कोरोना टीकाकरण एंव चुनौतियाँ

Sufi Ki Kalam Se

सूफ़ी की कलम से.. ✍️
कोरोना टीकाकरण एंव चुनौतियाँ
‘कोरोना’, एक ऐसा शब्द जिसने पूरी दुनिया में उथल पुथल मचा दी थी। 2020 के शुरूआती महीने में इस महामारी का इतना खौफ था कि हर देश के नागरिक घरों में दुबक गए थे। क्या रिश्ते? क्या नाते? सब एक दूसरे से ऐसी दूरियां बनाने लगे जिस पर कई कहानियां बनाई जा सकती है और बनाई भी जा रही है। हर कोई इसके बचाव के टीके का इंतजार करने लगा। हर देश के नागरिको की निगाहें वैज्ञानिकों के काम पर टिकी थी, मगर लंबे इंतजार तक भी किसी देश के वैज्ञानिकों को भी इसमे सफलता नहीं मिली। टीके के इंतजार में धीरे धीरे लोगों के दिलों से कोरोना का भय खत्म होने लगा। पूरे एक साल बाद, विभिन्न देशों से इसके टीके की खबरें आने लगी है लेकिन अब शायद बहुत देर हो चुकी है।


चुनौतियॉं
अगर प्यासे को समय पर पानी नहीं मिले और वह दूसरे संसाधन से अपना गला तर करके अपना काम चला ले, फिर उसके बाद उसे पानी का ऑफर दिया जाए वह भी बिना शुद्घता की गारन्टी वाला, तो वह उसे क्यों लेगा?
क्या यही हाल कोरोना टीके का नहीं होगा?
देशभर में कोरोना टीके को लेकर अब कोई खुशी का माहौल तो नहीं है जो नहीं है, विरोध जरूर है। लोगों को लग रहा है कि कोरोना – वोरोना जैसा कुछ है ही नहीं, सब मुर्ख बनाने के तरीके थे। अगर कोरोना था तो सम्पूर्ण देश में इतने चुनाव हुए, ताबड़तोड़ रैलियां हुई, धरने प्रदर्शन हुए आदि कई काम सम्पन्न हुए जिनके लाखो की भीड़ एक जगह एकत्रित रहने के बाद किसी को कोरोना क्यों नहीं हुआ?
दूसरी बात यह है कि कुछ माह पूर्व तक किसी के हल्का खांसी जुकाम होने पर भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता था लेकिन समय गुजरते ही लोगों को अहसास हो चुका है कि वो केवल सामान्य फ्लू ही था, कोरोना नहीं। पोजिटिव और नेगेटिव जांचों के नाम पर जो उलूल जुलुल आंकड़े और परिणाम जारी हुए थे वो भी किसी से छिपे हुए नहीं है।


अब देश भर में भले ही कोरोना टीके की धूम मची हुई हो लेकिन इसे लगवाने वालों मे कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा है। बिहार में कोरोना टीका तो चुनावी मुद्दा तक रहा क्योंकि वह समय की मांग थी जिसे नेताओ ने अच्छे से भुनाया भी है।
देश भर में टीके की खबरें आने लगी है लेकिन जनता में खास उत्साह नजर नहीं आ रहा है। आए दिन सोशल मीडिया पर कुछ असली कुछ नकली मैसेज वाइरल हो रहे हैं जिनमें टीके से तबीयत बिगड़ने की खबरें फैलाई जा रही है। दूसरी और टीके की सुरक्षा को लेकर सरकारें भी तो पूर्णतया संतुष्ट नहीं हैं। वैसे देखा जाए तो शायद अब जनता भी बिना टीके के ही अपने आपको सुरक्षित महसूस करने लगी हैं ऐसे में कोरोना टीके को लेकर गंभीर समस्याओं का उत्पन्न होना स्वाभाविक है।

  • नासिर शाह (सूफ़ी)

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