पुस्तक – जर्नलिस्ट ऐक्टिविस्ट
लेखक – लखन सालवी
समीक्षक – नासिर शाह (सूफ़ी)
सब से पहले तो नॉवेल के लेखक को उनके पहले नॉवेल के लिए बहुत बहुत बधाई और भविष्य के लिए अग्रिम शुभकामनाएं। लखन सालवी साहब का यह पहला ही नॉवेल मुझे एक कामयाब नॉवेल के तौर पर महसूस हुआ है। नॉवेल का शीर्षक जितना आकर्षक है उतना ही सार्थक भी है। नॉवेल का यह एक महत्वपूर्ण संवाद पूरे नॉवेल का सार स्पष्ट करता नज़र आता है – “मुझे लगता है कि ऐक्टिविज्म के बिना जर्नलिज्म अधूरा है। ऐक्टिविज्म की भावना के बिना जर्नलिज्म का कोई विशेष महत्व नहीं है।”
नॉवेल में लेखक अपनी पूरी क्षमता के साथ जर्नलिस्ट की जिंदगी और उसकी भावनाओं को आमजन तक पहुंचाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं। मैं लेखक को व्यक्तिगत रूप से इतने नजदीक से तो नहीं जानता हूँ लेकिन जितनी उनकी पत्रकारिता से परिचित हूँ, उसके अनुसार नॉवेल के हीरो संजय मे, काफी हद तक लेखक का अक्स नजर आया । नॉवेल का मुख्य हीरो ‘संजय‘ एक जिम्मेदार और मेहनतकश इंसान है जिसका हमेशा एक ही जुनून रहा है कि वह सब इंसानो को सुधार सके या ना सुधार सके लेकिन उसकी कोशिश करने से उसे जो सुकून मिलता है वही उसका असली जुनून था, जिसे अक्सर उसने नॉवेल में बार बार पाठकों को बताया भी है। वह हमेशा विषम परिस्थितियों की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता गया और इस दौरान उसे कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा।
लेखक चूंकि एक पत्रकार भी है इसलिए उन्होंने पत्रकारिता से जुड़ी जिम्मेदारीयों को बड़े सुन्दर तरीके से ऐसे पिरोया है जैसे सीप में मोती। हालांकि आजकल ऐसी पत्रकारिता यदा कदा ही देखने को मिलती है, ऐसे में निसंदेह लेखक का गोदी मीडिया पर यह उचित प्रहार कहा जा सकता है। जिसका एक उदाहरण यह वाक्य है – “वो खबरे नहीं छाप कर भी बड़ी कमाई कर लेता था और मैं महीने भर ख़बरें छाप कर भी 5-6 हजार कमा पाता था। ‘
नॉवेल की कहानी वैसे तो शानदार है लेकिन जो लोग पत्रकारिता में रुचि नहीं रखते हैं उन्हें बीच में यह नॉवेल बोरियत महसूस करवा सकता है।
लेखक ने संजय के साथ ना सिर्फ पत्रकारिता के कर्तव्य दिखाए है बल्कि उन्होंने इस नॉवेल के माध्यम से आदिवासी समुदाय की जिंदगी पर भी प्रमुख रूप से प्रकाश डाला है। आदिवासी समुदाय की सकारत्मक छवि दिखाने के लिए लेखक ने कही कोई कमी नहीं रखी। इसका एक उदहारण उनका यह संवाद है जिसमें वो लिखते हैं कि “आदिवासी नफे में भी मस्त रहता है और नुकसान में भी “, अगर लेखक आदिवासी शब्द की जगह एक ईमानदार पत्रकार लिखते तो संवाद सब वर्गों के लिए प्रभावशाली साबित होता क्यूंकि यहां बात निष्पक्ष पत्रकारिता की हो रही थी।
नॉवेल की हीरोइन एलिसा मॉरिसन को जितना खूबसूरत बताया गया है उतनी ही खूबसूरत उनकी प्रेम कहानी है। शुरुआत में नायक का नायिका पर फिदा होने का कारण तो स्पष्ट दिखाया है लेकिन नायिका के नायक के लिए इतने समर्पित प्रेम का कारण स्पष्ट नहीं किया गया है क्यूंकि जो संजय की खूबियाँ थी वो पाठकों को तो पता थी लेकिन नायिका को नहीं। नॉवेल मे आलमङ्स तेल, विमल, डव शैंपू, पौंड्स पाउडर जैसे सामान्य प्रोडक्ट का उदाहरण नॉवेल के वास्तविकता का आभास कराता है तो फन्टी, सेटिंग जैसे शब्दों के माध्यम से आधुनिक युवा पीढ़ी की संस्कृति का आईना भी पेश किया गया है।
नॉवेल में राणा पूजां भील, किरत बारी और राजाराम मेघवाल जैसे आदिवासी व्यक्तित्व से भी परिचय कराया गया है।
नॉवेल में नायक के दोस्त प्रबोध, रवि, मनोज कुमार सलाह के नाम पर संजय को जो हो रहा है उसे होने देने जैसी नकारात्मक सलाह देते नजर आते हैं लेकिन नायिका ऐली संजय को ईमानदारी और खुद्दारी से जीने की सकारात्मक सलाह देकर नयी ऊर्जा का संचार करती है।
नॉवेल के अंत में आर.के. रॉय, देवदास और टी ब्रह्मचारी जैसे खलनायकों द्वारा संजय पर हमला करने वाला दृश्य नॉवेल मे नाटकीय मोड़ पैदा कर देता है। नॉवेल में गोदी मीडिया की तरफ से छपा झूठा सम्पादकीय कॉलम पढ़कर पाठकों को वर्तमान पत्रकारिता के बारे में सोचना चाहिए।
लेखक ने इस पंक्ति के माध्यम से स्वार्थी लोगों एंव राजनीतिज्ञों पर करारा कटाक्ष करते हुए लिखा है कि ” जन हितेषी (NGO) अब स्वहितेषी बन चुके हैं और स्वदेशी लोग राष्ट्रप्रेम को भूल कर झूठे राष्ट्रवाद के मोह में बंध रहें हैं।”
आजकल राष्ट्रवाद केवल राजनीतिक भाषणों तक सिमट कर रह गया है जबकि लेखक का कहना है कि अवैध खनन, वनों की कटाई, नदियों का अवैध दोहन आदि महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान करना भी राष्ट्रप्रेम है। कुछ छिट पुट कमियों को छोड़कर लखन साल्वी का यह नॉवेल एक उम्दा श्रेणी की रचना है जिसे हर साहित्य प्रेमी को पढ़ना चाहिए और पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए तो ना सिर्फ यह साहित्य है बल्कि एक उपयुक्त आईना भी है।
समीक्षक – नासिर शाह (सूफ़ी)
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