कांग्रेस हाईकमान के तौर पर दिल्ली मे प्रियंका गांधी के मजबूत होकर उभरने से गहलोत खेमे मे उदासी।
पंजाब सुलह के बाद अब राजस्थान मे सुलह का रास्ता अपनाया जायेगा।
अशफाक कायमखानी
जयपुर।
पंजाब कांग्रेस मे पीछले कुछ महीनों की उहापोह की स्थिति को कल उस वक्त विराम लग गया जब मुख्यमंत्री केप्टेन अमरिंदर सिंह खेमे के विरोध व लगातार आनाकानी करते रहने के बावजूद दिल्ली मे कांग्रेस हाईकमान मे मजबूत होकर उभरती प्रियंका गांधी की इच्छानुसार पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद पर नवजोत सिंद्धु की ताजपोशी करने का ऐहलान हो गया। एक साल पहले राजस्थान के विधायकों के मुख्यमंत्री गहलोत व तत्तकालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमे मे बंटने के बाद पायलट खेमे के विधायकों की प्रियंका गांधी के मार्फत गहलोत की इच्छा के विपरीत घर वापसी हुई थी। घर वापसी के समय हुये समझोते को राजस्थान मे प्रियंका गांधी द्वारा लगातार लागू करने की कोशिश करने के बावजूद गहलोत टालते आ रहे है। पंजाब मसले के निपटारे के बाद अब गहलोत पर सुलह के रास्ते पर आने का दवाब बढ गया है।
एक साल पहले पायलट-गहलोत खेमे के रुप मे कांग्रेस विधायकों मे आई दरार के समय गहलोत के समर्थन मे रहे विधायकों को एक साल से अधिक समय गुजरने के बावजूद उन्हें मंत्रीमंडल व राजनीतिक नियुक्तियों की मलाई खाने का अवसर नही मिलने पर इंतेजार मे उनकी आंखे पत्थरा सी गई है। वही दिल्ली मे प्रियंका गांधी की उपस्थिति मे हुये समझोते पर एक साल तक अमल नही होने से पायलट खेमे के विधायकों का सब्र जवाब देने लगा है। एक साल मे गहलोत-पायलट समर्थक विधायकों मे आपस मे तल्ख टिप्पणियों का होना भी देखा गया है। गहलोत के मुख्यमंत्री रहते प्रदेश मे फिर से कांग्रेस सरकार आने का इतिहास भी पहले से अच्छा नही होने को कांग्रेस हाईकमान भलीभांति समझता है।
मुख्यमंत्री गहलोत किसी भी हालत मे सचिन पायलट खेमे को किसी भी रुप मे राजनीतिक फायदा देना अपने आपको कमजोर करना मान रहे है। वो पीछले छ महीने से दिल्ली जाकर हाईकमान के सामने हमेशा की तरह हाजरी भी नही मारी है। जबकि पायलट लगातार दिल्ली जाकर हाजरी बजा रहे है।
कुल मिलाकर यह है कि दिल्ली मे प्रियंका गांधी व राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर के आपसी सामंजस्य व एकठ्ठा रणनीति के तहत कांग्रेस हाईकमान के तौर पर अब गांधी परिवार मे प्रियंका का उदय हो चुका है। उनकी रणनीति के तहत गहलोत मुख्यमंत्री बन रहेगे ओर सचिन पायलट दिल्ली मे ओहदेदार बनेगे। जबकि गहलोत के प्रदेश की राजनीति मे पैर कतरे जाने के लिये गहलोत व पायलट के मध्य का नया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मनोनीत होगा। वही पायलट समर्थकों को मंत्रीपरिषद व राजनीतिक नियुक्तियों मे अहमियत मिलेगी।
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