रमज़ान एक पवित्र मास (गेस्ट ब्लॉगर मुहम्मद अख्तर नदवी, कासमी बारां)

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रमज़ान एक पवित्र मास (गेस्ट ब्लॉगर मुहम्मद अख्तर नदवी, कासमी बारां)


अल्लाह ने अपने बंदों पर कई तरह से कृपा की है !उस की ही कृपा का नतीजा रमज़ान का पवित्र महीना है जो उसने अपने बंदों को प्रदान किया है!
इस्लाम की समस्त शिक्षाएं इंसानियत के लिए है!ये अलग बात है की हम इन शिक्षाओं को समझ पाए या ना समझ पाए ये बात बिलकुल भी अंधविश्वास या शिक्षा की कमी के आधार पर नहीं कही जा रही है बल्कि इस्लाम की समस्त शिक्षाएं साईं टिफिक व सिद्धांतिक है!और ये अटल हकीकत है!
इस्लाम की मूल भूत शिक्षाओं में से “रोज़े “भी एक है! जो साल में एक मर्तबा इस्लाम कलन्डर के हिसाब से 9वा महीना रमज़ान के फर्ज़ है!जो कोई मुसलमान इस पूरे महीने के रोज़े रखने का इंकार करे तो वह मुसलमान नही माना जाएगा और जो कोई मुस्लमान होने के बाद भी इस पवित्र माह के रोज़े ना रखे या बिना किसी वजह के कुछ रखे और कुछ ना रखे तो वह गुनाहगार मुस्लमान समझा जाता है!
रोजा एक ऐसी इबादत है जो किसी ना किसी रूप में हर मजहब में मौजूद रही है! इसीलिए कुरान शरीफ मे अल्लाह तआला फ़र माता है! “ऐ ईमान वालों तुम पर रोज़े फ़र्ज़ कर दिये गये जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फ़र्ज़ किये गये थे! ताकि तुम इश्वर से डरों”(कुरान पाक) ये बात अलग है कि इस्लाम के अलावा अन्य धर्मों में इस का रूप बिगड़ गया है! और लोगों ने अपनी मर्जी से इस को रखना शुरू कर दिया और कहीं व्रत तो कहीं उपवास का नाम दे दिया जो रोज़े के ही बिगड़े हुए रूप है!
जब कि इस्लाम में रोजा इस तरह है कि बंदा मोमिन पौ फटने से पहले पहले तक खा पी सकता है लेकिन इसके बाद दिन भर सूरज डूबने तक ना कुछ खा सकता है ना ही एक बूंद पेय पदार्थ इस्तमाल कर सकता है!और ना ही अपनी बीवी से जिस्मानी ताल्लुक बना सकता है इस तरह बारह, तेरह बल्कि चौदह घंटों तक बिना कुछ खाए पिये और अपनी पत्नी के साथ रहते हुए भी दिन में उससे निजी ताल्लुक नहीं बना सकता!
तो इस तरह से एक बन्दे को इस बात की तरबीयत दी जाती है कि वह जब कभी आम जिंदगी मे ईन चीजों से महरूम हो तो वह ज्यादा व्याकुल व बे चेन हो कर गलत रास्ता ना अपना ले और हराम चीजों को इस्तेमाल ना करने लग जाए बल्कि वह रोज़े का ख्याल करते हुए साल भर की जिंदगी भी इसी तरह ईश्वर की और से मना कि गई चीजों से बचते बचाते गुजारे! और साथ ही साथ उन लोगों का एहसास भी अपने अंदर पैदा करे जो प्रेक्टिकल तौर पर ईन चीजों से महरूम है! हमारे देश में भुखमरी का अनुपात दूसरे देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है पिछले साल जब से कोरो ना महामारी फैली है तब से अब तक ये भुखमरी का अनुपात डबल से भी ज्यादा हो गया है!
रोजे के उद्देश्य मे सिर्फ यह ही नहीं है कि गरीब मुसलामानों का ख्याल रखा जाए, उन्हें अ फ तार कराया जाए बल्कि रोज़े के उद्देश्य मे यह भी है कि हर गैर मुस्लिम गरीब की मदद की जाए उसका भी ख्याल रखा जाए उनकी जरूरतों को पूरा करने कि कोशिश कि जाए बल्कि साल भर उनकी बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने के लिए कोशिश होती रहे!
रोजा इंसान की आवश्यक जरूरतों खाने पीने और काम ईच्छा को कंट्रोल करने का नाम है! रोजा ईश्वर के हर जगह मौजूद होने के एहसास को बढ़ाने का नाम है कि हर बंदा ईश्वर के आदेशों के विरुद्ध कार्य करने से डरे जिस तरह की वह रोज़े मे डर कर कुछ खाता पीता नहीं है और ना ही हलाल होते हुए भी अपनी बीवी से जिस्मानी ताल्लुक नहीं बनाता तो वह व्यक्ति कैसे आम जिन्दगी मे किसी का खाना पीना छ न सकता है और किस तरह वह ईश्वर की तरफ से हारा म की गई चीजों को खा पी सकता है और किसी पराई औरत पर नजर भी उठा सकता है ये और इस तरह की कई तरबीयत रोजा अपने रखने वालों की करना चाहता है! ✍मुहम्मद अख्तर नद वी, कासमी 8619966286


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8 thoughts on “रमज़ान एक पवित्र मास (गेस्ट ब्लॉगर मुहम्मद अख्तर नदवी, कासमी बारां)

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