भीषण गर्मी वाले, आखिरी दौर के रमजान
जिस तरह अँग्रेजी वर्ष में 365 दिन होते हैं उसी तरह इस्लामी साल में सिर्फ 355 दिन होते हैं इसलिए हर साल आने वाले इस्लामी त्यौहार की तारीखे और अँग्रेजी कैलेंडर मे लगभग 10 से 12 दिन का अन्तर देखने को मिलता है। प्रतिवर्ष होने वाला 10 से 12 दिनों का यह अन्तर लगभग 33 साल मे अँग्रेजी और इस्लामी साल में एक साल का अन्तर पैदा कर देता है। यही कारण है कि इस्लामी त्यौहार कभी भी एक मौसम के त्यौहार नहीं रहते हैं बल्कि हर इस्लामी त्यौहार एक चक्र के अनुसार हर मौसम में आते हैं।

आज हम बात कर हैं इस्लामी महीनों के सबसे मुख्य एंव पवित्र महिने रमजान के महीने की, जो इस साल 14 अप्रैल से शुरू हो रहे है। रमजान का यह पवित्र महीना पिछले कुछ सालों से मई – जून की भीषण गर्मी में आता रहा है, जिससे रोजेदारों को खतरनाक एंव लू वाली गर्मी का सामना करना पड़ता रहा है। इस बार (2021) रमजान के महीने में, रोजेदारों को 14 अप्रैल से 13 मई तक रोज़े रख कर इबादत करनी है। हालांकि अप्रैल – मई में भी गर्मी का प्रभाव अत्यधिक होता है लेकिन पिछले कुछ सालों की तुलना में इस बार रोजेदारों को कुछ कम गर्मी का सामना करना पड़ेगा और फिर यहि पाक महीना अगले 3 सालो में इस भीषण गर्मी के दायरे से बाहर आकर मार्च के महीने में आने लगेगा। इस तरह देखा जाए तो भीषण गर्मी में आने वाले रमजान के महीनों का यह आख़िरी दौर (लगभग 3 साल का) कहा जा सकता है। उसके बाद इसी तरह की भीषण गर्मी (मई – जून) वाले रमजान, लगभग 33 साल बाद नजर आयेंगे।
रमजान की अवधि :- गर्मी के दिनों में रोज़े की अवधि भारत में लगभग 12 – 14 घण्टे की होती है तो पूरी दुनिया में यही अवधि 12 घण्टे से लेकर 20-22 घण्टे तक भी होती है। यह अवधि हर मौसम में अलग अलग होती है। गर्मी में यह अन्तराल ज्यादा घण्टों का होता है तो सर्दियों में कम का होता है। गर्मी में पानी की तेज प्यास तो सर्दियों में तेज भूख, रोजेदारों का इम्तिहान लेती है।
रोजेदारों का हौंसला :-
गर्मी चाहे कितनी ही तेज हो और प्यास कितनी ही गहरी हो, सर्दी चाहे कितनी ही सख्त हो और भूख की शिद्दत कितनी ही ज्यादा हो, रोजेदारों के हौंसलो के आगे हमेशा हारती रही है। चाहे बरसात की बेहाल करने वाली उमस हो या पतझड़ का सूनापन, रोजेदार हर मौसम का सामना कर खुदा का दिया फरमान पूरा कर अपना फर्ज निभाते हैं। रोजेदारों के लिए खुदा का हुक्म, मौसम की सख्तियों से ज्यादाअहमियत रखता है।

इबादत :-
रोज़ा केवल भूख प्यास का नाम नहीं है बल्कि भूखे प्यासे रहने के साथ साथ खुदा की इबादत भी मुख्य शर्त है। रोजेदार सुबह जल्दी उठकर सहरी के साथ से ही इबादतों मे मशगूल हो जाते हैं। रोजेदार दिन की पांच फर्ज नमाज़ो के साथ साथ कई तरह की नफ्ली इबादत भी करते हैं और साथ ही सदका, खैरात और ज़कात के माध्यम से अपने जमा पूंजी को शुद्ध करते हुए जरूरतमंदों कि मदद करते हैं।
– नासिर शाह सूफ़ी

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