दरा + महु = भीमसागर
झालावाड़ : जो कि ऐतिहासिक नगरी के नाम से जाना – जाता है ,
यह कोटा से लगभग 60 से 85 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है |
दरा अभ्यारण्य ➖ यह एक घाटीयों मे बसा हुआ , जो अपनी अनोखी पहचान के लिए ,पूरे राजस्थान का ‘सर – सब्ज’ इलाका है , जहाँ राज्य की तीेसरी बाघ परियोजना सन्चालित है , जिसे मुकुन्दरा हिल्स रा. उ. के नाम से जाना – जाता है |
🔜 कहाँ जाता है कि यहाँ के गगरोनी तोते बड़े प्रसिद्ध है , इसी इलाके में एक ‘अबली मिणी’ का महल भी है (हाडौती का दूसरा ताज़महल) जिसे राव मुकुन्द सिंह ने अपनी पत्नी “अबली” के नाम से बसाया |
इसी के थोड़ी दूर समीप एक महल भी है , जिसे ” राउठा महल के नाम से याद किया जाता है | (कोटा – झालावाड़) आदि
दरा क्षेत्र ➖ जहाँ के पेड़े बड़े मशहूर है |
झालावाड़ से लगभग 24 किलोमीटर दूरी पर एक बाँध बना हुआ है , जिसे भीमसागर बाँध ,इसके साथ ही यह एक पर्यटक स्थल भी माना जाता है |
यह बाँध ‘उजाड़ नदी’ पर बना हुआ है और इसी नदी के संगम पर महु – बोरदा के महल बने हुए है जो कि अपनी एक छिपी हुई पहचान रखते है , यहाँ का क्षेत्र लगभग 1 से 2 किलोमीटर एरिये में फैला हुआ है , जो उस जमाने में ‘खींची चौहानों की राजधानी’ हुआ करती थी |
➖ इसी महल के अन्दर एक दरवाजा है जिसे – हाथीपोल(गेट) के नाम से जाना जाता है |
महल के अंदर अन्य पर्यटक स्थल –
1 ) महल के चारों और चाहर दीवार |
2) चबूतरे , फ़ौज स्थल |
3) रानी मंडल महल , जो कि यहाँ के महलों में सबसे लम्बा महल माना -जाता है |
4) मोती सिंह की हवेली / कचहरी
5) महल के अंदर दरी – खाना
6) भोले शाह की हवेली , ढोलन शाह की हवेली जो कि मध्य कालीन स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है |
➖ छज्जे जैसी आकृति वाले गुम्बद आदि
🔜 यहाँ पर राज्य सरकार द्वारा 2015 से खुदाई व निर्माण कार्य प्रारम्भ किया गया , इसी महल के अन्दर दबा तय – खाना जो कि खुदाई के दौरान नज़र आया , जिसमे प्राचीन काल में तीन कक्ष बने हुए थे |
➖ प्राचीन काल में यहाँ मुस्लिम सम्प्रदाय की मस्जिदें हुआ करती थी , जो वर्तमान में विलुप्त हो चुकी है |
➖ उस जमाने मे यहाँ एक खिंची दरबार लगा करता था , जहाँ पर औरंगजेब बादशाह (शाहजहां का पुत्र) तशरीफ़ लाया था, जिसने वहाँ के एक नैक बुज़ुर्ग ( नूर जी) के चमत्कार को देख कर इन्हें कुछ जगह मुफ्त में दे दी |
और कहाँ जाता है की – युद्ध के समय सूफ़ी हमीमुद्दीन चिश्ती/ मिठ्ठे महावली सरकार (गागरोन दुर्ग, झालावाड़) यहाँ की सर जमीं पर क़याम फरमाया इसीलिए यहाँ इनका छल्ला मौजूद है |
➖ इसी क्षेत्र में भीमसागर से थोड़ी दूरी पर ह. ‘सरजन शाह’ का मज़ार जो कि पातले पीर के नाम से मशहूर है , इसी के नीचे एक झालरा बना हुआ है , जो बारिश के समय पहाड़ियों से आने वाले पानी से लबालब हो जाता है
Note ➖ महु के महलों में अचलदास खींची का शासन काल रहा , इनका विवाह – मेवाड़ के महाराणा , मोकल की पुत्री – लालादे/उमादे से हुआ इसका पुत्र – पालहन , जिसकी मृत्यु गागरोन दुर्ग के दूसरे साके में हुई |
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