बूंदी जिले और किले की कहानी

Sufi Ki Kalam Se

तिलिस्म किला, तारागढ़, बून्दी

सुल्तान की क़लम से…..

बूंदी किला

• कभी – कभी कुछ शब्द या कहावत खुद में एक इतिहास समेटे होते है |
➖ इतिहास और विकास की अगर हम बात करे, तो कहानियां बहुत लम्बी है |
हुआ यह , कि बून्दी जिले की अगर हम बात करे तो कहा जाता है, कि हाड़ा राजवंशीय द्वारा शासित भूमि हाड़ौती के नाम से प्रसिद्ध है ,
प्राचीन काल में यह राज्य सपसदलक्ष जनपद के नाम से विख्यात था |
महाभारत काल में चर्मण्वती नदी ( चम्बल नदी ) के किनारे इस हाड़ौती प्रदेश पर जम्भक के पुत्र का राज्य था , इसे ‘सहदेव’ ने दक्षिण दिशा की विजय के समय जीता था |

पौराणिक कथाओं में हाड़ौती का उल्लेख आता है, दुर्गा सप्तशती में वर्णित “राजा सुरथ का निवास” बून्दी जिले में स्तिथ सतूर नामक स्थान को बताया गया है और इसी जगह ‘सतूूर नामक माता का मंदिर’ भी स्तिथ है |

➖इतिहासकार के अनुसार , बून्दी चौहान राजवंश का सबसे प्राचीन राज्य माना जाता है क्योंकि बूंदा मीणा (राजा) के नाम से ही बून्दी का नाम पड़ा ऐसा कहा गया है |

➖ यहाँ चौहान वंश की हाड़ा शाखा का अधिकार (1241 ई.) हुआ , यह क्षेत्र हाड़ौती कहलाने लगा |
➖ कोटा का राजवंश बून्दी से ही निकला है , इतना ही नही बल्कि हाड़ौती के शासक शूरवीर होने के साथ -साथ अच्छे कला दर्शन प्रेमी भी थे |

कहावत – गाज़र का गरगोट बनाया , मूली का दरवाजा, समरकन्द की तोप बनाई लड़े करे रा – लाखा |

  • इस कहावत का भी एक बड़ा ही रोचक इतिहास है , आज बात इसी कहावत के ऊपर करते है , कि जब राव हम्मीर के समय मेवाड़ के राणा , लाखा ने बून्दी के किले को जीतने की कोशिश की , जिसमे असफल रहने पर , मिट्टी का नकली दुर्ग बनाकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की |

• तारागढ़ दुर्ग जो कि घने जंगलों में अरावली की ऊँची पहाड़ी पर बसा अर्थात आड़ावाल पहाड़ी पर बना यह किला , देश – दुनियां में चमकता हुआ शानदार दुर्ग है , इसे लोग बूंदी का किला भी कहते है |

➖ चौदहवी सदी में बून्दी के संस्थापक – राव देवा / बरसिंह हाड़ा ने इस विशाल और खूबसूरत दुर्ग का निर्माण करवाया जो आज भी बून्दी के पर्यटन को वैश्विक स्तर प्रदान करता है |
➖ इस दुर्ग को बून्दी के नरेश ने रियासत की शत्रुओं से सुरक्षा के लिए ही निर्मित करवाया था |
➖ यहाँ के शासकों ने किले का निर्माण कराने के लिए पहाड़ी के एक सिरे को पूरी तरह ढलवां बनाकर निर्माण करवाया ,
➖ इसी किले के समीप एक “नवल सागर झील” बहती हुई नज़र आती है |

दुर्ग के अन्दर प्रवेश –

  • दुर्ग के अंदर तीन दरवाज़े है , जिन्हें लक्ष्मी पॉल , फूटा पॉल वगैरह के नाम से याद किया जाता है ,
  • दुर्ग का नाम तारे की आकृति के समान रखा गया है |
  • इसी दुर्ग के अंदर एक महल बना हुआ है , जिसे “दौलत दरी खाना” बोला जाता है, जहाँ पर बून्दी के शासकों का राज्याभिषेक हुआ करता था और इसी किले में स्तिथ ‘राजमहल’ जो कि राजस्थान में भित्ति चित्रों / बून्दी चित्रशैली के लिए आज भी बड़ा प्रसिद्ध है ,जिसमे वर्तमान में बून्दी के चित्रकार , शिक्षक व लेक्चर अपनी अहम भूमिका निभाते है |

➖ कर्नल जेम्स टॉड – (प्रसिद्ध इतिहासकार) ने बून्दी के राजमहलों को राजस्थान के सभी रजवाड़ो के राजप्रसादों में सर्वश्रेष्ठ बताया है |

  • यह दुर्ग एक ठेठ राजपूती स्थापत्य व भवन निर्माण कला से बना हुआ है , जो समुद्र तल से 1400 फिट और बून्दी शहर से 600 फिट ऊँचाई पर स्तिथ है |

NOTE ➖
वर्तमान में बून्दी जिले में स्तिथ , रामगढ़ विषधारी अभ्यारण्य – यहाँ बाघ परियोजना के बिना पर भी यहाँ बाघ पाए जाते है, देश – विदेश से बडी संख्या में पर्यटक यहाँ के गौरवशाली इतिहास की झलक देखने आते है , बाघ आने पर इस क्षेत्र में एक अलग ही नज़ारा दिखाई देने लगेगा क्योंकि यह शहर Before ” बाघों की जच्चा स्थली के नाम से जाना जाता था |

➖ राजस्थान में “छोटी काशी” के नाम से प्रसिद्ध -बून्दी जिला , यहाँ से निकलने वाला National हाइवे 52 पर बनी टनल जो कि “प्रदेश की सबसे बड़ी सुरंग” है , यह सुंरग पहाड़ों को छेदकर निकाली गई सुरंग है , यह सुरंग 1100 मीटर लम्बी है जो अपनी एक अलग ही पहचान रखती है ,

इसी – बीच कोटा से चित्तौड़गढ़ , रेलखंड के श्रीनगर व जालन्धर ई रेलवे स्टेशनों के बीच 320 मीटर लंबी व 4 डिग्री कर्व की एक ऐसी सुरंग है , जिसे देखने दूरदराज़ से लोग यहाँ तशरीफ़ लाते है और इसी चेनल के पास ‘भीमतल महादेव वाटर फॉल’ स्तिथ है, (पर्यटकों का मुख्य आकर्षक केंद्र) इस टनल तक बून्दी से बिजौलिया (भीलवाड़ा) state हाइवे के जरिये पहुंचा जा सकता है |

शाहरूख (सुल्तान ) (नयी कलम)

बूंदी किला

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