गलतबयानी कर सस्ती लोकप्रियता पाने का फ़ैशन कब तक चलेगा?

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गलतबयानी कर सस्ती लोकप्रियता पाने का फ़ैशन कब तक चलेगा?

नरसिंहानन्द जैसे लोगों को पता है कि मुस्लिम समुदाय ज्ञापन से ज्यादा कुछ कर नहीं सकता, मीडिया इनके खिलाफ कुछ गलत दिखाएगा नहीं, सरकारें चुप्पी साधने के अलावा कुछ कर नहीं सकती और पुलिस तो जैसे उनकी जेब में ही होती है।



जब किसी इंसान को लोकप्रियता पाने का शौक हो और उसमें कामयाब होने की कोई योग्यता ना हो तो फिर वह अपनी ओछी मानसिकता का परिचय देते हुए किसी धर्म के महान आदमियों पर विवादित टिप्पणीयां करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश करता है। इस तरह की घटनाएं दुनिया भर में आए दिन होती रहती है या यों समझ लीजिए कि ऐसी घटिया मानसिकता वाले लोगों ने इस तरह चर्चाओं में रहने का फैशन बना लिया है। आजकल हमारे देश में इस फैशन को बरकरार रखने का जिम्मा एक घटिया सोच वाले झोला छाप बाबा यति नरसिंहानन्द सरस्वती ने लिया हुआ है जो लगातार ऊलूलजुलुल बयान बाजी करके चर्चा में बने रहने की कोशिश कर रहे हैं।

झोला छाप बाबा के सुर्खिया बटोरने के काम –
गौरतलब है कि पिछले कुछ दिन पहले ही इस झोला छाप बाबा ने देश के एक महान पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम पर बिना हाथ पैर वाले गम्भीर आरोप लगाए थे। उस समय भी इन पर किसी ने कोई खास ध्यान नहीं दिया इसलिए ये सस्ती लोकप्रियता पाने मे इतने कामयाब नहीं हुए। इस आरोप को मढ़ने से पहले भी यह अपने धर्म स्थल पर दूसरे धर्म विशेष के प्रवेश पर पाबंदी लगा कर सुर्खिया बटोरने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन उसमें भी इतनी खास उपलब्धि हासिल नहीं हुई थी। इनके कामों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि इनके मन में एक समुदाय विशेष के प्रति काफी नफरत भरी हुई है जिसका मुजाहिरा ये आए दिन करके देश की एकता और अखंडता को तोड़ने की कोशिश करते रहते हैं।
हाल ही में इस्लाम के पैगंबर साहब पर अपनी गंदी जुबान से गंदे आरोप लगकर इन्होंने एक बार फिर से अपनी संकीर्ण विचारधारा का परिचय दिया है। ऐसे लोगों के कारण ना सिर्फ देश की एकता को खतरा है बल्कि ऐसे लोगों की खबरें बनाने के लिए विभिन्न समुदायों के पत्रकारों को पत्रिकारिता के नियमों की, कुछ हद अवहेलना करते हुए सख्ती से कलम चलानी पड़ती है।

जिम्मेदार मौन क्यों?
हालांकि झोला छाप बाबा की खबरों को अब भी कोई गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और लेना भी नहीं चाहिए। प्रशासन और सरकारों की जिम्मेदारी होती है कि ऐसे साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले लोगों पर तुरंत कार्रवाई की जाए लेकिन अफसोस की बात है कि हमारे देश में सिर्फ इस्लाम के खिलाफ बोलने वालों को लगभग फ्री हैन्ड दिया जा रहा है जिससे दो दो कोड़ी के घटिया इंसान भी इस्लाम धर्म के सबसे बड़े पैगंबर के खिलाफ़ कुछ भी कह देते हैं। सबको पता है कि आजकल मुसलमान हर तरह के काम के लिए सबसे नर्म चारा है जिसे समाज से लेकर राजनीति तक, सब जगह आसानी से ईस्तेमाल किया जा सकता है।

विवाद और इस्लाम के अनुयायी –


इस्लाम धर्म को लेकर आए दिन देश में कई लोग अलग अलग तरह का ज़हर उगलते रहते हैं जिसके परिणाम में इस्लाम के मानने वाले सिर्फ ज्ञापन मुहिम चलाकर अपने इमान के जिन्दा होने का सबूत देते रहते हैं। उन्हें लगता है कि एक इंसान गलती करे या ज्यादा सबका समाधान सिर्फ ज्ञापन देना ही है, जबकि वो इस बात से भी परिचित हैं कि ये ज्ञापन रद्दी से ज्यादा कुछ नहीं है। खैर भारत के मुसलमान इसके अलावा और कर भी क्या सकते हैं, ऐसे लोगों के विरुद्ध अगर थोड़ा ढंग का विरोध प्रदर्शन कर देंगे तो मीडिया उन्हें आतंकवादी साबित करने के लिए दिन रात एक कर देगा। सेक्युलर का लबादा पहने नेता इनसे दूरियां बनाने लगेंगे। पुलिस इन पर अलग अलग तरह के मुकदमे लगाकर इनकी जिंदगी बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी तो ऐसे में देश का मुसलमान और कर भी क्या सकता है? इन सब कारणों से ही तो नरसिंहानन्द जैसे लोगों के हौंसले बुलंद है। इन्हें पता है कि मुस्लिम समुदाय ज्ञापन से ज्यादा कुछ कर नहीं सकता, मीडिया इनके खिलाफ कुछ गलत दिखाएगा नहीं, सरकारें चुप्पी साधने के अलावा कुछ कर नहीं सकती और पुलिस तो जैसे उनकी जेब में ही होती है।

क्या है विवाद
झोला छाप बाबा कहते हैं कि ‘अगर मुसलमान इनके पैगंबर की सच्चाई जानने तो उन्हें उनके मुसलमान होने पर शर्म आएगी। “
कितनी हास्यप्रद बात है, जिस पैग़म्बर की बदौलत आज पूरी दुनिया में करोड़ों की संख्या में इस्लाम के अनुयायी हैं। दुनिया में मुहम्मद के चाहने वालों की कमी नहीं है और ना ही उन्हें किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत है। झोला छाप बाबा को यह पता होना चाहिए कि पैग़म्बर साहब की सच्चाई सिर्फ मुसलमान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लगभग हर धर्म के लोग जानते हैं और सम्मान करने के साथ साथ अनुसरण भी करते हैं। बाबा को चाहिए कि ऊलुल जुलुल बयान देने की जगह स्वयं को एक बार पैगंबर साहब की सच्चाई जानने के लिए अध्ययन करना चाहिए जिससे उनकी आँखों पर पड़ी धूल और दिल ओ दिमाग में भरी हुई गंदगी साफ हो सके।



सोशल मीडिया कैंपैन
इस तरह के विवादित बयान देने का एक ही महत्वपूर्ण उद्देश होता है, सोशल मीडिया पर सुर्खियों में बनना। एक पक्ष उनकी गलतबयानी पर (#arrest_yati_narshinghanad) हैशटेग चलाकर कार्रवाई की मांग करता है जो उचित भी है और उनका अधिकार भी लेकिन वही दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर ऐसे ख़तरनाक आरोपी के पक्ष में भी (#istandnarshinghananad) हैशटेग कैंपैन चलाया जाता है जो समझ से परे होने के साथ साथ देश की एकता के लिए भी खतरा है। गलत का विरोध और और सही बात का समर्थन करना देश के जिम्मेदार नागरिको की पहचान होती है लेकिन कुछ लोग इससे परे जाकर देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रयासरत हैं।
नासिर शाह (सूफ़ी)


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