सूफ़ी की कलम से ✍️
अर्नब के अपराध पर सन्नाटा क्यों?
पूछता है भारत
रिपब्लिक भारत के एकंर अर्नब गोस्वामी एक ऐसे पत्रकार होंगे जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता कम और साम्प्रदायिक बाते ज्यादा की होगी, मगर राजनीतिक दल की वफादारी और उनके करोड़ों चाहने वालों के चलते इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती रही है। खबर चाहे कोई सी भी हो, अर्नब साहब उसे घुमाकर घुमाकर, चीख, चीख कर उसका एगंल ही बदल देते हैं और जनता उसे सच मानकर उन्हें सच्चा राष्ट्रभक्त मानती रही है या यों कहे कि वो अपने आपको देशभक्त मनवाते रहे।
रिया चक्रवर्ती हो या उद्धव सरकार, सोनिया गांधी हो या कोई विपक्षी नेता, सबको अर्नब ने अपने हिसाब से अपराधी साबित करके उनकी छवि धूमिल की। एक इंजिनियर को तो उनकी वजह से आत्महत्या तक करनी पड़ी जिसके आरोप में उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी। उस केस में तो अर्नब मेहनत, मशक्कत और पहचान के चलते रिहा हो गए मगर अब फिर वह नई मुसीबतों मे घिर गए हैं। एक ऐसी मुसीबत जिसमें से बच कर निकलना काफी मुश्किल है लेकिन अर्नब पर मजबूत हाथों के होने के चलते कुछ दावा नहीं किया जा सकता है, जो कॉंग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान मे कहा था कि अर्नब का कोई कुछ नहीं कर सकता। उनका ये बयान वैसे तो काफी सवाल पैदा करता है लेकिन छोड़ो, इस दौर में सवाल उठाना महंगा पड़ सकता है।
वैसे उन पर लगाए गए आरोप तो अनगिनत है लेकिन हम सिर्फ मुख्य अपराधों की बात करे जो उनकी वाट्स अप चैट से ही जाहिर है, तो सबसे बड़ा अपराध तो यह है कि पुलवामा हमला, उनके लिए इतना क्रेजी करने वाला रहा कि उनकी टीआरपी ने उन्हें अंधा कर दिया और वो इसे क्रेजी करने वाला लम्हा बता रहे हैं। उनके टीआरपी धांधली वाले केस से तो सभी परिचित होंगे। इसके अलावा उन्हीं की चैट के अनुसार उन्हें बालाकोट स्ट्राइक की तीन दिन पहले से पता था जो ना सिर्फ अर्नब पर बल्कि सरकार पर भी सवाल उठाता है।
जब देश में छोटी सी घटना होती है तो पूरे देश में विरोध प्रदर्शन और आलोचना करने वालों की बाढ़ आ जाती है लेकिन अर्नब मामले में इतना कुछ घटित होने पर भी मुख्य धारा के मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में सिर्फ सन्नाटा छाया हुआ है।
देश में अर्नब अकेले ऐसे पत्रकार नहीं है जो नफरत बढ़ाने वालों की श्रेणी में शामिल है। वर्तमान समय में देश के अधिकतर मैन स्ट्रीम मीडिया में सिर्फ साम्प्रदायिक ख़बरें और विपक्षी दलों की बुराई के अलावा आपको कुछ दिखाई नहीं देगा। हाँ, किसी एक पक्ष की चाटुकारिता आपको स्पष्ट दिखाई देगी।
अगर आप स्वंय शिक्षित, समझदार और जिम्मेदार है तो आपको खबरों से ही समझ में आ जायेगा कि सामने वाला आपको क्या परोसना चाहता है। वो अलग बात है कि जो हम देखना चाहते हैं उन्हें ना दिखाकर हमारा दिमाग हाई जेक कर लिया जाता है और फिर वो जो दिखाते है, हमे वही हमारा मुद्दा लगने लगता है। जिस तरह मार्केटिंग कंपनियां ग्राहको को बांधने के लिए नित नए नए फॉर्मूले लेकर आती है उसी तरह आजकल पत्रकार भी जिस चाहें सरकार की मार्केटिंग कर रहे हैं और जनता है कि आंखे मूंदकर उनके प्रोडक्ट ना सिर्फ खरीद रही है बल्कि स्वयं कब उनकी प्रचारक बन गई है, पता ही नहीं चल पा रहा है।
खैर, हम सिर्फ अर्नब के अपराध की बात करे जो उन्हीं की वाट्स अप चैट से जाहिर है, पर इतना सन्नाटा क्यों है? क्या ये राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा का मामला नहीं है? पूर्व में अर्नब के जेल जाने पर सरकार से लेकर प्रशंसकों तक ने अर्नब के पक्ष में काफी आंदोलन किया था और कहा था कि पत्रकारिता पर हमला राष्ट्रीय आपातकाल जैसा है तो क्या अब उन्हीं लोगों और नेताओ से यह सवाल नहीं किया जाना चाहिए कि अर्नब पर नित नए खुलासों पर आप ख़ामोश क्यों है?
पूछता है भारत।
- नासिर शाह (सूफ़ी)
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पूछता है भारत”
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