शिक्षा विभाग के तुगलकी फरमान से शिक्षकों का गुस्सा सातवें आसमान पर
ग्रीष्मकालीन अवकाश से कोविड-19 मे लगातार काम कर रहे शिक्षा विभाग के कर्मचारी मध्याविध अवकाश की उम्मीद लगाए बैठे थे और लगाते भी क्यों नहीं ? उन्होंने बिना रुके, बिना थके लॉकडाउन से लेकर पूरे प्रदेश के अनलॉक होने तक हर प्रकार के कामों को अंजाम तक पहुंचाया है। बोर्डर चेक पोस्ट से लेकर शादी समारोह की मॉनीटरिंग तक हर शैक्षणिक एंव गैर शैक्षणिक कामों में बिना ना नुकर के हिस्सा लिया था लेकिन कल रात जारी हुए शिक्षा विभाग के नवीन आदेश ने समस्त शिक्षकों एंव शिक्षक संगठनों के अरमानों पर पानी ही नहीं फेरा बल्कि पूरे अरमानों को पानी मे ही डूबो दिया। उनसे ना सिर्फ मध्यावधि अवकाश छीने गए बल्कि एचएम पॉवर द्वारा लिया जाने वाले अवकाश का भी अधिग्रहण कर लिया जो किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
गौरतलब है कि कल रात शिक्षा विभाग द्वारा जो आदेश जारी किया गया उसमे इतनी सख्त भाषा का ईस्तेमाल किया गया, जैसे सारे शिक्षक अब तक आराम कर रहे हों और अब अनुचित अवकाश की मांग कर रहे हों। आदेश मे शिविरा पंचाग जारी नहीं होने तक शिक्षा विभाग के समस्त कर्मचारियों के अवकाशों पर इस तरह प्रतिबंध लगा दिया गया जैसे शिविरा पंचाग जारी करना भी शिक्षकों का ही काम हो। उक्त आदेश में मध्यावधि अवकाश नहीं देने का दूसरा कारण बच्चों की पढ़ाई का हवाला देते हुए कहा कि पिछले माह ही बच्चों के स्कूल खुले हैं इसलिए अवकाश नहीं दिए जाएंगे। लगता है यहां विभाग यह भूल रहा है कि भले ही स्कूल पिछले माह खुले हैं लेकिन इसी विभाग के आदेशानुसार, शिक्षक जुलाई माह से ही घर घर जाकर बच्चों को शिक्षण से जोड़े हुए हैं ।
विभाग द्वारा बच्चों की पढ़ाई का हवाला देने से नाराज शिक्षकों एंव शिक्षक संघठनों ने सोशल मीडिया पर विरोध स्वरुप सवालों की झडियां लगा दी है जो शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। उनका कहना है कि विभिन्न प्रकार के चुनावी काम, बीएलओ काम, टीकाकरण, खाद्यान्न वितरण, घर घर जाकर विभिन्न सर्वे, केवाईसी, उचित मूल्य की दुकानों पर ड्यूटी सहित ऐसे अनेक कामों की सूची है जिनमे आए दिन शिक्षकों से काम लिया जाता है, तब बच्चों की पढ़ाई का ख्याल कहा चला जाता है?
दूसरी तरफ शिक्षक संगठनों द्वारा शिक्षक सम्मेलन की मांग पर, विभाग द्वारा भीड़ और कोरोना का हवाला देते हुए शिक्षक सम्मेलन भी रद्द कर दिए गए। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या राजस्थान में वर्तमान समय में किसी प्रकार का कोई प्रोग्राम नहीं हो रहा है या कहीं पर भीड़ नहीं हो रही है? जिस तरह राज्य में विभिन्न प्रकार के आयोजन कोविड-19 की गाइडलाइन के अनुसार हो रहे हैं तो क्या शैक्षिक सम्मेलन उसी गाइडलाइन के अनुसार नहीं हो सकते थे? फिर क्यों शिक्षकों की उचित माँगों को सिरे से खारिज कर दिया गया?
शिक्षा विभाग के इस तुगलकी फरमान के जारी होते ही सोशल मीडिया पर शिक्षकों एंव संगठनों मे भूचाल सा बरपा हो गया है, हालांकि यह भी सत्य है कि शिक्षक समुदाय ज्यादातर सोशल मीडिया पर ही अपने विरोध दर्ज कराते आए हैं, जमीनी स्तर पर इनका भी काम काफी निष्क्रिय रहा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि शिक्षा विभाग के इस आदेश पर शिक्षक एंव शिक्षक संगठन क्या प्रतिक्रिया देते है? और उस पर राजस्थान का शिक्षा विभाग संशोधन करता है या नहीं? और करता है तो क्या संशोधक करता है?
नासिर शाह (सूफ़ी)
राजस्थान शिक्षक संघ(शे) इसका पुरज़ोर विरोध करते हुए इस आदेश को वापिस लेने के लिए निदेशक को मजबूर करेगा।
संगठन इन आदेशों की होली जला कर पूरे राज्य में प्रदर्शन करेगा। संगठन शैक्षिक सम्मेलनों का आयोजन भी करेगा और आंदोलन का आग़ाज़ भी ।
इसके साथ ही समस्त प्रकार के गैरशैक्षणिक कार्यों एवं ऑनलाइन स्टडी तथा अन्य प्रकार के फ़ालतू अनेकों कार्यों से शिक्षकों को मुक्त करने के लिए पुरज़ोर संघर्ष करेगा।
राजस्थान शिक्षक संघ (शेखावत) ने 14 अक्टूबर को समस्त जिलों में विरोध प्रदर्शन करने तथा इस आदेश की होली जलाने का शिक्षक समुदाय का आह्वान किया है।
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महावीर सिहाग, प्रदेशाध्यक्ष
उपेन्द्र शर्मा , महामंत्री
यादवेंद्र शर्मा संयोजक संघर्ष समिति
राजस्थान शिक्षक संघ (शेखावत)
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