उदयपुर ट्रैवल ब्लॉग (शाहरुख़ सुल्तान कोटा)

Sufi Ki Kalam Se

सुल्तान की कलम से….
सज्जनगढ़ दुर्ग + झीलों की नगरी (उदयपुर शहर)

राजस्थान राज्य में झीलों के बीच बसा हुआ एक शहर उदयपुर ,जो कोटा से लगभग 282 से 285 किलोमीटर दूर स्थित है, यहाँ के वास्तुकला , हरियाली वगैरह पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करते है। यहाँ के आस – पास का मंजर बहुत ही खूबसूरत नजर आता है। यह शहर 468 साल पुराना शहर है, जिसे महाराणा उदय सिंह ने आखातीज पर बसाया था । हर आपदा व संकट को हराकर जीतने वाला एक शहर है, जिसे “पूर्व का वेनिस” भी कहा जाता हैl


आगे की अगर हम बात करें तो इस जिले में कुछ दूरी पर ही “सज्जनगढ़ का किला” विद्यमान है जिसका निर्माण मेवाड़ के महाराणा सज्जन सिंह ने 1884 ई. में बरसात के बादलों को देखने के लिए करवाया था।
इस दुर्ग के निर्माण में लगभग 10 वर्ष लगे थे, इस दुर्ग का निर्माण महाराणा प्रताप सिंह के कार्यकाल में पूर्ण हुआ । इस भवन को 13 मंजिला बनाना प्रस्तावित था किंतु 5 मंजिल ही बनाया गया। इस दुर्ग को उदयपुर का मुकुट मणि मुकुट मणि भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है, कि इस दुर्ग की आकृति एक गुलाब के समान बताए गई है,इस दुर्ग की इमारत को मानसून पैलेस के रूप में भी जाना जाता है जो कि समुद्र तट से 944 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
आइए इसी जिले की हम चंद पर्यटन स्थलों की बात करें तो सबसे पहले सुप्रसिद्ध “सहेलियों की बाड़ी” इसकी स्थापना 1710 से 1734 इसी के बीच राजपरिवार की महिलाओं के लिए आमोद – प्रमोद हेतु निर्मित करवाया था, इसी वजह से इसका नाम सहेलियों की बाड़ी रखा गया था, यह देश के सुंदर बगीचों में गिना जाता है, जिसे देखकर अंतर पूर्ण का जीवन शैली का आभास स्वतः ही हो जाता है। इससे पूर्व वस्तुः फतेहसागर के नीचे कई छोटे-छोटे बगीचे थे जिन्हें महाराणा फतेह सिंह ने सहेलियों की बाड़ी में मिलाकर इसे एक भव्य स्वरूप प्रदान किया है । चारों तरफ हरी-भरी धूप मनमोहक फूलों की कतारों और आकर्षक फव्वारों पर स्वत ही दृष्टि ठहर जाती है ,इसकी स्थापना – महाराणा संग्राम सिंह‌ (द्वितीय) ने की है, ये वहीं संग्राम सिंह है जिन्होंने शाहपुरा भीलवाड़ा में हुरड़ा सम्मेलन (17 जुलाई 1734) की योजना बनाई है । इसके अंदर स्थित रासलीला, कमल तलाई, कला धीरघा, पारम्परिक लघु चित्र आदि इसमे क्लांगन का लोकपर्ण –
पिछोला झील –
यह झील उदयपुर जिले की सबसे प्राचीन झील है , जिसका निर्माण- महाराणा लाखा के शासनकाल में एक पिच्छू / छितर नामक बंजारा ने करवाया इस झील के अंदर सीसा – रमा वह बुजड़ा नदियों का जल आकर गिरता है,इस झील के समीप एक घाट स्थित है, जिसे “गणगौर घाट” के नाम से याद किया जाता है और, इस झील के मध्य दो महल भी बने हुए हैं 1)जगमंदिर जिसका निर्माण – महाराणा करण सिंह ने करवाया तत्पश्चात महाराणा जगतसिंह ने करवाया |
2) जग निवास यानी लेक पैलेस होटल और इसी झील के किनारे नटनी (गलकी) का चबूतरा भी स्थित है, इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है, कि इसमें “सौर ऊर्जा” से चालित राज्य की प्रथम नाव चलाई गई थी (दिसंबर 1971) इसी झील के समीप संग्रहालय बागोर की हवेली , राजमहल जहां पर जाने के लिए टिकट लगता है,जिसका निर्माण – अमरचन्द बड़वा ने करवाया जहां पर विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी रखी है । सूर्य उदय होने पर झील में नाव की सवारी झील का मनमोहक दृश्य पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है ।
फतेहसागर झील –
इस झील को प्राचीन काल में देवाली तालाब व कनोट बांध भी कहा जाता था, इस झील की नीव अंग्रेज अधिकारी “ड्यूक ऑफ़ कनोट” द्वारा रखी गई इसी झील के मध्य स्थित टापू पर एक नेहरू उद्यान बनाया गया और एक द्वीप पर वेधशाला भी है जो राज्य की प्रथम सौर वेधशाला इसी झील के किनारे स्थापित की गई जिसमें भारत का सबसे बड़ा टेलीस्कोप स्थापित किया गया जिसका निर्माण – बेल्जियम में हुआ था इसी के पास ही मोती मगरी पहाड़ी पर महाराणा प्रताप का स्मारक बना हुआ है।
अन्य झील –
जयसमन्द झील
यह एशिया की सबसे बड़ी कृत्रिम झील और राजस्थान की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील कहलाई ,इसी झील के समीप लसाडिया का पठार भी स्थित है। सिंचाई के लिए यहां से दो नहर निकाली गई है शाम पुरा नहर व भाट/ घाट नहर और इसी झील को राजस्थान की सबसे बड़ी कृषि झील भी कहा जाता है, इसी के कुछ दूरी पर ही सिटी पैलेस म्यूजिम व जग निवास मन्दिर है, जिसमें रखी वास्तुकला वह बेजोड़ नमूने इस प्रकार है ।
• सबसे पहले इसके अंदर मेवाड़ के नरेशों का इतिहास वंश वृक्ष मौजूद है, नीका की चौपड़ यानी न्याय की चौपड़ जिसका निर्माता – राणा उदय उदय सिंह था यहाँ बैठकर महाराणा राज्य कार्यों का संचालन करते थे,यह महाराणा का निवास स्थान था, जब महलों का विस्तार हो गया तब इसका उपयोग दौलत खाने के रूप में किया जाने लगा यहाँ राज्य का खजाना रखा जाता था इसके उत्तर का कक्ष पांडे की ओवरी है जहां महाराणा के निजी उपयोग के आभूषण रखे जाते थे एवं दक्षिण के कक्ष को सेज की ओवरी कहा जाता था, (वर्तमान में प्रताप कक्ष प्रथम व द्वितीय ) । इस महल का निर्माण राणा उदय सिंह ने 1559 में करवाया था, यह शुद्ध भारतीय मंदिर शैली के महलों का अनुपम उदाहरण है |
यहाँ पर मौजूद पत्र जो कि बीकानेर के महाराजा पृथ्वीराज राज को महाराणा प्रताप सिंह जी पत्र का प्रत्युत्तर लिखते हुए यहाँ पर प्रदर्शित महाराणा प्रताप का कवच,यहाँ पर मौजूद मिट्टी के तेल से चलने वाला पंखा व अन्य पात्र वगैरह है ।
नौ चौकी की महल –
16 खंभों के बीच 9 बराबर हिस्सों में बँटा ,यह महल महाराणा उदय सिंह ने सन 1559 में बनवाया था, बाद में समय-समय पर महाराणा उन्हें इसका जीर्णोद्धार एक घुटाई पीतल के किवाड़ जंगला आदि के काम करवाएं । परंपरा के अनुसार इससे महल के सामने महाराणा का राजतिलक होता था।
नौ चौकी महल के मध्य में स्थित घुणी तपस्वी गोस्वामी प्रेम गिरी की है ,सन 1559 में इन्हीं के अनुरोध सहयोग आशीर्वाद से महाराणा उदय सिंह जी ने इस स्थान पर राज महलों की नींव रखी एवं महलों का निर्माण प्रारूप करवाया।
मेवाड़ में नदी का संयोजन-
विश्व में सर्वप्रथम मानव द्वारा नदी बहाव को संभवत सन 1669 इस में महाराणा राजसिंह जी के शासनकाल में उबेश्वर नदी का जल छोटे मदार में जाता था । सन 1669 में जाना सागर बड़ा का तालाब बनाते समय उबेश्वर की पहाड़ियों से निकलने वाली उबेश्वर नदी का बहाव उबेश्वर तीर्थ स्थल से 2 किलोमीटर पूर्व दिशा में धार ग्राम के उत्तर में 1 किलोमीटर की दूरी पर मोरवानी नदी के तरफ मोड़ दिया गया था, विश्व में मानव द्वारा नदी जोड़ने का यह पहला प्रयास था जिसके साक्ष्य आज भी धारा ग्राम के उत्तर में 1 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है तथा भौगोलिक तथ्य भी प्रमाणित करते हैं।
2 दिसम्बर 1911 – को जब ब्रिटिश सम्राट पंचम जॉर्ज ने दिल्ली में ऐतिहासिक एंपीरियल दरबार आयोजित किया था, महाराणा प्रताप सिंह जी ने अपने अपने यशोज्जवल वंश के गौरव की रक्षार्थ इस दरबार में सम्मिलित होने से अस्वीकार कर दिया था और स्वाधीनता प्रिय मेवाड़ के महाराणा की यही एकमात्र कुर्सी खाली रही l
मोती महल –
निर्माता – महाराणा करण सिंह (1620 – 1676)
दिलखुश महल की चौपड़ –
निर्माता – महाराणा करण सिंह सन (1620 -1628)
हाथी दांत का पुराना दरवाजा-
सूर्य प्रकाश –
निर्माता , महाराणा स्वरूप सिंह 1843 -1899 सुखनिवास महल
निर्माता – महाराणा भीमसिंह जनाना महल-
ब्रज विलास –
यह राजमाता श्रीमती गुलाब कंवर जी का निवास स्थान था |
लक्ष्मी चौक –
चारों और जनाने महलों से इस लक्ष्मी चौक का बड़ा महत्व है महारानी कुवरानियों जब कभी जनानी महलों से बाहर जाती थी तो डेलियो (मियान या पालकी) में बैठने से पहले लक्ष्मी चौक में खड़ी हेलण (हरिजन स्त्री) को सम्मान प्रगा लागणा करके आशिष प्राप्त करती थी |
इसको बहु हेलण कहते थे |
इसी म्यूजिम का एक दरवाजा जिसे तोरण पोल के नाम से याद किया जाता है।
अन्य –
अरावली वाटिका – (पार्क)
मोर चौक –
निर्माता – महाराणा सज्जन सिंह
स्वर्ण कलश – इन राजमहलों के गुम्बजों एक नगर के मंदिरों के शिखरों पर यह सवर्ण कलश चढ़े हुए है, जो स्वतन्त्र राज्य के चिन्ह है | आदि
Note –
उदयपुर जिले में झाडोल तहसील में कोल्यारी से 15 किलोमीटर के बीच एक सर्पिलाकार सड़क आमतौर पर घाट आमेटा घाट की है ,जिससे उदयपुर से फुलवारी की नाल तक का सफर और रोमांचक हो जाता है ,इस सड़क में 9 सर्पिलाकार मोड़ है इस घाट से गुजरना जितना खतरनाक है, उतना ही रोमांचक भी है,
खतरनाक मोड़ के कारण अभी यहां से सिर्फ बाइक और कार ही गुजरती है ,इस सड़क का निर्माण ठेकेदार डाडमचंद जैन ने करवाया, इस सड़क को बनाने में 2 साल लग गए और यह सड़क 6 किलोमीटर लंबी है|
उदयपुर से 30 किलोमीटर दूर स्थित कड़िया लेसिंग गाँव में अरावली की वादियों के बीच “बरवाषन माता का मंदिर” स्थित है दो पहाड़ों के बीच में वास करने के कारण इसका नाम बरवाषन पड़ा, माता की दो बहने हैं ,जिनमें से एक मुख्य मंदिर 300 किलोमीटर दूरी पर तालाब के किनारे विराजित है तो दूसरी 60 किलोमीटर दूरी गादोली गांव चामुंडा मंदिर के महिषासुर मर्दिनी के रूप में विराजित है |
भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर का एक सांस्कृतिक संस्था है जो राजस्थान गुजरात और मध्य प्रदेश की संस्कृति त्योहारों की लोक कला व लोकगीत के लिए समर्पित है, यहाँ छठी शताब्दी के अंश को समाहित किए नागदा उदयपुर में 22 किलोमीटर दूर स्थित अरावली की पहाड़ियों की गोद में बसा नागदा जटिल नक्काशी साहस बहू मंदिर के लिए प्रसिद्ध है जो कि आम लोग में सास बहू मंदिर के नाम से याद करते है, इसका तुरंत द्वारा अद्भुत बनाया गया है,उदयपुर में एकलिंग जी मंदिर बड़ा ही प्रसिद्ध है जिसकी तस्वीर उदयपुर सिटी पैलेस म्यूजियम में भी लगी हुई है, यह वही मंदिर की तस्वीर है जिसका निर्माण चित्तौड़ के बप्पा रावल ने करवाया था
यहाँ की प्रसिद्ध मस्जिद जामा मस्जिद जिसमें दरगाह भी मौजूद है, इस मस्जिद का आकार बाहरी बनावट अजमेर दरगाह (ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती) की जैसी है, इसके थोड़ी दूर समीप पर भावी 24 के प्रथम तीर्थंकर श्री पदम नाथ स्वामी तीर्थ मंदिर स्थित है
उदयपुर जिले की सुप्रसिद्ध नदी वाकल नदी जो गोगुंदा तहसील के गोरा गांव से निकली हुई है, जब नदी यह नदी राजस्थान गुजरात बॉर्डर तक पहुंचती है तो अद्भुत छटा बिखेरती है, अरावली श्रेणी में 158 किलोमीटर की दूरी पर तय करने के बाद क्षेत्र से 7 किलोमीटर दूर या गुजरात में साबरमती नदी में विलीन हो जाती है, इसमें मानसी और परवी आदि नदियां मिलती है|
यहां पर एक डाया बांध भी मौजूद है।उदयपुर की स्थापना से 5 साल पहले आयड़ नदी के किनारे (आहड़ सभ्यता) सभ्यता मौजूद थी विभिन्न खननों के स्तरों से पता चलता है, कि प्रारंभिक बसावट से लेकर 18 वीं सदी तक यहां कई बार बस्तियां बसी और उजड़ी आहड़ के आसपास तांबे की उपलब्धता के चलते महाराणा यहां के निवासी इस धातु के उपकरण बनाते थे, इसी तरह पिछोली गांव भी महाराणा लाखा के समय का है और इन्हीं लाखा के शासनकाल में जावर क्षेत्र में चाँदी का खनन हुआ यहां की खाने विश्व की सबसे पुरानी खानों में से एक है, अरावली पर्वतमाला के अंतर्गत आती है|

– शाहरुख़ (सुल्तान) कोटा


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