ये कैसा ग्रीष्मकालीन अवकाश!
शिक्षक खुले मैदान में कर रहे कोरोना से कुश्ती
कोरोना महामारी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए राजस्थान सरकार ने प्रदेश के विधालयों मे असमय ही 29 अप्रैल से 6 जून तक ग्रीष्मकालीन अवकाश घोषित कर दिया था। लेकिन ये ग्रीष्मकालीन अवकाश अधिकांश शिक्षकों के लिए नाममात्र का साबित हुआ। पूर्व में हम ‘एक तीर से दो शिकार’ शीर्षक से यह खबर प्रकशित कर चुके हैं मगर अब अहसास हो रहा है कि सरकार ने एक तीर से दो बल्कि तीन शिकार किए है।
गौरतलब है कि जबसे ग्रीष्मकालीन अवकाश घोषित हुए है तब से राज्य के पचास फीसदी से ज्यादा शिक्षक एंव शिक्षिकाएं कोरोना सर्वे एंव अन्य कार्यो में बिना कोई अवकाश लिए, अपनी जान जोखिम में डालकर काम में लगे हुए हैं। और जिनकी ड्यूटी नहीं लगी है उन्हें भी मुख्यालय पर ही रहने का आदेश था, इसलिए वो भी अपने घर नहीं जा सके थे। ऐसे में उनके मन में यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि जब ये काम ही करवाना था तो सब शिक्षको के लिए ग्रीष्मकालीन अवकाश क्यों घोषित किया गया। आखिर यह कैसा ग्रीष्मकालीन अवकाश है जिसमें ना रविवार का अवकाश है और ना त्योहारों का? ना सुबह का पता है ना शाम का? किसी भी समय शिक्षको को किसी भी तरह के काम में लगाने का फरमान जारी कर दिया जाता है, वो भी बिना किसी सुरक्षा के। ना उनके पास पीपीई किट है और ना ही अन्य उपकरण। वो बिना किसी सुरक्षा कवच के खुले मैदान में कोरोना से कुश्ती लड़ रहे हैं जिसके चलते राज्य में सेंकड़ों शिक्षक अपने जीवन से भी हाथ धो बैठे हैं लेकिन यहाँ, इनकी किसे चिंता है? और तो और जो शिक्षक ड्यूटी करते करते अपनी जान दे चुके हैं उनके घरवालों से उनकी ड्यूटी दौरान मौत के सबूत भी मांगे जा रहे हैं। अब शिक्षक ड्यूटी करे या अपनी जान बचाए और ड्यूटी भी करे तो फिर कौन कौनसी ड्यूटी की खबरों से घरवालों को अवगत कराये? शिक्षक एक नहीं बल्कि कई तरह के कामों को अंजाम दे रहे हैं।
चेक पोस्ट ड्यूटी :- हर चेक पोस्ट पर आवागमन को लेकर दो दो शिक्षकों को तैनात किया हुआ है जहाँ शिक्षक पारीयां बदल बदल कर 24 घण्टे अपनी सेवायें दे रहे हैं।
कोरोना सर्वे :- गांव के प्रत्येक छोटे बड़े सदस्यों की सामान्य बीमारी से लेकर गंभीर बीमारी की जानकारी लेने की जिम्मेदारी भी शिक्षको के कंधों पर है वो भी एक बार नहीं बार बार। हर थोड़े दिनों के अन्तराल में उनके स्वास्थ्य की डिटेल्स भी सरकार तक शिक्षक ही पहुँचा रहे हैं।
बाहर से आने वालों की निगरानी :- ग्रामीण क्षेत्रों में कोन नया सदस्य अन्य जिले, अन्य राज्य या विदेश से आ रहे हैं उनकी सार सम्भाल भी शिक्षकों के ही जिम्मे है।
विभिन्न आयोजन :-
शादी विवाह की खुशी का अवसर हो या किसी की मृत्यु पर अंत्येष्टि का कार्यक्रम। वहाँ भी शिक्षकों को खड़े रहकर उनकी निगरानी करनी है कि कितने आदमी आ रहे हैं और क्या कर रहे हैं।
मृत्यु का ब्यौरा एंव अनाथ बच्चों का विवरण :- गांवों में कितने लोगों की मृत्यु हुई और कैसे हुई, यह गणना भी शिक्षको द्वारा ही संपन्न करवाई गई। साथ ही कोरोना के कारण जिन माता पिता की जान गई उनके अनाथ बच्चों की सूची भी अध्यापक ही तैयार कर रहे हैं।
वैक्सीनेशन :- कोरोना काल का बस यहि आखिरी काम बचा था जिसे भी शिक्षकों की मदद के बिना नहीं किया जा सका था। रजिस्ट्रेशन से लेकर टीका लगाने लगवाने तक का भार भी शिक्षको उठाया। इतना ही नहीं, अगर कोई टीका ना लगवा रहा हो तो उससे जोर ज़बरदस्ती, मान मनुहार करने का काम भी शिक्षक ने ही किया जिसके चलते कई क्षेत्रों में उन्हें विरोध और मारपीट का सामना भी करना पड़ा।
इस तरह सरकार ने शिक्षकों से लॉकडाउन की पालना भी करवा ली, ग्रीष्मकालीन अवकाश भी दे दिया और उनसे पूरा पूरा काम भी ले लिया।
आगे क्या होना चाहिए ? :-
शिक्षा विभाग द्वारा घोषित ग्रीष्मकालीन अवकाश 6 जून को पूरा हो रहा है और आधे से ज्यादा शिक्षकों ने ग्रीष्मकालीन अवकाश का उपभोग नहीं किया है। सरकार द्वारा जारी नयी गाइडलाइन (1- 30 जून) मे शिक्षको के लिए एक बार फिर से कोई स्पष्ट आदेश नहीं है। ऐसे में विभाग और सरकार को चाहिए कि शिक्षक हितों को मद्देनजर रखते हुए और उन्हें कम से कम 20 या अधिकतम 30 जून तक समस्त प्रकार की ड्यूटी से मुक्त कर ग्रीष्मकालीन अवकाश प्रदान किया जाए, जिससे समस्त शिक्षक वर्ग, शारीरिक एंव मानसिक रूप से तैयार होकर नए सत्र की शुरुआत कर सके।
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