ये चिड़िया व दरिया हामिद है तेरे
फलक के सितारे भी शाहिद है तेरे
तेरे आगे झुकता बस मै ही नहीं हूं
चरिंदे परिंदे भी मोला साजिद है तेरे
सदा खौफ रहता तेरा उनके दिल में
मौला बंदे जो सच्चे आबिद है तेरे
मौला तेरी रहमत सभी पर है फैली
खसारे में सख्त लेकिन मुल्हिद है तेरे
तेरी रहमतों का ही है इक सहारा
गुनाहों में है सारा जीवन गुज़ारा
खुदा फिर रहा था मै मारा मारा
पर मिला नहीं कहीं कोई किनारा
एक तुझे छोड़ सबसे डरता था मौला
पर तेरी एक न मै सुनता था मौला
आज नादिम हूं और तेरे दर पे खड़ा हूं
मुझे बख़्श दे बस इस ज़िद पे अड़ा हूं
गर तू न बख़्शेगा तो कहां जाऊंगा मै
मा सिवा तेरे रहमान कहा पाऊंगा मै
ये माना किं मौला गुनाहगार हूं मै
मगर आज तेरा तलबगार हूं मै
– गेस्ट पॉएट रईस अहमद
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