18 से कम उम्र के बाल विवाह रोकने मे नाकाम सरकार, विवाह की उम्र 21करने की तैयारी में

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18 से कम उम्र के बाल विवाह रोकने मे नाकाम सरकार, विवाह की उम्र 21करने की तैयारी में
1929 में 14, 1978 में 18 और 2021 में लड़कियों की उम्र 21 वर्ष करना कितना कारगर?

परिवर्तन सृष्टि का नियम है, शायद इसलिए ही भारत सरकार द्वारा एक बार फिर से विवाह की उम्र में संशोधन किया जा रहा है। हमारे देश में विवाह सम्बन्धी कई अधिनियम बनाए जा चुके हैं लेकिन उनका विश्लेषण करे तो कामयाबी का प्रतिशत काफी कम रहा है।
बाल विवाह प्रतिबन्ध अधिनियम, 1929 :-
28 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में एक अधिनियम पारित हुआ जिसमें लड़कियों की विवाह की उम्र 14 वर्ष और लड़कों की 18 वर्ष तय की गई। इस अधिनियम के प्रायोजक हरविलास शारदा थे जिनके नाम पर इसे ‘शारदा अधिनियम’ के नाम से जाना जाता है। यह छह महीने बाद 1 अप्रैल 1930 को लागू हुआ। यह कानून केवल हिंदुओं के लिए नहीं बल्कि ब्रिटिश भारत के सभी लोगों पर लागू किया गया । ब्रिटिश अधिकारियों के कड़े विरोध के बावजूद, ब्रिटिश भारतीय सरकार द्वारा यह कानून पारित किया गया।
1978 :-
1929 के तत्कालीन शारदा अधिनियम में संशोधन करके 1978 में महिलाओं की शादी की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 साल एंव लड़कों 21 वर्ष कर दी गई थी। इस कानून के लागू होने के बाद काफी मात्रा में सुधार दर्ज किए गए लेकिन कई क्षेत्रो में आज भी इस कानून की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जाती रही है। खास तौर से ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह कानून आज भी इतना प्रभावी नहीं है और प्रशासन की नाक के नीचे धड़ल्ले से बाल विवाह किए जा रहे हैं।

43 साल बाद अब उम्र 21 वर्ष :-
पूर्व में जारी बाल विवाह अधिनियम के कानून कितने सफल हुए हैं और कितने असफल, इस बात का विश्लेषण किए बिना ही केंद्र सरकार एक नया कानून लाने की तैयारी में हैं जिसमें लड़कियों की शादी की उम्र अब 21 साल की जा रही है।

लड़कियों की उम्र 21, तो लड़कों की क्या होगी?
नए कानून के अनुसार लड़कियों की उम्र तो 21 कर दी जाएगी लेकिन फिर लड़कों की शादी की उम्र क्या होगी?
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि लड़कों की उम्र भी 21 ही रखी जाएगी। जी हां, इस कानून के बाद अब लड़के और लड़कियों, दोनों की आयु एक समान रहने वाली है। अब इस स्थिति में जो परिस्थतियों बनेगी, उनसे आप भलीभांति परिचित हैं।
इस कानून के लागू करने का उद्देश्य महिलाओं को शिक्षा के प्रयाप्त अवसर उपलब्ध करवा कर, लैंगिक असमानता दूर करते हुए मातृ एंव शिशु मृत्यु दर को नियन्त्रित करना है लेकिन इसी लाभ के साथ इसे लागू करने के बाद होने वाली चुनौतियाँ भी अनेक है जिनका समाधान करने में हमारी सरकारें ज्यादातर असफल रहती है।? पुराने कानून और उनकी सक्रियता के आधार पर अब आप लोग ही तय करें कि केंद्र सरकार का यह फैसला कितना कारगर हो सकता है ?
– नासिर शाह (सूफ़ी)


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