“तेरा बाप ड्राइवर है।
नौकर का बेटा नौकर बनेगा, ये फितरत है। ”
ऐसे नकारात्मक दृष्टिकोण अनगिनत युवाओं के सपनों को अधर में लटका चुके हैं। जब भी कोई गरीब, बड़ा सपना देखता है तो इस प्रकार के अनेक संवाद उसके राह के रोड़े बनते नजर आते हैं। जो ऐसी बातों की परवाह कर लेता है वो राह में ही अटक जाता है लेकिन जो बिना किसी की परवाह किए लगातार आगे बढ़ता जाता है उसे एक ना एक दिन अपनी मंजिल जरूर मिलती है। इसी संवाद के इर्द-गिर्द बुनी गई फिल्म की कहानी को दर्शकों ने खूब सराहा। फिल्म का लोकप्रिय गाना #अपनाटाइमआएगा’ अगर फिल्म का टाइटल भी यही होता तो ज्यादा उचित रहता।
” बस्ती में सारी पलकें गीली क्यों है,
दिन पथरीले, रातें ज़हरीली क्यों है,
क्यों बेबस है, झुंझलाया है, जो भी यहां है,
क्यों लगता है ये बस्ती अंधा कुआं है।”
#जोयाअख्तर द्वारा निर्देशित फिल्म #गल्लीबॉय’ ने भारतीय सिनेमा जगत में अपनी एक अलग ही पहचान बना ली है। 14 फरवरी 2019 मे रिलीज हुई इस फिल्म का कथानक वैसे तो अन्य आम फिल्मों की तरह ही है लेकिन फिल्म के कलाकारों और रैप सॉन्ग आधारित कहानी ने फिल्म को जिवंत बना दिया है।
ये फिल्म मुंबई के एक साधारण निम्नवर्गीय मुस्लिम युवक मुराद अहमद (#रणवीरसिंह) की कहानी है जो अपने संघर्षों के चलते गल्ली बॉय नाम से यूट्यूब का रैप स्टार बन जाता है। मुराद एक दड़बे जैसे घर में अपने परिवार के साथ रहता है। उसके पिता आफताब शैख इतनी गरीबी और तंगदस्ती में भी एक और निकाह करके घर को और सिकुड़ा देते हैं, जबकि घर में पहले से ही दो बेटे, एक बीवी और एक मां रहती थी। मुराद के पिता के साथ ही परिवार के बाकी सदस्यों की सोच भी संकीर्ण ही होती है। वो सब इस गरीबी को ही अपना भविष्य समझते थे। सफ़ीना फिरदौस (#आलियाभट्ट) जो एक उच्च वर्गीय मुस्लिम डॉक्टर की लड़की है वो मुराद की प्रेमिका होती है। वह रोज छुप छुपकर अपने प्रेमी से मिलती है। मुराद मुंबई के ही एक साधारण कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर रहा होता है। उसे तो यह भी नहीं पता होता है कि उसके अंदर भी कोई कलाकार छिपा हुआ है वह तो बस जब भी मौका मिलता तब अपने दर्द को अपनी नोटबुक मे कविताओं की शक्ल में लिखता रहता। एक दिन कॉलेज में रैप सॉन्ग वाला प्रोग्राम देखा तो उसके अंदर के कलाकार ने उसे आवाज दी तो वह सीधा रैप सिंगर एम सी शेर (#सिद्धांत_चतुर्वेदी) के पास गया और अपना लिखा गाना उनसे गाने के लिए बोला। शेर ने मुराद को बताया कि वो अपने गाने खुद लिखता है इसलिए तेरा लिखा गाना मैं क्यों गाऊँ। तेरा गाना है खुद गा।
इस तरह मुराद ने पहली बार अपनी कविता को रैप की शक़्ल देकर लोगो के सामने परोसा और इसी के साथ उसके अंदर के रैप सिंगर ने भी जन्म ले लिया।
एम सी शेर ने मुराद की काफी मदद की साथ ही उसके दोस्त मोइन ने भी हर तरह की कुर्बानी देकर अपनी दोस्ती का फर्ज निभाया। स्काइ (काल्की कोएचलीन) नामक एक अमेरिकी स्कूल की युवा लड़की ने मुराद को अपने प्रोजेक्ट का हिस्सा बना कर उसकी आगे बढ़ने में मदद करती है और साथ ही मुराद से फ्लर्ट भी करती है लेकिन सफ़ीना एक मजबूत भारतीय प्रेमिका की तरह मुराद पर अपनी पकड बनाए रखते हुए स्काइ को अपने मकसद में कामयाब नहीं होने देती। वो शराब की बोतल से स्काइ का सिर तक फोड़ देती है। इससे पहले भी फिल्म की शुरुआत में सफ़ीना मुराद को लेकर अलविना नाम की लड़की की देशी स्टाइल में कुटाई करके साबित कर चुकी होती है कि मुराद पर सिर्फ उसका हक है। सफिना और अलवीना के बीच हुई देशी लडाई फिल्म में अलग ही रोमांच पैदा करती है। उधर मुराद रात दिन तमाम परेशानियों से जुझते हुए अपने सपने को पूरा करने में लगा रहता। उसे घर छोड़कर जाना पड़ा, ड्राइविंग करनी पड़ी, ऑफिस जॉब जैसे सब काम करते हुए अंत में वह भारत के रैप स्टार का खिताब अपने नाम करने में कामयाब रहता है और उन तमाम गरीब लोगों के सपनों को उडान भरने का हौंसला प्रदान करता है जो गरीबी और मजबूरी को ही अपना भाग्य समझ बैठे थे।
“एक ही रास्ता जिसपे
चुपचाप सर को झूकाये हुए
बंद आँखे किये
लोग चलते है सारे जनम, जांते भी नहीं
सोचते भी नहीं
पुछते भी नहीं
उनको ये रास्ता
लेकर कहां जायगा?
या कही भी नहीं ? चलते चलते कही
एक मोड आता है
सिधे रास्ते से बिलकुल अलग कोइ दीवाना ही होता है
जो उधर जाता है
वर्ना बाकी तो
सब सिधे रस्ते पे ही
अपनी सारे जनम चलते हैं। सर झुकाये हुए
बंद आंखें कीये
और ये दुःख लिए
मोड जो देखा था
उसपे मूड जाते हम
तो न जाने कहा तक
पहुंच पाते हम। रीमा कागती और जोया अख्तर द्वारा लिखित ये स्क्रिप्ट काफी जोरदार है। फिल्म की कहानी मुंबई की गालियों से निकले रैपर नेजी और डिवाइन की जिंदगी से प्रेरित है। रणवीर सिंह ने हर बार की तरह इस बार भी अपने किरदार में उम्मीद से ज्यादा जान फूंक कर एक गरीब युवक की भावना सच्चे मन से निभाई तो वही आलिया भट्ट ने भी एक बार फिर साबित कर दिया कि टैलेंट किसी उम्र का मोहताज नहीं होती। आलिया ने एक अनुभवी अदाकारा की तरह अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है और रही सिद्धांत चतुर्वेदी की बात तो उन्होंने तो अपने अभिनय से कमाल ही कर दिया है। उनके अभिनय ने ये साबित कर दिया कि इंडस्ट्री में आने वाले समय में उनका बहुत बड़ा योगदान रहने वाला है। विजय राज, काल्की कोएचलीन आदि कई कलाकारों के किरदार छोटे लेकिन महत्वपूर्ण है जो पूरी कहानी को बांधे रखते हैं। शुरू में कहानी थोड़ा बोर जरूर करती है लेकिन धीरे धीरे फिल्म पर पकड बनती जाती है। फिल्म में रैप गानों की भरमार है। यूट्यूब जैसे सोशल साइट्स का प्रयोग आधुनिकता का शानदार प्रदर्शन करते हुए अन्य कलाकारों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए प्रेरित करता है। नायक और नायिका का गदंगी से भरे नाले के ऊपर मिल कर रोमांस करना कहानी की यथार्थता का चित्रण करता है। कार के सारे शीशे बंद करके नायक का अपने लिए मोटीवेट कर देने वाली पंक्तिया #खुदसेखुदकोपूछ, #खुदकोक्या_चाहिए??* स्वंय नायक और दर्शकों को प्रेरित करता है।
‘ #हरनायाबचीज़परअलाउद्दीनकाहक_है’ कहने वाले वाले रणवीर सिंह इस फिल्म में अच्छे कपड़े और ब्रांडेड जुते पहनने को भी तरसते दिखे, ऐसी अदाकारी के कारण ही रणवीर की फैन फॉलोविगं दिन ब दिन बढ़ती जा रही है।
फिल्म की कहानी और दृश्याकंन इतना सुंदर है कि इसे भारत की तरफ से ऑस्कर जैसे फिल्मी दुनिया के सबसे बड़े पुरुस्कार के लिए नामित कर लिया गया था लेकिन फिर ये फिल्म ऑस्कर की दौड़ से बाहर हो गई थी। फिल्म भले ही ऑस्कर ना प्राप्त कर पाई हो लेकिन फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तो काफी धमाल मचाया था और कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवार्ड भी प्राप्त करने में सफल रही है। फिल्म का ये गीत लोगों को जोश से भर कर तालियां बजाने पर मजबूर कर देता है।
– आजादी
भुखमारी से, आजादी
हाँ भेद भाव से, आजादी
हाँ पक्षवाद से , आजादी
हम लेके रहेंगे, आजादी
तुम कुछ भी कर लो, आजादी आजादी .. हो तेरा पिंजरा में जल न खाणा
परिंदेया न उड जाना तेरा पिंजरा
तेरा मुख जाना सारा लना बना
परिंदेया न उड जाना तेरा पिंजरा हाँ बहुत बहैठे चुप चाप
क्या घंटे का इंसाफ
देश कैसे होगा साफ़
इंकी नीयत में है दाग
सिर्फ करते रहेंगे बात
अलग शकल वही जात
वोट मिलें पर ये खास
फिर गायब पुरे साल
हाँ मेरा भाई है तो
नोटों की सरकार है ना
नोट से बनाते अपने बेटों को
ये स्टार है ना
कितेन बेकार क्यों ये
आपस में झंकार है ना
बाकि पूरा देश डूबे
इनकी नैया पार है ना अच्छी विद्या चाहीये
अच्चा खासा माल देना
नल में पानी चाहिए
खड़े रहले लाइन में ना
ज़मीन अपनी पर नोट दीखा कर साइन लेना
ड्रग्स लाये ये फिर
धकेल देंगे क्राइम में ना अकेला इन्सान फिर गाड़ी तेरी चार क्यूं?
घर में है चार फ़िर रूम्स तेरे आठ क्यूं?
पैसे सो नइ बनते कुदरत से हम खास क्यूं?
तेरी पीढी का सोच वो कैसे लेंगे सांस क्यूं? क्या शू?
एक तरफा तराजू
क्या शू?
हाँ तेरी हंसी मेरे आंसू
क्या शू?
हाँ घुट घुट के क्यों सांस लूँ
क्या शू?
उसे देगा क्या हिसाब तू? हाँ नहीं बनना मुझे स्लमडॉग मिलियनेयर
ये स्लमडॉग है मिशन पे
सिस्टम के
कीड़े छोड़े इनके अपने कफ़न पे
बचपन से
छुरा रखा है
इन्होने अपने गर्दन पे
मस्तक में ये लिखते गलत
सीखते गलत छीँखते हलक पर किसी को परवाह नहीं
यह सैतान हैं इंसान नहीं
धरम के नाम पे काम नहीं
धरम बनाया इंसान ही
पैसों के लिए ये था सभी
दिमाग लड़ा कर जान के भी
धसने लगा तू कान का भी
इस्तेमाल कर तू जुबां का भी
अनदेखा का क्यों है जान के भी
अनदेखा का क्यों है जान के भी
सच्चाई में तू समां कभी
अच्छाई से तू कमा कभी
इस गंध को करना साफ़ अभी
इस गंध को करना साफ़ अभी
इस गंध को करना साफ़ अभी क्या शू? हाँ , हो बोलो आज़ादी
बोलो आज़ादी
हो बोलो आज़ादी
हो बोलो आज़ादी
हो बोलो आज़ादी।
जब कभी आपको, प्रेरणा की ज़रूरत महसूस हो तो ये फिल्म देखकर अपने आप में एक अलग ही प्रकार की ऊर्जा का संचार किया जा सकता है।
– नासिर शाह (सूफ़ी)
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