दो कुत्तों की कथा (गेस्ट ब्लॉगर ओपी मेरोठा)

Sufi Ki Kalam Se

दो कुत्तों की कथा

कुत्ते को मालिक का वफादार या सेवक समझा जाता है, यह सच में वफादार होते हैं या फिर उनकी मानसिकता का फायदा उठाकर लोग अपना काम करवाते हैं, आइए जानते हैं इस कहानी के माध्यम से, उचावद गांव में एक व्यक्ती था, जिसका नाम था ओमप्रकाश मेरोठा वह कुत्तों से अधिक प्रेम करता था, उसके पास दो कुत्ते थे जिनका नाम था शेरू और भेरू ये दोनों काफी वफादार थे, एक दिन खेत में मालिक ओमप्रकाश मेरोठा गेंहू के पौधों में पानी दे रहा था, उस समय अचानक एक जंगली भेड़िया आ गया और मालिक उसे भगाने के लिए उसके पीछे लाठी लेकर भागा इतने में भेड़िए ने पलटकर उसके ऊपर वार कर दिया और मालिक जख्मी हो गया और बचाव के लिए आवाज लगाता रहा पर कोई व्यक्ति वहां पर मौजूद नहीं था जो उसकी आवाज सुन सके, अचानक मालिक को शेरू और भैरू की आवाज सुनाई दी तो मालिक को लगा कि उनके दोनों वफादार कुत्ते उसे बचाने आ गये, ओर हां ‘ सच में वह दोनों कुत्ते मालिक की आवाज सुनकर उसे बचाने आए थे, दोनों कुत्तों को देखकर भेड़िया वहां से भाग गया । मालिक के मन में एक विचार आया आज शेरु और भेरू यहां नही होते तो मेरी मृत्यु निश्चित थी। इसलिए कुत्तों को वफादार का दर्जा दिया गया है।


‘ कुत्ता वफ़ादारी का फ़रिश्ता होता है,
उसका इंसान से प्यारा रिश्ता होता है. ‘

मालिक कुत्तों को देखकर बहुत खुश था कि आज वह उनकी वजह से सुरक्षित हैं, हंसी खुशी वह शाम को घर आ गए, मालिक ने अपना भोजन करने से पहले दोनों को बुलाया और घी से चुपड़ी हुई 2 रोटियां दोनो को परोस दी । कुत्ते बहुत समझदार होते है,।मालिक अपने परिवार के साथ बातचीत करने लगा उसने कहा की आज अपने दोनों कुत्ते शेरु और भेरू न होते तो आज मेरा शरीर भी नहीं मिलता और में जीवित भी नही होता मुझे भेड़िया खा जाता। इतना सुनकर उसकी पत्नी की आंखों के आंसू आ गए और भगवान का शुक्रिया अदा किया ।
रात पड़ने वाली थी सब सो गए उनका घर गांव से काफी दूरी पर था वहा पर आसपास कोई घर नहीं था चोरो को कोई भय नहीं था कि कोई उन्हें डकैती करने से रोक सकें । लगभग रात के 2 बजे हुई थी अचानक उनके घर की तरफ 3 लोग मुंह पर कपड़ा बांधे हुए चल दिए घर उनका छोटा सा था , घर में दो कमरे व चारों ओर पत्थर का कोट फिरा हुआ था। शेरु और भेरू दोनों ही उसी घर के आगे खाली पड़ी जगह में बैठे हुए थे. रात का टाइम था उनकी भी नींद लगी हुई थी, धीर – धीरे चोर उनके घर के नजदीक पहुंच गए थे। फिर अचानक एक व्यक्ति के पैर से उतरते समय कोट का एक पत्थर नीचे घिर गया और आवाज से दोनों कुत्तों की आंख खुल गई ,
फिर शेरु और भेरू ने ऐसा काम कर दिखाया जो आप सोच भी नही सकते, रात को 2 बजे दोनो भोकने लग गए , उन दोनों कुत्तों की आवाज सुनकर चोर भागने लगे, इतने में मालिक जग गया और बाहर आ गया ,, पर कुत्ते तो होते ही वफादार शेरु और भेरू दोनों चोर के पीछे पड़ गए एक इधर भागता दूसरा उधर भागता, आखिर उन्ह चोरों को टीखाने लगा ही दिया , उधर मालिक के मन में शंका उत्पन हो गई की दोनों कुत्ते कहा गए तोड़ी ही देर बाद शेरु और भेरू दोनों घर वापिस आ गए..

एक दिन की बात है जब ओमप्रकाश मेरोठा का जयपुर से रेलवे का ज्वाइनिंग लेटर आ गया और मालिक अब शेरु और भेरू से अलग होने वाला था, समय के अभाव के कारण तोड़े दिन के लिए मालिक अकेला ही ड्यूटी पर चल गया और परिवार को वही अपने घर रहने दिया ताकि कुछ दिन शेरु और भेरू उनके साथ समय व्यतीत कर सके, अब 6 महीने भीत गए मालिक जब घर लौटा तो शेरु और भेरू मालिक को देखकर दूर से देखते ही भाग खड़ा हुए और मालिक को सूंघने लग गए, इतने दिन बाद भी मालिक का चेहरा नही भूले। फिर वह दानों मालिक को देखकर उछल खुद करने लगे मानों उनके लिए उन्हे जीवन का सबसे बड़ा सुख प्राप्त हो गया हो , उन्हे ऐसा देखकर मालिक के आंखो में आंसू आ गिरे, जैसा कि उसे अपना कोई अपनत्व से भी बडकर मिल गया हो । घर पर सब हंसी खुशी रहने लगे। मालिक उधर 15 दिन की छुट्टी लेकर आया था अबकी बार वह परिवार को भी साथ लेने आया था ।

मुँह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन,
आवाज़ों के बाज़ारों में खामोशी को पहचाने कौन।
किरन-किरन अलसाता सूरज पलक-पलक खुलती नीदें
धीमे -धीमें बिखर रहा है ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन।”

धीरे धीरे वह दिन भी नजदीक आ गए जब फिर से शेरु और भेरू मालिक से अलग होने वाले थे, अबकी बार तो मालिक क्या पूरा परिवार ही अलग होने वाला था । सोमवार का दिन था सुबह होते ही मालिक ने सोचा ये दोनों शेरु और भेरू को खेत पर कही दूर छोड़ कर आता हूं, वह तीनों खेत की तरफ चल दिए बरसात का समय था इसलिए खेत पर मक्का में भुट्टे आ रहे थे चारों ओर हरियाली थी । मालिक ने सोचा एक यही मोका हे इन दोनों को छोड़ने का , उधर शेरु और भेरू को को पहले से ही ज्ञात था की मालिक फिर से अलग न हो जाये, जहां मालिक जाये वही दोनों भी उसके पिछे उधर मुडजाये ऐसा देख मालिक के दिमाग में विचार आया कि ऐसे तो मुझे शाम भीत जायेगी , वह उन दोनों को चकमा देकर मक्का के पेड़ो के अंदर होकर खेत से घर आ गया । और जल्दी से घर पर परिवार समेत ड्यूटी पर जाने की तैयारी चालू कर दी। उधर शेरु और भेरू दोनों ही खेत में मालिक को दूंढते हुए परेशान हो गए थे पर मालिक नही मिला । आखिर वह दोनों थके हुए शाम को घर की ओर रवाना हो गए। उधर मालिक वहां से निकल चुका था । फिर तो क्या ?
दोनों घर आये तो देखा पूरा घर खाली पड़ा था और ताला लगा हुआ था । फिर भी शेरु और भेरू का विश्वास नहीं टूटा की मालिक उन्हें छोड़कर चला गया ।
वह दोनों इसी सोच में थे की मालिक कहीं बाहर गया होगा घूमने फिर आ जाएगा। जब धीरे – धीरे शाम पड़ती गई उधर शेरु और भेरू को निराशा मिलती गई। उन्हे पता था की शाम को उन्हे मालिक की पत्नी एक – एक रोटी खिलाती थी । पर आज तो क्या हुआ पूरा घर ही खाली पड़ा है।

” कैसे भला बयां कर दुँ तुम्हें अपने लफ्जो में…
तुम्हारा नाम सुन तो मेरी कलम भी रो पड़ती है ”

महीने सालों भीत गए पर शेरु और भेरू इसी आस में थे की मालिक आयेगा। पर वफादारी जो उन्हें निभानी थी। उधर मालिक ने उन्ह दोनों कुत्तों को लाने के लिये एक दिन अचानक ही ड्यूटी से छूटी कर ली और घर रह गया । फिर तैयार होकर गांव की तरफ आने लगा तो पत्नी को पता चल गया की दोनों कुत्तों को लेने गांव जा रहा है ,तो पत्नी क्रोधित हो उठी और कहा की यहां पर कहा रखोगे उन्हें जगह भी तो नही है हमारे पास उधर मालिक दोनों ओर प्रेम के बंधन में पड़ गया था। एक और पत्नी का प्रेम दूसरी ओर मित्रता व पशुओं का प्रेम।
पत्नी कहने लगी आप उन्हें ले आओ और मुझे मेरे पियर में मेरी मां के घर छोड़ आओ इतना सुनकर मालिक बेचारा खामोश होकर वहीं रह गया।
फिर धीरे-धीरे समय भीतता गया और यादें हवा की तरह गुजरने लगी। उधर शेरु को अचानक रेबीज नामक बीमारी हो गई , जो कुत्ते को तड़पा-तड़पा कर मार देती है, जिसके होने के बाद शेरु ने सबकुछ छोड़ दिया और एक दिन अपना दम तोड दिया। अब अकेला भेरू ही बचा था ।
बेचारा घर के आगे आस लगाए बैठा था की मालिक आयेगा..2 धीरे-धीरे उसे भी अपने दोस्त और मालिक की याद सताने लगी भेरू भी कमजोर होता गया और आखिर में भेरू ने भी दम तोड दिया।
” मौत का सामना तो एक न एक दिन सभी को करना ही है लेकिन इस सच्चाई को जान कर भी लोग भय खाते हैं। इसका दूसरा पहलू यूं भी है कि कई बार ज़िंदगी ही मौत जैसी लगती है।”

5 साल बाद मालिक और उसका परिवार गांव लोटा तो पता चला उसके दोनों कुत्ते वहां नही थे । आस-पास पड़ोस में पूछा तो उन दोनों कुत्तों की मरने की दर्दनाक कहानी सुनाई तो इतना सबकुछ सुकनकर मालिक की आंखों से आंसुओ की धार बह गई। और अपने आप को क्षमा नही कर पाया ।
इस कहानी से पता चलता हे की ‘ जानवर तो वफादार होते है पर इंसान नही ‘
शिक्षा: किसी से प्रेम इतना ही करे जितना आप निभा सको, अपने स्वार्थ के लिए किसी के जीवन में समस्या उत्पन्न न करे।

✍️ कवि ओ पी मेरोठा बारां ( राज० )

मो० : 8875213775


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10 thoughts on “दो कुत्तों की कथा (गेस्ट ब्लॉगर ओपी मेरोठा)

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