भाग- 17 “राष्ट्रीय पर्व की अहमियत” “आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “  

Sufi Ki Kalam Se

सूफ़ी की क़लम से…✍🏻

“आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “  

भाग- 17 “राष्ट्रीय पर्व”

हमारा देश भारत, हमेशा से विविधताओं में एकता वाला देश रहा है। यहाँ कई धर्मों के मानने वाले लोग बरसों से साथ रहते आ रहे हैं।  जब जब मुल्क पर कोई मुसीबत आई तब तब,  सब धर्मो के लोगों ने मिलकर उस परेशानी का डटकर मुक़ाबला करते हुए देश का परचम लहराया। यहाँ के लोगों ने मिलकर एक लंबी लड़ाई लड़ी और हज़ारों सालों की गुलामी झेल रहे देश को आज़ादी दिलाई ।15 अगस्त 1947 की घटना हिंदुस्तान के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है जिसकी हर सालगिरह पर,देशवासीयों का रोम रोम अपने आप खिल उठता है।  इस दिन हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने मिलकर हमें आजादी का अहसास करवाया था । इसके बाद देश के नागरिकों को अनेक अधिकार प्रदान करते हुए हमारे देश ने अपने यहाँ,विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र स्थापित किया । 26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ जो यहाँ के नागरिकों के लिए किसी नेअमत से कम नहीं है । इस दिन को हम गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं ।

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस,हमारे देश के दो ऐसे राष्ट्रीय पर्व जिन्हे हर देशवासी,हर वर्ष बड़ी धूमधाम से मनाता है। वक्त बदलता गया और दोनों महत्वपूर्ण घटनाओं को तक़रीबन 75 वर्ष बीत चुके हैं। जैसे जैसे वक्त बीतता गया,इन राष्ट्रीय पर्वों को मनाने के तरीक़े भी बदल गए । आज के दौर में यह पर्व केवल सरकारी विभागों तक ही सीमित रह गया है, जिसमें भी कुछ विभागों में ही इसे हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है । ज्यादातर लोग इन पर्वों को केवल अवकाश मानते हुए काफ़ी देर तक तो  सोए ही रहते है, और जब उठते भी है तो पूरे दिन को केवल अवकाश की तरह इस्तेमाल करते है । और जो कर्मचारी नहीं है उनके लिए तो इन पर्वों का महत्व लगातार घटता जा रहा है। गैर कर्मचारी वर्ग के लिए तो ना ये अवकाश है और ना कोई त्योहार। वह इस दिन भी सामान्य दिनों की तरह काम पर जाते हैं हालांकि उनको ये तो पता होता है कि ये राष्ट्रीय पर्व है लेकिन वह इसका इतना महत्व नहीं समझते हैं क्योंकि हमारा सिस्टम ही ऐसा हो चुका हैं कि हर चीज का शॉर्टकट हो गया है । हम असल मुद्दों से भी भटकते जा रहें हैं । जहाँ जोश और उमंग के साथ कोई काम होना चाहिए वहाँ केवल खानापूर्ति मात्र होने लगी है । देशवासी घरों में इस पर्व को मनाने की जगह किसी संस्थान से थोड़ी सी नुक़्ती या लड्डू लेने तक सीमित होकर रह गए हैं ।वर्तमान में ज्यादातर लोगों को, आजादी की ख़ुशी  और नागरिक अधिकारों का महत्व का एहसास नहीं रहा है । देशभक्ति से ओतप्रोत अगर कोई दिखते हैं तो वह है हमारे देश के बच्चे, जो इन पर्वों के कई दिन पहले से ही तैयारी करते हैं और इस दिन प्रस्तुति देकर इन पर्वों की शान बढ़ाते हैं । लेकिन ये बच्चें भी बड़े होकर अलग अलग क्षेत्रों में चले जाते हैं और इन पर्वों का महत्व भूलने लगते है क्योंकि यही परिपाटी उन्हें अपनों से बड़ों से मिलती है । इसलिए आइए फिर से कुछ क़दम पीछे चलें और अपने बुजुर्गों के त्याग और बलिदान को याद करते हुए इन राष्ट्रीय पर्वों को हर घर में मनाने की शुरुआत करें ताकि हम सबके अंदर देशप्रेम की भावना हमेशा बनी रहे और आने वाली पीढ़ियाँ भी इसे निरंतर जारी रख सकें। जिस तरह हम सब अपने धार्मिक पर्व मनाते हैं उसी तरह इन्हें भी अपनी विशेष सूची में शामिल करें । 

अपने अपने घरों में आजादी और संविधान का जश्न मनाए, विशेष व्यंजन बनाएं, अच्छी वेशभूषा धारण करें, लोगो से मिल जुलकर बधाई दे और जो लोग इन पर्वों का महत्व नहीं जानते उन्हें बताए । कुछ अतिरिक्त समय निकालकर देश को स्वच्छ बनाये रखने के लिए श्रमदान करें।ग़रीब, निशक्तजनों, विधवाओं और अन्य जरूरतमंद लोगों की निःशुल्क सहायता करें । आओ चले उल्टे क़दम । कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर । 

मिलते हैं अगले भाग में 

आपका सूफी 

राष्ट्रीय पर्वों को लेकर आपके पास, पुराने समय का अनुभव हो तो हमारे साथ साझा करें उसे  प्रकाशित किया जाएगा । (व्हाट्सएप 9636652786)


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6 thoughts on “भाग- 17 “राष्ट्रीय पर्व की अहमियत” “आओ चले..उल्टे क़दम, कुछ क़दम बीसवीं सदी की ओर “  

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