पुस्तक समीक्षा – जूठन दोनों खंड, लेखक – ओमप्रकाश वाल्मीकि

Sufi Ki Kalam Se

किताब की श्रेणी – आत्मा कथा
लेखक – ओमप्रकाश वाल्मीकि
किताब का नाम – जूठन दोनों खंड
प्रकाशक – राधाकृष्ण

पहला खंड

ओमप्रकाश वाल्मीकि का परिचय मुझें कक्षा ग्यारहवीं और बाहरवीं में हुआ था उनकी एक कहानी खानाबदोश
एन.सी.आर.टी की किताब  में पढ़ने को मिली थीं।
कहानी का स्थान उसकी वेदना जो निकल कर सामने आयी वो बहुत ही दयनीय स्थिति में थीं। वो कहानी भुलाये नही भूलती। इसी चक्कर में हमने बाल्मीकि जी और पढ़ना आरंभ किया। लेकिन कुछ मिला नहीं  उस समय इंटरनेट भी महंगा था इतना जोश ओ खरोश था नही की हम खरीद के पढ़ें।

फिर लॉकडाउन में जूठन पहला खंड पढ़ा पढ़ते ही सकते में आ गया। कि आखिर एक गरीब वंचित दलित की स्थिति आज के सज्जन समाज मे क्या थीं।
पहले खंड में वाल्मीकि जी अपने कीचड़ से भरे घर से निकलते है। उनके परिवार में जीविका का कोई दूसरा साधन नहीं था, सो उन्होंने सुअर की फार्मिंग की
उनका घर मिट्टी से निर्मित था जहां अधिक पानी पड़ने से उनका घर जगह जगह से दरकने लगता था।

आस-पास मोहल्ले में सभी का घर ऐसा ही था लगभग सभी के घर ऐसे ही थे, ये बिल्कुल निम्र वर्ग था जिसके पास जीविका का कोई साधन नही था, ये सभी लोग मरी हुऐ मवेशियों की खाल निकालने का काम करते थे।
उस पूरे मोहल्ले में कोई भी शिक्षित नहीं था
लेकिन वाल्मीकि जी पढ़ना आरंभ किया शुरू शुरू में लोगो ने मजाक बनाया लेकिन वाल्मीकि जी ने सभी को अनदेखा कर दिया।  वाल्मीकि जी के साथ स्कूल में भी बहुत गलत व्यहवार हुआ, बार बार शिक्षक और सहपाठियों ने उन्हें छोटी जात का होने का अहसास कराया शायद इसलिए वाल्मीकि जी पढ़ने को लेकर हमेशा आतुर रहे। उनको पता था ये जातिवादी  सिस्टम को चेंज तभी किया जा सकता है जब आप इस सिस्टम में खुद घुस कर ना बैठ जायें। ये कुछ वैसा ही है जैसे नाली को साफ करने के लिये नाली में उतरना पड़ेगा
बहरहाल वाल्मीकि जी पढ़ते पढ़ते जाति का दंश झेलते
उस मुकाम पे पहुँचे जहा छोटी वाल्मीकि सर नेम वाले कम ही पहुँचते है , वाल्मीकि का पहुँचना भी एक चमत्कार के समान है। जिस तरह इस जातिवादी समाज ने उन्हें हर समय नीचा दिखाया उनके काम के लिये उन्हें परेशान किया उनके घर वालों तक को भला बुरा बोला, उनकी संस्कृति उनकी आत्मा को झंझोर दिया
ये सभी वाल्मीकि जी के साथ होता है बहुत जगह पढ़ते वक्त लगता है कि हम बाबा साहेब को पढ़ रहे है उन्होंने भी जबदस्त जातीय दंश झेला था ।

दूसरा खंड

दूसरे खंड में वाल्मीकि जी अपने नौकरी के दौरान जिस तरह से अपनी जातीय पहचान के लिये हमेशा परेशान किये गए। उन्हें मसलन वो काम भी करवाया गया जो उनके जूनियर तक नही था। उन्हें जबदस्ती साफ सफाई विभाग में डाल दिया गया क्यों कि उनका सर नेम वाल्मीकि था इस जातिवादी समाज को यही लगता है कि वाल्मीकि नाम वाले व्यक्ति के लिये साफ सफाई के अलावा कुछ और काम हो ही नही सकता। ऐसी परिस्थिति में  भी वाल्मीकि जी परेशान नही हुए उन्हें जो कार्य दिया गया उन्होंने उसे सफलतापूर्वक संपन्न किया। बिना कोई विरोध के

वाल्मीकि जी अच्छी नौकरी में थे अच्छा ओहदा पाया था, इसके बावजूद उन्हें बार बार परेशान किया गया।
वाल्मीकि जी का तबादला कही दूर अपने सास ससुर से किया गया था, सास ससुर का वाल्मीकि और उनकी धर्मपत्नी चंदा के अलावा कोई नही था ऐसे समय पे वाल्मीकि जी उन्हें अकेला तो नही छोड़ सकते थे
इसी वजह से उन्होंने अर्जी डाली की मेरा तबादला बापस वही कर दिया जाये जहाँ पहले था

उनका तबादले की पूरी प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी, किंतु अब आखरी बार एक आदमी के पास होकर गुजरनी थी
उसने पहले ही वाल्मीकि जी की जाति को लेकर कई बार मजाक बनाया नीचा दिखाया। उसने भरसक तबादले रोकने की कोशिश की लेकिन अंततः तबादला हो गया।

ऐसा नही है कि हर उच्चवर्गीय लोगो ने उनकी जाति को लेकर उन्हें परेशान किया कुछ उच्चवर्गीय लोगों ने अंतिम समय तक उनके साथ बने रहें। वाल्मीकि जी भी उनका अहसान मानते रहे। बहुत बड़ा उनके रास्ते रोढ़ा अटकाया गया, वहीं कुछ लोग उनकी मदद को हमेशा खड़े रहे। वाल्मीकि जी कविता में दलितों की दशा वेदना निकल आती है बहुत बार इस कविताओं की वजह से मुसीबत में पड़ने से बचें है। लेकिन वाल्मीकि जी ने कभी इसकी फिक्र ही नही की। हमेशा जो उनका रास्ता रोकते वो दुगनी तेजी से आगें बढ़ते। कई जगह संवाद अश्लील है यो कहो गाली से भरपूर है शायद वाल्मीकि जी का डालने का उद्देश्य आत्मकथा जीवंत रहे।
यकीन मानिये उनकी कविता दलितों के दास्तां की दर्पण है
आप सभी को उनकी एक कविताएँ के साथ छोड़े जा रहे है ।

ठाकुर का कुआँ

चूल्‍हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का ।

भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का ।

बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की ।

कुआँ ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्‍ले ठाकुर के
फिर अपना क्‍या ?
गाँव ?
शहर ?
देश ?
समीक्षक -मुहम्मद तहसीन (गेस्ट ब्लॉगर)
छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय


Sufi Ki Kalam Se

11 thoughts on “पुस्तक समीक्षा – जूठन दोनों खंड, लेखक – ओमप्रकाश वाल्मीकि

  1. Pingback: jazz
  2. Pingback: spa music
  3. Pingback: coway
  4. Pingback: som777
  5. Pingback: Brian
  6. Pingback: funny videos

Comments are closed.

error: Content is protected !!