बोलते रहो बोलते ! मशहूर लेखक, ऐक्टिविस्ट भँवर मेघवंशी की शानदार कविता

Sufi Ki Kalam Se

बोलते रहो बोलते !

हम जानते हैं कि
बोलने की क़ीमत
आज नहीं तो कल
अवश्य चुकानी पड़ेगी.
फिर भी बोलते हैं
मुँह खोलते हैं
लिखते हैं ,चीखते हैं.

हम यह भी जानते हैं
कि हमारे बोलने की सजा
सिर्फ़ हम भुगतेंगे
मगर नहीं बोलने की सज़ा
हमारी पीढ़ियाँ भुगतेगी.

हम नहीं चाहते कि
हमारी चुप्पी का क़र्ज़ा
हमारी नस्लें चुकाये
इससे तो बेहतर है
हम खुलकर बोलें
और मारे जायें !

बोलना सिर्फ़ बोलना
नहीं होता
महज़ ज़बान
खोलना नहीं होता
सही समय पर
ग़लत के ख़िलाफ़ बोलना
बचा लेता है सभ्यताएँ.

इसलिए जागते और जगाते रहो
खामोशी तोड़कर बोलते रहो
क्योंकि ज़ुल्मत की खामोशी से
बेहतर है बोलना.
बोलने की जो भी हो क़ीमत
जेल, क़ैद, फाँसी अथवा मौत
फिर भी निडर, निर्भय, बैखौफ़
बोलते रहो, बोलते रहो, बोलते रहो
बोलते रहो बोलते !!

गेस्ट ब्लॉगर भंवर मेघवंशी


Sufi Ki Kalam Se

7 thoughts on “बोलते रहो बोलते ! मशहूर लेखक, ऐक्टिविस्ट भँवर मेघवंशी की शानदार कविता

  1. Pingback: superkaya88

Comments are closed.

error: Content is protected !!