सफरनामा (उत्तराखंड)

Sufi Ki Kalam Se

सूफ़ी की कलम से…
सफरनामा (उत्तराखंड)
उत्तराखंड सफर का पहला दिन

शाम 5.35 वाली देहरादून बांद्रा एक्स्प्रेस से कोटा से गुरुवार शाम को सफर शुरू हुआ। जैसे जैसे अंधेरा बढ़ता गया वैसे ही सर्दी की गलन भी बढ़ने लगी। ट्रेन की मटमैली स्मैल नाक के नथुनों में सर्द हवाओं के साथ बह रही थी। ट्रेन में ही खाना खाने के बाद, सोने में ही भलाई जानी। अगल बगल की बर्थ पर बज रहे गाने आपस में मिक्स होकर किसी के लिए लोरी का काम कर रहे थे तो किसी को परेशान। हमारे ही एक साथी नाजिद भाई जिसे दोस्त प्यार से सरपंच कहते हैं ने, मोबाइल में जितनी आवाज थी उसमे म्यूजिक प्ले कर रखा था। ना उसका गाना बंद होने वाला था और ना ही सर्द हवाऐं, हमने दोनों ही स्थिति के बीच सामंजस्य स्थापित कर सोने का प्रयास किया। जैसे तैसे करके रात गुज़ारी।
सुबह 8 बजे करीब उत्तराखंड के रूड़की पहुँचे जो हमारी ट्रेन का गंतव्य स्थल था। 8 बजे तक तो उजाले का नामोनिशान, नाममात्र का था। आसमान कोहरे की ओट में छिपा था। सर्द हवाओं ने हमे गर्म कपड़ों से बाहर नहीं आने दिया। रुड़की स्टेशन से हमने ई रिक्शा हायर किया और हमारे पहले विजिटिंग प्लेस, कलियर शरीफ पहुँचे।
कलियर शरीफ –
कलियर शरीफ में हज़रत अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पिया साहब की दरगाह है। कलियर शरीफ का जितना नाम सुना था, ये शहर तो वैसा बिल्कुल नहीं था लेकिन साबिर पिया के चाहने वालों की वजह से ये शहर हर तरफ से आबाद है। या यों कह लीजिए कि यह शहर उत्तराखंड सरकार की अपेक्षाओं का शिकार है इसलिए यहाँ इतनी प्रसिद्ध हस्ती होने के बाद भी यहाँ सुविधाओं के नाम पर टूटी फूटी सड़के और गंदगी के ढेर है। यहाँ के लोगों का रहन सहन, खान पान बिल्कुल सामान्य है। लोग सीधे सच्चे और ईमानदार है। दरगाह में अजमेर दरगाह के खादिमों की तरह लूटमार बिल्कुल नहीं है। साबिर पिया के दर पर ज्यादातर मानसिक रूप से परेशान मरीज़ों का आवागमन रहता है जिन्हें लोग भूत, प्रेत, जिन्नात या ऊपरी हवा का असर इत्यादि बताते हैं।


दरगाह की जियारत के बाद एक एक करके कुछ और दरगाह की जियारत भी की और साथ ही हाथ से लिखी खूबसूरत कुरान की भी जियारत नसीब हुई। कलियर शरीफ घूमने के बाद हमने दरगाह वाली मस्जिद में ही जुमे की नमाज़ अदा की। नमाज के बाद हम सीधे हरिद्वार के लिए रवाना हो गए। हमारे एक मागंरोल के साथी शाहबाज साहब की हरिद्वार घूमने की बड़ी ख्वाहिश थी। उनकी ख्वाहिश पर दूसरे साथी सलीम, नाजिद और तालिब भाई ने भी सहमति जाहिर की। हमने एक बार फिर से ई रिक्शा लिया और उत्तराखण्ड की सड़कों पर घूमते हुए 4 बजे करीब हरिद्वार आ पहुंचे।
हरिद्वार


हरिद्वार एक धार्मिक आस्था का केंद्र है जो घूमने के लिहाज से ना सही लेकिन देखने के लिहाज से बेहतरीन है। हमने वहाँ बने घाटों पर शाम के वक्त में सैर की। गंगा नदी के तट से सूर्यास्त का दृश्य बड़ा ही रोचक और अद्भुत लगा। गंगा नदी में मुँह हाथ धोकर गंगा का पानी भी पिया। गंगा का पानी शीतल और मीठा था। सूरज डूब चुका था, सर्द हवाएं हमे ज्यादा प्रभावित करती उससे पहले ही हम देहरादून वाली बस में सवार हो गए। लगभग डेढ़ घंटे बाद हम देहरादून पहुँचे और वहाँ से एक बार फिर मसूरी जाने के लिए बस मे सवार हो गए। टेड़ी मेढी, सर्पिलाकार पहाड़ियों को चीरते हुए हम रात को 8 बजे मसूरी पहुँचे, वहाँ पहुँच कर होटल लिया। घाटियों के शहर, मसूरी की सर्द आबो हवा के बीच में, मोटे मोटे गद्दो की गर्मी ने हमे नींद के हवाले कर दिया।

उत्तराखंड सफर का दूसरा दिन –
होटल के कमरे से, घाटियों पर छाया हुआ कोहरा देखा। कोहरे के बीच ही सूरज की किरणें भी दिखी, जिसे देखकर काफी सुकून मिला क्योंकि ऐसे ठंडे इलाके में सूरज का होना, हमारे लिए किसी संजीवनी से कम नहीं था। फिर हमने मसूरी घूमने का प्लान तैयार किया। हमारे साथी बर्फ देखने के बड़े ख्वाहिशमंद थे। हमने सबसे पहले बर्फ वाली जगह का मालूम किया तो पता चला कि मसूरी से 25 कि.मी दूर धनोल्टी नाम की जगह है, जहां पर बर्फ मिल सकता है। फिर क्या था, हमने तुरंत एक टैक्सी हायर की और सीधे धनोल्टी के लिए रवाना हो गए। एक बार फिर से टेड़ी मेढ़ी पहाडियों का सफर करना पड़ा, लेकिन ये सफर बस की अपेक्षा काफी आरामदायक था। टैक्सी ड्राइवर राजस्थान मूल के ही थे तो उनसे भी खूब बाते हुई। ड्राइवर खेमसिंह जी के पूर्वज राजस्थान के मेंहदीपुर बालाजी के निवासी थे।


धनोल्टी के सफर के दौरान, कही जगह एडवेंचर करने का मोका भी मिला। हम सब साथी, बर्फ को ऐसे ढूंढ रहे थे जैसे पुलिस चोर को। एक ऊंची चोटी पर जब हमे बर्फ दिखाई दी तो हमारी तलाश खत्म हुई। हमने बर्फ के साथ सिर्फ इतना ही खेला जितना हम सहन कर सकते थे और जितनी हमारे मोबाइल में तस्वीरे खींच सकते थे। कलियर शरीफ के बाद बर्फ की जियारत होना , हमारे भ्रमण की दूसरी सबसे बड़ी खुशी थी। बर्फ से नीयत भरने के बाद हम मसूरी के बाकी स्थानों में से कुछ जगहों पर गए। सबसे पहले रोपवे की सवारी का आनंद लिया। मॉल रोड पर शॉपिंग के साथ साथ खान पान का लुत्फ उठाया। मसूरी का बाजार भी बाकी हिल स्टेशन वाली जगहों जैसा ही है। जैसे कुल्लू मनाली, शिमला इत्यादि पहाड़ी क्षेत्रों का है। सामानों की क़ीमते भी लगभग वैसी ही है। सम्भवतया यहां ज्यादतर वही लोग खरीददारी करते हैं जिन्हें यहां से निशानी के तौर पर साथ में कुछ ले जाना होता है। यहां के लोग भी बहुत ही सीधे सच्चे और ईमानदार है। इतना बड़ा पर्यटक स्थल होने के बाद भी लूटमार नहीं है। हालांकि चीजे महंगी है लेकिन सबकी कीमतें पहले से तय है और पूरे बाजार में एक जैसी हैं। शाम तक हमने, मसूरी को भी अलविदा कहा और रात 9 बजे मसूरी एक्स्प्रेस से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। दो दिन का उत्तराखण्ड का ये सफर काफी रोचक और मजेदार रहा। सिवाय सर्दी के सितम के हमे किसी और चीज़ से परेशानी नहीं हुई।
सलीम भाई ने पूरे टूर की शानदार फोटोग्राफी कर, हमारे टूर को, डिजिटल यादो के रूप में सुरक्षित किया। नाजिद ने पूरे प्रोग्राम का खाका तैयार कर उसे निश्चित समय पर अंजाम तक पहुंचाया। तालिब भाई और शाहबाज भाई ने मनोरंजन के जरिए सफर को रोचक बनाया। सभी साथियों का दिल की गहराईयों से शुक्रिया।डच
नासिर शाह (सूफ़ी)


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