सीढ़ियों पे चढ़कर,
सबसे आगे बढ़कर
निकाल अपने हथियार
कायर ने किया वार
हमला किया कायर ने
जैसे जलिया के डायर ने
गोली की आवाज़
इसमें क्या राज़
भीड़ तीतर वितर
डर जो था भीतर
सीने पे किया बार
हे राम की पुकार
शरीर गिरा था धम
आँखे सभी की थी नम
साँसे चलती
फिर रुकती
चारों ओर चीख पुकार थीं
इसी समय डॉक्टर दरकार थीं
साँस जो थी उखड़ गई
भारत माँ फिर उजड़ गई
शरीर था बेजान
ना बचें थे अब प्राण
सभी लोग परेशान थे
सभी लोग हैरान थे
जिंदा थे तो मार दिया
मरने पे दुत्कार दिया
हर तरफ खून ही खून था
हत्यारे को बड़ा सुकून था
आँखों मे धुँधला छाया
ये दिन क्यों आया
आसमान रो रहा था
बार बार कह रहा था
मार दिया महात्मा को
एक महान आत्मा को
गेस्ट पॉएट मुहम्मद तहसीन
छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय


One thought on “शहीद दिवस पर गेस्ट पॉएट मुहम्मद तहसीन की मार्मिक कविता”
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