गेस्ट कॉलम में आज पढ़िए हिन्दुस्तान के जाने माने शायर और प्रोफेसर डा. नश्तर बदायूँनी साहब की शानदार ग़ज़ल
बूढ़ी आँखों में ख़्वाब अब भी है
जैसे वो आस पास अब भी है!
छोड़ कर जा चुका है वो परदेस,
फिर भी अपनों से खास अब भी है।
ज़ाहरी तौर पर ये लगता है,
उसका चेहरा उदास अब भी है।
छीन कर ले गया सुकूं कोई,
शोर तो आस पास अब भी है!!
उसका घर आज जल गया नश्तर,
रहज़नों का निवास अब भी है!!
– डा. नश्तर बदायूँनी
1 – नश्तर – संजीदा 2- रहजन – लुटेरे
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