सूफ़ी की क़लम से…✍🏻
“आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “
भाग- 18 “प्राकृतिक खेती”

हमने जैविक खेती को पढ़ा और समझा ।आजकल हर तरफ़ जैविक खेती की बातें होती हैं लेकिन इन सब के बीच लोग प्राकृतिक खेती के बारे में तो भूल ही गए या यों कहे कि ज्यादातर लोग तो जैविक खेती को ही प्राकृतिक खेती समझते हैं । जबकि ऐसा नहीं है, प्राकृतिक खेती,जैविक से अलग होती है । हाँ इतना ज़रूर है कि दोनों ही प्रकार की खेती हमारे स्वास्थ्य के अनुकूल है। दोनों ही केमिकल मुक्त हैं ।
प्राकृतिक खेती में जैविक या रासायनिक खेती की तरह ज़्यादा संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती है । प्राकृतिक खेती कोई नई संकल्पना भी नहीं है बल्कि प्राचीन काल से होती आ रही खेती किसानी है । दुनिया उन्नति करती गई और लोग प्राकृतिक से जैविक पर आ गए और फिर ज़्यादा माँग बढ़ी और नए नए आविष्कार हुए तो रासायनिक खेती शुरू हो गई जिसने ना सिर्फ़ धरती की कोख को बाँझ किया है बल्कि इंसानों को भी बेबस और लाचार कर दिया। लेकिन कहते है ना इतिहास अपने आप को दोहराता है । आज के दौर में, पूरी दुनिया में रासायनिक खेती का बोलबाला है लेकिन लोग वापस जैविक खेती की ओर रुख़ करने लगे हैं और सरकार तो इससे भी एक क़दम आगे चलकर,पीछे वाले दौर की प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। केंद्र सरकार ने हाल ही में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए नई नीति जारी की है जो स्पष्ट रूप से ये दर्शाता है कि हमें हर हाल में कुछ क़दम पीछे चलना ही होगा अगरचे तंदरुस्त रहना है तो ।
प्राकृतिक खेती के फायदे और खर्च:-
प्राकृतिक खेती में खेत की मिट्टी की प्रकृति देखकर फसल बोई जाती है और इसमें कोई जैविक या रासायनिक खाद इस्तेमाल नहीं किया जाता बल्कि घर पर ही तैयार गोबर, गौमूत्र,हरी खाद, किचन वेस्ट आदि का प्रयोग करके खेती की जाती है । यहाँ तक कि बीज़ भी इन्ही फसलों से तैयार किया जाता है जिसकी वजह से ना कोई ज़्यादा श्रम की ज़रूरत होती है और ना खर्चे की और फ़ायदा सबसे ज़्यादा होता है । प्राकृतिक खेती से मिट्टी का उपजाऊपन हमेशा बना रहता है ।
उम्मीद करते हैं प्राकृतिक खेती और दूसरी फसलों की प्रक्रिया में अंतर समझ आया होगा और साथ ही इस अभियान का उद्देश्य भी समझ में आने लगा होगा, तो आइये चलते है कुछ क़दम पीछे ताकि स्वस्थ रह सकें और पुराने लोगों जैसा जीवन जी सकें।
मिलते हैं अगले भाग में
आपका सूफ़ी

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