मुस्लिम शासकों के इतिहास पर टिका बॉलीवुड का भविष्य?

Sufi Ki Kalam Se

मुस्लिम शासकों के इतिहास पर टिका बॉलीवुड का भविष्य?


इतिहास को वैसे तो अधिकतर लोग काफी बोरिंग विषय मानकर पढ़ते नहीं है लेकिन अगर इसी इतिहास से संबंधित किसी तथ्य को लेकर कोई राजनेता या कोई सेलीब्रेटी कोई बात लिखे दे, बोल दे या फिल्म बना दे तो देश भर में उस मुद्दे पर जोरों शोरो से चर्चा होने लगती है। जो लोग इतिहास का इ भी नहीं जानते वह भी सोशल मीडिया पर एक परिपक्व इतिहासकार की तरह पोस्ट डालने लगते हैं और अराजकता फैलाने का काम करते हैं। लोगों की इसी अज्ञानता का फायदा पहले तो केवल राजनेता उठाते थे लेकिन अब वो लोग भी उठाने लगे हैं जिन्हें सस्ती लोकप्रियता पाकर स्टारडम पाने की जल्दी होती है। बॉलीवुड में हर चीज़ का एक दौर होता है और आज के दौर में ज्यादातर फिल्मी कहानियां एतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित आ रही है। इतिहास के विषयों पर फिल्में बनाना अच्छी बात है क्यूंकि इससे हमारा मनोरंजन होने के साथ साथ हमे महत्तवपूर्ण जानकारियाँ भी मिलती है लेकिन जब इतिहास का नाम लेकर फ़िल्मों में एतिहासिक महत्व की कहानियों को नमक मिर्च मिलाकर परोसा जाता है तो मनोरंजन की जगह दर्शकों का खून खोलने लगता है और दर्शक फिल्मी कहानियों को ही वास्तविक इतिहास मानकर एक दूसरे सम्प्रदाय के खिलाफ नफरत पैदा कर बैठते हैं।
वर्तमान में भारतीय सिनेमा की बात करे तो यहा भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। बॉलीवुड में एक के बाद एक लगातार ऐसी फ़िल्मों की भरमार होती जा रही है जिनमें मुस्लिम शासकों को आक्रांता, निर्दयी, डकैत आदि बताया जा रहा है। इस तरह की फ़िल्में काफी कामयाब भी हो रही है क्यूंकि हमने एक ऐसा काल्पनिक समाज तैयार कर लिया है जहाँ फ़िल्मों और सोशल मीडिया पर परोसा ज्ञान ही सत्य समझा जाने लगा है। धीरे धीरे इस बीमारी ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि लोग सोशल मीडिया की फेक पोस्ट और हिंदी फ़िल्मों की मनगढ़ंत ऐतिहासिक कहानियों को ही वास्तविकता समझने लगे हैं।

सिर्फ मुस्लिमों के इतिहास पर आपत्ति क्यों?
भारत के इतिहास को मुख्यतौर और तीन भागों में बांटा गया है। प्राचीन , मध्यकालीन और आधुनिक भारत। केवल मध्यकालीन भारत में ही मुस्लिम शासकों का वर्णन आता है और इतिहास के इसी भाग पर हमेशा से बहस होती रही है। जबकि यह बात सर्वविदित है कि हर दौर में अलग अलग भू भागों पर राजतंत्र के अनुसार राजाओं, महाराजाओं, नवाबों एंव बादशाहों का शासन रहा है। प्रत्येक राजा या बादशाहों ने अपनी श्रद्धा, लगन, विचारधारा एंव परिस्थितियों के अनुसार अपना अपना शासन चलाया था लेकिन अफसोस की बात है जब भी इतिहास पर चर्चा होती है तो बहस सिर्फ मुस्लिम शासकों की ही होती है क्यूंकि प्राचीन और आधुनिक इतिहास में मुस्लिम शासक नहीं होने के कारण फिल्मकारों और आलोचकों को चटपटा मसाला नहीं मिलता है और उन्हें अपने निर्धारित लक्ष्य के मुताबिक दौलत और शौहरत नहीं मिल पाती है।

भारत का मुसलमान देश का सबसे आसान चारा?
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में मुसलमानों से जुड़ी खबरों को तहलका मचा देने वाली खबरें समझा जाता है। शायद यही कारण है कि राजनेता हो या अन्य कोई भी साधारण व्यक्ति , जिसे भी सस्ती लोकप्रियता चाहिए वो समय समय पर इस्लाम पर हमलावर होकर चर्चा में आने की कोशिश करता है और इस मक़सद में काफी हद तक कामयाब भी हो जाता है। वर्तमान समय में शायद ही ऐसी कोई फिल्म या ऐसी कोई जनसभा होगी जंहा पर मुस्लिम समुदाय की शिक्षा और पिछड़ेपन पर बात होती होगी। हर जगह, किसी ना किसी बहाने सिर्फ इस्लाम धर्म को टार्गेट करने के अवसर आसानी से देखे जा सकते हैं।

मुस्लिम शासकों का पक्ष क्यों नहीं?
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इतिहास के पन्नों में जहां कई राजा अपने क्रूर शासन के लिए कुख्यात है तो कई राजा शान्ति एंव न्यायप्रिय शासन के लिए विख्यात भी है। और इन दोनों तरह (कुख्यात /विख्यात) के राजाओं मे सभी धर्मों के राजा शामिल रहे हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जिन मुस्लिम शासकों का इतिहास देशहित में रहा है उनकी प्रशंसा में कोई दो शब्द भी नहीं कहता है और अगर यदा कदा कोई बुद्धिजीवी एसे शासकों की प्रशंसा कर भी देता है तो कहने वाले की बात पर कोई तव्वजो नहीं दी जाती बल्कि उसे ट्रॉल और कर दिया जाता है।

मनोज मुंतशिर

अभी हाल ही में मुस्लिम इतिहास को ताजा हवा देने वाले प्रसिद्ध लेखक एंव गीतकार मनोज मुन्तशीर साहब को ही देख लीजिए जो मुग़लों को डकैत बता रहे हैं। अगर उनके हिसाब से मुगल डकैत है और वो इतिहास के इतने ही जानकर है तो उन्हें देश में राज करने वाले हर वंश पर कम से कम एक एक प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए जिससे उन्हें उन्हीं के सवाल का जवाब आसानी से मिल जाएगा लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे क्यूंकि वह इतिहास विषय की जानकारी रखते ही या ना रखते हों वह अलग विषय है लेकिन ऐसा करने का उनका जो सस्ती लोकप्रियता पाने का उद्देश्य है वह अवश्य पूरा होते दिख रहा है। हालांकि मनोज साहब को उर्दू और उर्दू नाम वालों से ज्यादा एतराज नहीं होना चाहिए था क्यूंकि उनकी रोजी रोटी भी उर्दू गीतों, लिरीक्स आदि से ही चलती है और खुद भी उर्दू लकब मुन्तशीर से ही पूरी दुनिया में जाने जाते हैं और उन्होंने बड़ी मेहनत से खुद के दम पर यह मुकाम हासिल किया है लेकिन फिर भी इस तरह के साम्प्रदायिक बयान देना समझ से परे है।
बॉलीवुड में इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने वालों में दिन दूनी रात चौगुनी गति से विकास हो रहा है। फेहरिस्त मे इतने नाम शामिल हो चुके हैं कि एक जगह उन सब का जिक्र करना सम्भव नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि बॉलीवुड के कलाकार आजकल इतिहास ज्यादा पढ़ने लगे हो इसलिए वह अपना ज्ञान इस तरह वाइरल कर रहे हैं। हर बात का विश्लेषण करने पर यही बात सामने आती है कि ऐसा केवल या तो सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए किया जाता है या फिर राजनीति में कदम ज़माने के लिए।
वैसे जहां तक मेरा मानना है हमें इतिहास पर केवल सकारात्मक बहस करनी चाहिए इतिहास केवल इतिहास होता है जो समय और परिस्थितियों पर आधारित होता है। इतिहास पूर्णतया भूतकाल पर आधारित होता जिसे वर्तमान समय में किसी जाति धर्म से जोड़कर साम्प्रदायिक रंग देना समय की बर्बादी के सिवा कुछ नहीं है।
– नासिर शाह (सूफ़ी)


Sufi Ki Kalam Se

13 thoughts on “मुस्लिम शासकों के इतिहास पर टिका बॉलीवुड का भविष्य?

  1. Pingback: other
  2. Pingback: rove brand
  3. Pingback: PHUKET VILLA
  4. Pingback: betflik19
  5. Pingback: Jaxx Liberty
  6. Pingback: free cams
  7. Pingback: herbal tea

Comments are closed.

error: Content is protected !!