हिमाचल में रॉयल जिंदगी जीते हैं बौद्ध भिक्षु – (ज्योति नारनोलिया का ट्रैवल ब्लॉग)
बहुत पहले राहुल संकृत्यान की एक कृति पढ़ी थी – ‘लहासा की ओर’ तब से मैं भी वहां जाने को आतुर थी। आखिर 24 घंटे की लम्बी यात्रा करने का बाद, मैं मैक्लोडगंज पहुंच ही गई।मैक्लोडगंज को लिटिल लहासा या मिनी तिब्बत कहे तो कोई अतिशोक्यति नहीं होगी। इसका कारण यहां तिब्बती लोग अधिक है। मैक्लोडगंज धोलाधार पर्वत श्रृंखला पर बसा हुआ है, जो की वर्षभर बर्फ से ढकी रहती हैं। सूरज की किरणों में बर्फ यूं चमकती है मानो हिमालय ने चांदी और सोने के आभूषण धारण किए हो। इस दृश्य को एकटक निहारा जा सकता हैं। दूर दूर तक उड़ते प्रेयर फ्लैग मन में सुकून और शांति भर देते है।
यह बाकी हिल स्टेशन से अलग है, यहां मेंटल पीस के अलावा स्प्रिंचुअल वाइब्स भी है। यहां चिन्मय तपोवन, ओशो रिट्रीट सेंटर और भी कई मेडिटेशन सेंटर स्थापित हैं।
यूं तो यहां विश्व के अधिकांश देशों के लोग मिल जाएंगे जो किसी न किसी कारणवश अपना देश छोड़कर यहां आकर बस गए और यही के होकर रह गए। तिब्बत के लोग यहां सर्वाधिक संख्या मे हैं। 1959 में जब तिब्बत में चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के खिलाफ तत्कालीन दलाई लामा तेनजिंग ज्ञात्सो ने विद्रोह किया और असफल होने पर भारत आ गए। “अतिथि देवो भव” की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारत ने उन्हें शरणार्थी के रूप में आश्रय दिया, कालांतर में मैक्लोडगंज उनका आधिकारिक निवास बन गया। और कई बौद्ध मठों और हजारों शरणार्थियों का घर बन गया है। बौद्ध भिक्षु का नाम सुनकर अगर आपके मन में महात्मा बुद्ध वाली छवि आ रहीं हैं तो आप गलत सोच रहे हैं, यहां आपको मॉडर्न मोंक मिलेंगे जिनके हाथ में रोलेक्स की घड़ी और आईफोन मिलेगा या ब्रांडेड जूते और जैकेट पहने मिलेंगे जो उनकी रॉयल जिंदगी की गवाही देते हैं। इतना ही नहीं, ये बौद्ध भिक्षु मांस मदिरा के सेवन के साथ साथ अन्य कई प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन भी करते हैं। इनके मकानों में किसी भारतीय को जाने की अनुमती नहीं होती है। बौद्ध भिक्षुओं की यह आलीशान रॉयल जिंदगी यहां के आकर्षण का केंद्र कहा जा सकता है। ये भिक्षु रात को खूब शोर शराबा भी करते हैं।
यहां का प्रमुख पर्यटन स्थल है तेसुगलखांग/दलाई लामा टेंपल जो कि मैन मार्केट में हैं। यहां महात्मा बुद्ध से संबंधित सुंदर चित्र एंव कालचक्र भी बने हुए हैं।
डल लेक – ये हरे पानी की छोटी सी झील है जो की नाडी गांव की तलहटी में बनी हुई हैं। इस झील की खासियत ये है कि इसके एक किनारे पर देवदार और चीड़ के सघन पेड़ है, जिनकी परछाई जब झील पर पड़ती है तो पेटिंग जैसी प्रतीत होती है। यहा से नीचे की ओर जायेंगे तो गोथिक शैली में बना हुआ सेंट जॉन इन द विल्डरनेस चर्च है जो कि 1852 में बना हुआ हैं। ये अपनी ग्लास विंडो और आर्किटेक्चर के लिए फेमस है। यहा थोड़ा हॉरर (डर) और थोड़ी पीस वाली फील आएगी। पहाड़ और झरने का संगम देखना हो तो यहां से 2 किमी की ट्रेक करने पर भागसुनाग वाटरफॉल है, जहां शिवा कैफे में आप चाइनीज़ फूड भी एंजॉय कर सकते हैं। थुपका यहां की फेमस फूड हैं।
मैक्लोडगंज की तलहटी में बसा हुआ धर्मशाला शहर, जहां विश्व का सबसे ऊंचा क्रिकेट स्टेडियम (लगभग 7000 फीट) बना हुआ हैं। स्टेडियम भले ही आधुनिकता की निशानी हो लेकिन आस पास का मनमोहक वातावरण सदियों से इतना ही सुंदर रहा है। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर लंबे लंबे देवदार और चीड़ के पेड़ पंक्तियों में खड़े होकर आसमान को ललकारते हुए प्रतीत होते हैं। सफेद बर्फ की चादर, पेड़ों और पहाड़ो का बहुमूल्य शृंगार है जो हर पहाड़ो और पेड़ों को नसीब नहीं होता है।
ज्योति नारनोलिया
अँग्रेजी शिक्षिका एंव ट्रैवल ब्लॉगर
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