने लौंग पंडित जी की तरफ़ बढ़ा दी …………………
पंडित जी ने किसी ज्ञानी की तरह एक पल में सारा माजरा समझ लिया …………………फिर श्रध्दापूर्वक अपनी दोनों हथेलियों को लक्ष्मी के आगे कर दिया ।
लक्ष्मी ने वो लौंग पंडित जी की फैली हुई हथेलियों के सुपुर्द की और एक तरफ़ लुढ़क गई ……………………….
मेरी आँखों के आगे अचानक सब काला काला हो गया ………………….. मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । मुझे लगा रहा था जैसे मैं किसी बहुत तेज़ रफ़्तार लिफ्ट में ऊपर की तरफ़ जा रहा हूँ ।
मैं अब मर गया था ………………………
मैं अब ज़िंदा नहीं था …………………….
और रहना भी नहीं चाहता था …………………………….. (अकमल नईम सिद्दीकी)
17 thoughts on “‘ मुक्ति ‘ आक्सीजन की कमी से लेकर श्मशान घाट के अंतिम संस्कार तक, एक आम आदमी की लूट की बेहद मार्मिक कहानी (गेस्ट राइटर अकमल नईम सिद्दीकी जोधपुर)”
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