सुल्तान की क़लम से……..
फतेहपुर दुर्ग +शेखावाटी =सीकर
ऐतिहासिक किला-फतेहपुर दुर्ग जिसका दीदार करना या इसे देखना ही बड़ा रोमांचक है |
यहाँ के रास्तों की ख़ूबसूरती , ऊँचे – ऊँचे पहाड़ , शांत पहाड़ों पर तेज़ हवाओं का शोर , भीनी – भीनी ख़ुशबू और एसी ही गर्मी की तपिस |
इसी बीच आज हम शेखावाटी के एक क्षेत्र – सीकर जिले की ही बात कर लेते है , यहाँ का सु – प्रसिद्ध किला जो शेखावाटी का सबसे महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक दुर्ग माना – जाता है , जिसका निर्माण – 1453 ई. में “क़ायमखानी, फ़तेह खा ” ने करवाया|
इस दुर्ग के श्रेणी की अगर हम बात करे तो यह दुर्ग धान्वन दुर्ग , पारिख दुर्ग, ऐरन दुर्ग व पारिध दुर्ग की श्रेणी में इस दुर्ग का शुमार किया – जाता है|
दुर्ग के अंदर प्रवेश –
इसी के अन्दर सैनिक आवास , घुड़साल(घोड़ों का स्थान) , शाही महल , नवाब दौलत खा का मक़बरा व तेलिन का प्रसिद्ध महल आदि |
इस दुर्ग की सबसे बडी ख़ासियत यह है , कि यह पठानी शेली में निर्मित राजस्थान का एक मात्र दुर्ग है , इस जिले के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए , जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दक्षिण में राष्ट्रीय राजमार्ग 11 से 15 किलोमीटर और खाटूश्यामजी से (सीकर का प्रसिद्ध मंदिर) 22 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित एक प्रसिद्ध/मशहूर मन्दिर – जीण माता का मंदिर है , इस मंदिर का निर्माण – पृथ्वीराज चौहान प्रथम के समय , हट्टड/मोहिल ने करवाया , इनका मेला वर्ष में 2 बार लगता है और इन्ही का राजस्थान में सबसे लम्बा (विचित्र) गीत माना – जाता है जो कि सीकर जिले की हर्ष की पहाड़ी पर स्थित है|
कहा जाता है , कि जीण माता हर्ष की बहिन थी , जीण माता तथा उसकी भाभी दोनों में पानी की मटकी को लेकर शर्त लगी थी , हर्ष पहले किसकी मटकी उतरता है जब हर्ष ने जीण की भाभी की मटकी पहले उतार दी तब जीण अपने भाई से नाराज़ होकर तपस्या करने जंगल में चली गई , जीण के पीछे-पीछे उसका भाई हर्ष भी पहाड़ी पर तपस्या करने लगा जिस जगह को आज वर्तमान में हर्ष नाथ का पर्वत कहा जाता है|
जीण माता के मंदिर में दो दीपक जलते है , एक घी का और दूसरा तेल का कहते है, कि दीपकों की ज्योतियों की व्यवस्था दिल्ली के चौहान राजाओं ने शुरू की थी इसी मन्दिर के समीप एक जोगी नामक तालाब एक जल कुण्ड है और इसी जगह तांत्रिकों की साधना स्थली के रूप में विख्यात शक्ति अर्जन के इस केंद्र पर अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने भी आकर पूजा अर्चना की है , मंदिर की गर्भग्रह की परिक्रमा मार्ग में स्थापित पांडवो की आदमकद प्रतिमाओं के साथ ऐतिहासिक कथाओं में यह प्रमाण मिलता है कि एक वर्ष में गुप्तवास पाण्डव विराटनगर में थे इसी दौरान उन्होंने देवी के इस स्थल पर आकर पूजा अर्चना की जिससे माना – जाता है कि पाण्डव यहाँ आये थे |
अन्य पर्यटक स्थलों में-
• खण्डेला दुर्ग
• रघुनाथ दुर्ग
• मानपुर दुर्ग
• लक्ष्मण गढ़ दुर्ग
यहाँ की सबसे प्राचीन सभ्यता-गणेश्वर सभ्यता
• खाटूश्यामजी का मंदिर (निर्माता – अजीतसिंह का पुत्र, अभयसिंह)
• प्रसिद्ध झील- पिथमपुरी
• सर्वगी सम्प्रदाय का मुख्य केंद्र
Note – हाली में रींगस(सीकर) जो कि प्रदेश का पहला व सबसे बड़ा रेल ओवरब्रिज बनाया गया यानी ट्रेन के ऊपर ट्रेन का गुज़रना |
इस जिले में एक मस्जिद ईदगाह है जिसे जामा मस्जिद के नाम से याद किया जाता है इसे ही सीकर का मरकज कहा जाता है |
यह जिला भारत के राजस्थान प्रान्त का जो शेखावाटी क्षेत्र के नाम से विख्यात है ,यह क्षेत्र भित्ति चित्रों के लिए काफ़ी प्रसिद्ध रहा है , जिनमे फतेहपुर की प्रसिद्ध हवेलियों में , नन्दलाल देवड़ा की हवेली , कन्हैया लाल बागला की हवेली , पाटोदिया हवेली और चोखानी हवेली आदि|
इस जिले कि प्राचीन की अगर हम बात करे तो इसकी स्थापना – राव दौलत सिंह ने 1687ई. में वीरभान का बास नामक स्थान पर की , इतिहासकार के अनुसार सीकर जिले का वास्तविक संस्थापक – शिवसिंह को माना गया है |
Shahrukh (sultan)
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