हरियाणा से गेस्ट ब्लॉगर वीरेंद्र भाटिया का मार्मिक व्यंग्य
गंगाघाट के मुर्दे1
1
गड़े हुए मुर्दे ने मिट्टी में से गर्दन निकाली। उसने चारों ओर नजर घुमाई। उसे लगा वह अपने धर्म के लोगों के बीच नही है। उसने अपने धर्म चिन्ह छिपाते हुए बगल वाले मुर्दे से पूछा, कौन धर्म के हो तुम।
दूसरा मुर्दा भी बेहद शर्मिदंगी महसूस करते हुए अपने धर्म चिन्ह छिपाते हुए बोला, मैं तो मुर्दा हूं।
2
पहले ने पूछा, कब से (मुर्दा) हो?
दूसरा बोला, जन्म से
3
अरे मेरा मतलब जमीन में कब से गड़े हो?
जब से ” पैदा” हुए हैं तभी से “गड़े” हैं
लेकिन आप कब से गड़े हैं। पहले ने पलट कर सवाल किया
जब से मालूम हुआ है मैं दूसरे धर्म से हूं लेकिन मुझे दफना दिया गया है।
4
आप मरे कैसे। पहले ने अगला सवाल किया
कोरोना से मरा, इलाज नही मिला
इलाज के लिए हॉस्पिटल जाते न
हॉस्पिटल नही है पचास कोस तक
तो मस्जिद मन्दिर तो होंगे गांव में
हां हैं, उनका क्या करें। वहां कोई इलाज होता है क्या?
नही होता क्या?
नही तो, पागल हो क्या तुम?
अरे मुझे मालूम नही था, मुर्दा हूं न।
5
तुम्हारा इलाज जरूर करता ज़िन्दा होता तो। दूसरा मुर्दा मन ही मन बड़बड़ाया
पहला मुर्दा भी बड़बड़ाया, इलाज, कफ़न अंतिम संस्कार कुछ नसीब नही हुआ, अकड़ वैसी की वैसी। इससे बेहतर हमारा इलाज और क्या होगा।
6
मेरा कफ़न कौन ले गया। एक मुर्दा बड़बड़ाया
सरकारी लोग आए थे। वे ले गए।
उनके क्या सिर दर्द हुआ। चैन से गड़े पड़े हैं। गड़े रहने देते। गड़े मुर्दे उखाड़ने की गन्दी आदत है इनको।
कह रहे थे सबकी पहचान एक जैसी हो जाएगी। कफ़न के रंग से (पोशाक से) पहचान अलग अलग न दिखे।
दूसरा मुर्दा चीखा, यही तो हम जीते जी बोलते रहे कि पोशाक देखकर फैसले नही होते। किसी ने न सुनी हमारी तब।
7
अच्छा, सुनो
जी , कहिये
कोई मीडिया वाला तुमसे पूछे कि कौन धर्म के हो, तो धर्म मत बताना। कहना कि हम मनुष्य हैं।
क्यों? ऐसा क्यों?
जैसे ही तुम बताओगे कि मैं अमूक धर्म का हूं, तुम्हारे धर्म संगठनों के लोग तुम्हे अपने धर्म का मानने से इंकार कर देंगे। उनकी राजनीतिक शतरंज में फंस कर एक बार तो कुत्ते की मौत मरे हैं। कहीं मरना भी जलील न हो जाये।
पहले मुर्दे ने अपने तमाम धर्म चिन्ह उतार फेंके। और मन ही मन रोया, मनुष्य होना पहले समझ आया होता काश!
– गेस्ट ब्लॉगर वीरेंदर भाटिया
सिरसा, हरियाणा
14 thoughts on ““गंगाघाट के मुर्दे’ हरियाणा से गेस्ट ब्लॉगर वीरेंद्र भाटिया का मार्मिक व्यंग्य”
Comments are closed.