‘ सोचा न था” (गेस्ट पॉएट आरिफ “काज़ी” की कविता)

Sufi Ki Kalam Se

सोचा न था

– गेस्ट पॉएट आरिफ “काज़ी”

मुल्क की तरक्की इतनी, हो जाएगी सोचा न था।
सरकार ही मोबाइल में, हो जाएगी सोचा न था।।

जिसने फैलाया था पूरे भारत में लोगों तक संचार।
वह बीएसएनएल ही कहीं, खो जाएगी सोचा न था।।

लोग रखते थे अपने घरों में मेहनत की कमाई।
एक पहर नोटबंदी, हो जाएगी सोचा न था।।

जो किया करते थे लोगों के मुकदमों पर सही फैसले।
उनकी भी एक दिन सफ़ाई, हो जाएगी सोचा न था।।

पीटे थे चुनाव में महंगाई और बेरोजगारी के ढोल।
वह सरकारें सत्ता पाकर, सो जाएगी सोचा न था।।

बसे हैं जहां हिंदू – मुस्लिम बरसों से मोहब्बतों में।
वहां नफरतें इस क़द्र बो, दी जाएगी सोचा न था।।

रहा है सदियों से गंगा जमुना तहजीब का मिसाल भारत।
जिसकी एक ट्वीट से संप्रभुता, खो जाएगी सोचा न था।।

कोरोना काल में भी जिस किसान ने हमारी लाज बचाई।
उसे ही रात सड़क पर बितानी पड़, जाएगी सोचा न था।।

कभी निर्भया, कभी आसिफा, हाथरस और आइशा
बेटी बचाओ सिर्फ़ नारो में, रह जायेगी सोचा न था

गेस्ट पॉएट आरिफ “काज़ी”


Sufi Ki Kalam Se

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