विद्युत विनियामक आयोग राजस्थान तीनो विद्युत कंपनियो
की याचिका पर सुनवाई कर रहा है
विद्युत बिलो मे स्थाई सेवा शुल्क वसूली की प्रक्रिया बदलने का सुझावजोधपुर 29 जुलाई। राजस्थान की तीनो विद्युत वितरण कंपनियो द्वारा विद्युत विनियामक आयोग के समक्ष विद्युत दरो मे परिवर्तन सहित अन्य विषयो को लेकर प्रस्तुत याचिकाओ की सुनवाई आयोग द्वारा प्रारम्भ की गई । विद्युत विनियामक आयोग के अध्यक्ष बी.एन.शर्मा व सदस्यो द्वारा राजस्थान की तीनो विद्युत वितरण कंपनियो जयपुर,जोधपुर व अजमेर डिस्कॉम द्वारा प्रस्तुत टेरिफ पीटिशन की सुनवाई 29 व 30 जुलाई को वीडियो कान्फ्रेंसिग के माध्यम से करते हुए विभिन्न आपत्तिकर्ताओ को सुना गया ।
राजस्थान के विद्युत उपभोक्ताओ की ओर से उपभोक्ता मार्गदर्शन समिति उमस द्वारा याचिका के संबंध मे कई आपत्तियॉ आयोग के समक्ष प्रस्तुत किये गये थे । उमस की ओर से आयोग के समक्ष सचिव लियाकत अली ने विद्युत उपभोक्ताओ की ओर से पैरवी करते हुए कहा कि तीनो वितरण कंपनियॉ वर्तमान मे विद्युत उपभोक्ताओ से स्थाई सेवा शुल्क की वसूली पिछले वित्तीय वर्ष मे उपयोग किये गये औसत बिल के आधार पर करती है तथा आगामी पूरे वित्तीय वर्ष मे यह प्रावधान लागु रहता है जिससे उपभोक्ताओ को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पडता है । कई बार उपभोक्ताओ द्वारा बहुत कम विद्युत उपयोग किया जाता है तथा विद्युत बिल से अधिक स्थाई सेवा शुल्क वसूले जाने से उपभोक्ताओ को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पडता है । संस्था ने पिछले वित्तीय वर्ष के स्थान पर मौजुदा बिलिग महीने मे वास्तविक मासिक खपत के आधार पर लगाने का सुझाव दिया है । जोधपुर डिस्कॉम द्वारा 10 किलो वाट से अधिक या 12000 यूनिट प्रतिवर्ष से अधिक के उपभोक्ताओ के लिये प्रस्तावित किया है कि ऐसे उपभोक्ताओ को स्थाई सेवा शुल्क 80 रू प्रति किलोवाट से राशि वसूली जायेगी संस्था उमस ने जोधपुर डिस्कॉम के इस प्रस्ताव का विरोध किया है । घरेलु उपभोक्ता कितनी भी एनर्जी का उपयोग वर्षपर्यान्त करे परन्तु, ऐसे उपभोक्ता से स्थाई सेवा शुल्क 80 रू प्रति किलोवाट के अनुसार वसूलना उचित नही हे । सचिव अली ने कहा है कि वर्तमान टेरिफ के अनुसार या प्रस्तावित स्थाई सेवा शुल्क के अनुसार मासिक उपयोग के आधार पर ही स्थाई सेवा शुल्क की वसूली होनी चाहिये । माननीय आयोग से निवेदन है कि डिस्कॉम के इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया जाये क्योंकि ऐसे प्रस्ताव को स्वीकार करने का कोई ठोस आधार नही है ।
अली ने बहस मे बताया कि आयोग ने वित वर्ष 2019-2020 के लिये 15 प्रतिशत वितरण हानि की मंजूरी दी थी । इस संबंध मे संस्था को आपत्ति है कि डिस्कॉम माननीय आयोग के निर्देशो की पालना नही कर पाया जिसके कारण 19-20 मे वितरण हानि 19.38 प्रतिशत हो गई । वितरण हानि बढने का कारण कोविड को बताया गया । जबकि कोविड के पीक समय मे तो कई प्रतिष्ठान,फैक्टियॉ आदि बंद रहे ऐसी स्थिति मे वितरण ही कम हुआ तो वितरण हानि कैसे बढ सकती है । माननीय आयोग को इसे गंभीरता से लेना चाहिये । यदि कोविड मे वितरण अधिक हुआ होता तो वितरण हानि बढ सकती थी परन्तु, वितरण कम होने के बावजुद हानि बढने का जोधपुर डिस्कॉम का तर्क समझ से परे है ? वितरण हानि का सीधा प्रभाव उपभोक्ताओ की टेरिफ पर पडता है । डिस्कॉम का कुप्रबन्ध का खामियाजा उपभोक्ताओ पहले से ही भुगत रहे है । क्या कारण है कि अजमेर डिस्कॉम मे माननीय आयोग के निर्देषानुसार 14.48 वितरण हानि ही दर्ज हुई क्यो नही अजमेर डिस्कॉम मे कोविड का प्रभाव नजर नही आया ? क्या तरीके अजमेर डिस्कॉम ने अपनाऐ जिससे वह निर्धारित टारगेट से भी अधिक का लक्ष्य प्राप्त कर सका । कोविड मे तो अजमेर जयपुर और जोधपुर मे हालात एक जैसे ही थे फिर अजमेर मे वितरण हानि कम क्यो हुई ?
सचिव अली ने याचिका के संबंध मे बहस करते हुए आयोग को बताया कि जोधपुर डिस्कॉम ने कोविड मे उपभोक्ताओ को राहत प्रदान करने के लिये कई कदम उठाये गये है जिसमे उपभोक्ता के व्हाटसेप पर मीटर रिडिग फोटो और आंकडा साझा करने पर 1 प्रतिशत प्रति बिल 50 रू तक सीमित की छूट देने का प्रावधान किया गया उमस ने इस संबंध मे आयोग का बताया कि डिस्कॉम ने संभवतः ऐसी छूट उपभोक्ताओ को दी होगी परन्तु, वास्तविकता मे इस योजना का प्रचार प्रसार नही किया गया जिससे उपभोक्ताओ को लाभ नही मिल सका । उपभोक्ता मीटर रिडिग कहॉ भेज इसके संबंध मे व्हाटसेप नंबर का प्रचार प्रसार ही नही किया गया डिस्कॉम को ऐसी योजनाओ का प्रचार प्रसार करना चाहिये ताकि उपभोक्ताओ को अधिक से अधिक लाभ मिल सके । डिस्कॉम 5000 रू तक ऑनलाईन बिल भुगतान के लिये कोई शुल्क नही लेता है इस संबंध मे उमस ने सुझाव दिया कि इस सीमा को 10000 रू तक किया जाना चाहिये । इसी प्रकार जोधपुर डिस्कॉम ने जानकारी दी है कि उपभोक्ता मीटर रिडिग के फोटो वरिष्ठ लेखा अधिकारी के नंबर पर के नंबर के साथ रिडिग भेजकर बिल प्राप्त कर सकते है अली ने बताया कि वरिष्ठ लेखा अधिकारी के नंबर उपभोक्ता को केसे पता लगे इसके लिये डिस्कॉम ने कोई व्यवस्था नही की है । लेखा अधिकारी के नंबर उपभोक्ताओ की जानकारी मे आये इसके लिये प्रचार प्रसार करने की जरूरत है जो डिस्कॉम नही करता हे । माननीय आयोग को इस संबंध मे संज्ञान लेना चाहिये ।
उपभोक्ता को डिस्कॉम समय पर बिल जमा करवाने, व्हाटसऐप पर फोटो शेयर करने,जल्दी बिल जमा करवाने पर छूट, धरोहर राशि पर ब्याज मे छूट सहित अन्य छूट देता है परन्तु, यह बिल मे कब और कहॉ दर्शाये जाते हे ? उपभोक्ताओ को इस संबंध मे जानकारी ही नही मिलती है इस सबंध मे संस्था का सुझाव है कि जोधपुर डिस्कॉम को बिल की डिजाईन मे संशोधन करना चाहिये जैसा कि भीलवाडा मे उपभोक्ताओ को जिस प्रकार के बिल मिल रहे है उस प्रकार के कदम जोधपुर डिस्कॉम को भी उठाने चाहिये ।
इसी प्रकार, याचिकाकर्ता धर्मशालाओ के वर्गीकरण में बशर्ते कि मंदिर, जिस परिसर में धर्मशाला मौजूद है, उसका निर्माण राजस्थान धार्मिक भवन और स्थान अधिनियम, 1954 के अनुसार किया जाना चाहिए या राजस्थान लोक न्यास अधिनियम, 1959 के तहत पंजीकृत होना चाहिए। ”इस संबंध मे संस्था ने सुझाव दिया है कि माननीय आयोग के पिछली याचिका के निस्तारण के समय धार्मिक स्थलो व धर्मशालाओ को घरेलु श्रेणी मे रखा गया था परन्तु, डिस्कॉम के इस प्रस्ताव से कई धार्मिक स्थल घरेलु श्रेणी से बाहर हो जायेगे ।
संस्था ने सामाजिक संगठनो को भी घरेलु श्रेणी मे जोडने का सुझाव दिया । पूर्व मे भी संस्था ने यह प्रस्ताव दिया था । माननीय आयोग से निवेदन है कि जो सामाजिक संगठन प्रतिमाह 500 से अधिक का यूनिट उपयोग मे लेते है अथवा वर्ष मे 6000 यूनिट से अधिक विद्युत उपयोग करते है अथवा 5 किलो वाट से अधिक के विद्युत कनेक्शन धारक ऐसे सामाजिक संगठनो से अघरेलु दर से वसूली की जाती हे तो संस्था को इसमे कोई आपत्ति नही हे ।
उमस का प्रस्ताव है कि छोटे सामाजिक संगठन जो किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियो मे सम्मलित नही है ऐसे सामाजिक संगठनो को प्रोत्साहन दिये जाने की आवश्यकता है । कई सामाजिक संगठनो किसी भी प्रकार की राजकीय सहायता नही लेते है ऐसे स्थिति मे अघरेलु विद्युत बिल से उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है ।
आस्था कार्ड धारको श्रेणी बीपीएल श्रेणी मे सिलिकोसिस पीडित रोगियो को जोडना का सुझाव दिया है ।
उमस ने सुझाव दिया कि बी पी एल श्रेणी के उपभोक्ताओ को केवल 50 यूनिट तक ही रियायत दी जाती हे इस संबंध मे संस्था ने आयोग का सुझाव दिया है कि 50 यूनिट वर्तमान समय मे बहुत ही कम है इसकी सीमा कम से कम 100 यूनिट तक मासिक बढाई जानी चाहिये ।
उमस ने अघरेलु दर के विद्युत उपभोक्ताओ मे स्थाई सेवा शुल्क की बढोतरी करना भी अनुचित्त है । ऐसे उपभोक्ताओ से भी मासिक उपयोग के आधार पर स्थाई सेवा शुल्क वसूल किया जाना चाहिये । इसी तरह 500 यूनिट से अधिक उपयोग करने वाले अघरेलु विद्युत उपभोक्ताओ के लिये भी प्रति किलोवाट स्थाई सेवा शुल्क मे बढोतरी अनुचित्त है ।
कृषि मीटर्ड श्रेणी, कृषि फ्लेटरेट श्रेणी मे स्थाई सेवा शुल्क मे बढोतरी के प्रस्ताव का भी उमस ने विरोध किया है । इस मौके पर उमस के उपाध्यक्ष हेमन्त शर्मा भी उपस्थित थे ।
भवदीय, ( लियाकत अली ) सचिव
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