पैराटीचर का सम्मान (मार्मिक कहानी गेस्ट राइटर बशीर शाह साईं)
गुरु जी को ऑफिस से फोन आया सामने से व्यक्ति नेकहा “आपको जिला स्तर परसम्मानित किया जा रहा है। सुबह 10:00 बजे पहुंच जाना।” दूसरी ओर से फोन कट गया ।लेकिन गुरु जी की धड़कनें बढ़ गई !बेचैनी छा गई ।और इसी उधेड़बुन में घर जाकर बैठे ही थे कि थोड़ी देर में साथियों के फोन आने लगे “बधाई हो गुरुजी आपका नाम जिला स्तर पर सम्मानित लिस्ट में है पार्टी तो बनती है” गुरुजी क्या कहते हैं हां जी हां जी कहकर जल्दी-जल्दी फोन काट रहे थे। लेकिन उनकी परेशानी का हल नजर नहीं आ रहा था। आज ही बच्चे का एडमिशन करवाया था। फीस भरी थी सारा पैसा खर्च हो चुका था। इधर उधर से उधार लेकर फीस में लगा चुके थे। मानदेय अभी तक आया नहीं था। और ऊपर से यह सम्मानित होने के लिए सवेरे जल्दी जाना और इसके लिए जेब में सिर्फ सौ रुपए ।जबकि खर्चा हजार रूपए है। दूधवाले का भी 5 तारीख को हिसाब करना है। खैर जैसे- तैसे गुरुजी ने जिले तक का सफर किया। और जाकर के नियत स्थल पर कुर्सी पर बैठ गये। भव्य पंडाल, बढ़िया मंच और अधिकारियों के लिए खूब सारी सुविधाये । भारी भरकम लवाजमे के साथ नेताजी का आगमन हुआ।थोड़ी ही देर में कार्यक्रम की शुरुआत, तालियों की गड़गड़ाहट और फिर गुरु जी का नाम भी पुकारा गया। सम्मानित करने के नाम पर गुरु जी को एक सर्टिफिकेट प्रदान किया गया। कुछ देर भाषण बाजी और शिक्षकों को इसी तरह से बच्चों की मुस्तकबिल के लिए काम करते रहने की शपथ के साथ विदाई ।किसी ने यह नहीं पूछा की “गुरुजी के मुस्तकबिल का क्या हो?” गुरु जी की परेशानी का कारण आर्थिक और मानसिक दोनों था। गुरुजी नियमितीकरण के आस में सिर्फआठ हजार मासिक मानदेय पर 14 वर्ष से कार्य कर रहे थे और गत महीने का मानदेय भी बकाया।और ऐसे में इस खर्चे को मिलाकर कर्जा और बढ़ गया।गुरु जी का मानदेय बढ़ाने, नियमित करके वास्तविक सम्मानित करने का वक्त किसी के पास नहीं था।
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