सुलतान की कलम से……..शीश महल + स्वर्ण नगरी = जैसलमेर दुर्ग

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सुलतान की कलम से……..
शीश महल + स्वर्ण नगरी = जैसलमेर दुर्ग

जैसलमेर दुर्ग


गढ़ दिल्ली गढ़ आगरो अधगढ़, बीकानेर, भलो चिनायो भटियो सिरे दू जैसलमेर l – ये कहावत इस दुर्ग के लिए ही प्रसिद्ध है,जैसा कि आप ने सुना होगा, कि भारत की पश्चिमी सीमा का सजग प्रहरी व राजस्थान का दूसरा प्राचीन राज्य – जैसलमेर जिसे प्राचीन काल में रेगिस्तान का गुलाब, हेमनगर,राजस्थान का अंडमान, त्रिकुटगढ़ अन्य कई नामों से याद किया जाता है, यहाँ के रेतीले धोरों ने जीवन को दुर्गम बना रखा है, लेकिन यहाँ की खूबसूरती और बनावट लोग दांतों तले उंगली दबा लेते है, मैने सुना था कि जिस प्रकार लाखों लोगों के अंगूठे पर बनी रेखाएं मैल नही खाती वैसे ही स्वर्ण नगरी पूरी दुनियां के किसी शहर से मैल नहीं खाती l यहाँ के सु -प्रसिद्ध किले की अगर हम बात करे तो ऐसा कहा जाता है, कि जैसलमेर में महारावल जैसल ने 12 जुलाई 1155 – 56 में एक गोरहरा यानी त्रिकुट पहाड़ी पर निर्माण करवाया, जिसे गलियों का दुर्ग,भाटी भड किवाड़, अंगड़ाईयां लेते हुए किला, कमर कॉट आदि नामों से याद किया जाता है, किले को करीब से देखने पर मानो ऐसा लगता है, जैसे की सूरज की किरणे जैसलमेर दुर्ग के पाषाण कर्णो को चमका रही है l
तो चलो आज हम दुर्ग के अंदर प्रवेश करते है, सबसे पहले दुर्ग के अंदर प्रथम पोल, अखेपोल या अक्षेपोल से होते हुए दुर्ग के अंदर विचरण करते है, इसके अंदर हमने देखा की सड़क भी पत्थर की बनी हुई है, किले के अंदर पत्थर पर क्लातमक खुदाई वाली देवी – देवताओं की प्रतिमाएं भी बनी हुई है, आगे की अगर हम बात करे तो दुर्ग के चारों और निन्यानवे बुर्ज है जो कि दुर्ग को मजबूती प्रदान करते है, दूर से देखने पर यह दुर्ग ऐसा लगता है, मानो जैसे कि -जहाज ने रेगिस्तान में लंगर डाल रखा हो इस दुर्ग के बारे में अबुल फ़ज़ल कहता है, कि घोड़ा कीजे काठ का, पग कीजे पाषाण अख्तर कीजे लोहे का तब पहुंचे जैसाण l इस किले के बारे में ऐसा कहा जाता है, की यहाँ पर जाने के लिए पत्थर की टांगें चाहिए,दुर्ग के बारे में अगर हम कहे तो इस दुर्ग की सबसे खास बात यह है, कि इस दुर्ग के निर्माण में कभी चूने का प्रयोग नहीं हुआ बल्कि जिप्सम/चिरोड़ी का ही प्रयोग हुआ और इस दुर्ग की छत भी लकड़ी की बनी हुई है जो कि विश्व की एक मात्र है ,इस दुर्ग के अंदर एक हस्त लिखित जैन धर्म ग्रंथों का सबसे बड़ा भंडार भी मौजूद है जो की राजस्थान में कहीं भी नहीं है l
किले के अंदर अन्य स्थल –
लक्ष्मीनाथ मंदिर- इस मंदिर का प्रवेश द्वार चांदी का बना हुआ है, इनकी मूर्ति मेड़ता (नागोर) से लाई गई थी l इसके अंदर महल की बात करे तो
बादल विलास महल – जिसे वर्तमान में ताजिया टावर कहा जाता है l जवाहर विलास महल, हरराज महल आदि l
संग्रहालय – यहाँ पर स्थित संग्रहालय में इस्टेंप व डाक टिकिटो का संग्रह तथा डेजर्ट कूलर स्थित है, इसी दुर्ग पर 2009 में पांच रुपय की डाक टिकिट जारी की गई और 2013 में इसे यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया, यह दुर्ग ढाई साकों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें प्रथम साका दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन ख़िलजी ने मूलराज भाटी पर आक्रमण किया खिलजी के आक्रमण करने का कारण मूलराज द्वारा मंडोर शासकों को शरण देना था तथा मूलराज द्वारा खिलजी का खजाना लूटना था इसके बारे में गोपीनाथ शर्मा कहता है, कि यह साका 1312 ईस्वी में हुआ और दूसरा साका 1370 – 71 में दिल्ली के फिरोज़ तुगलक ने जैसलमेर शासक राव दूदा ने आक्रमण किया, तीसरा साका जो कि अर्द साका के लिए विख्यात 1550 ईस्वी को हुआ l इस साके में एसा हुआ कि कंधार के अमीर अली ने जैसलमेर के शासक लूणकरण के साथ धोका कर दुर्ग की महिलाओं को बंदी बना लिया जिससे महिलाएं जोहर नहीं कर पाई l
Note – क्षेत्रफल में सबसे बड़ा जिला कहलाने वाला शहर, जैसलमेर यहा की हवेलियां बड़ी ही फैमस है, जिसमें एक हवेली ‘पटवो की हवेली’ जो कि एक ऐतिहासिक हवेली व सबसे प्राचीन संरचना में से एक है, जिसका निर्माण एक अमीर व्यापारी पटवा द्वारा कराया गया था कहा जाता है, कि उस व्यापारी के पांचों बेटों के लिए प्रत्येक हवेली का निर्माण करवाया था, ऐसा कहा जाता है, कि इस हवेली का डिज़ाइन तैयार करने में करीब 30 साल लग गए थे इन हवेलियों के अंदर मेहराब और प्रवेश बेहद ही ख़ास तरीक़े से बनाए गए है, प्रत्येक हवेली में एक अलग शैली का मिरर वर्क और चित्रों का चित्रण है, इस हवेली के लगभग हर दरवाजे बारीकी डिजाईन से भरे हुए है जो वास्तू कला के किसी अदभूत से कम नहीं है l दूसरी और इस हवेली के बारे में कहा जाता है, कि इस हवेली का निर्माण 18 वी सदी में गुमानचंद बापना ने करवाया इस हवेली में हिन्दू, मुस्लिम, ईरानी व यहूदी शैली का मिश्रण मिलता है l
सालिम सिंह की हवेली – (जैसलमेर के प्रधान मंत्री)
नथमल की हवेली – वगैरह
यहाँ के लोकदेवता में सु – प्रसिद्ध बाबा रामदेवजी (रूणेचा) के नाम से प्रसिद्ध है, जिनकी पूजा राजस्थान व गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है, यहाँ पर पूरे देश में लाखों से भी अधिक श्रद्धालू यहाँ के उत्सव में शामिल होते है l
यहाँ का प्रसिद्ध मन्दिर -शांति नाथ मंदिर व कुंतूनाथ जी मंदिर जो कि जुड़वा मंदिर अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है,
तनोट माता का मन्दिर -जो थार की या सेना की देवी के नाम से प्रसिद्ध है l
जैसलमेर की सांस्कृतिक ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत की वजह से यहाँ की गगनचुंबी इमारतें, मेहमान नवाजी और अद्धबूत चमत्कारी मंदिर और उनकी शक्तियां जैसलमेर को सबसे अलग व अनोखा बनाती है l इसी बात से एक नई बात सामने आती है, कि यहाँ से करीब 20 किलोमीटर दूर मारवाड़ की प्राचीन राजधानी के नाम से विख्यात लोद्रवा गाँव यहाँ पर स्तिथ अमर सागर जैन मंदिर जो की प्रदेश का पहला तीन शिखर वाला जैन मंदिर कहलाया और लोद्रवा गांव देखने की लालसा हर पर्यटक की होती है, इसकी खास बात ये है, कि यह मन्दिर भारतीय इतिहास के अति प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में शामिल है क्योंकि पहले यहां पर जैन धर्म के प्राचीन पार्श्वनाथ भगवान का मंदिर हुआ करता था l इस स्थान के बारे में ऐसा कहा जाता है, कि सेठ ने प्रतिमाओं के बराबर सोना देकर प्रतिमाएं प्राप्त की और जिस रथ में प्रतिमाओं को लाया गया था वो आज भी इसी मंदिर में स्थित है l
अन्य दुर्ग – जिसमे वर्तमान में अंश ही बचे है l
पोकरण दुर्ग –
मोहनगढ़ दुर्ग –
लोद्रवा दुर्ग –
बालागढ़ व भीकमपुर का किला आदि l

जैन टेम्पल
रामदेवरा

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